Advertisement

पुतिन-डोभाल मीटिंग... नेहरू के गुट निरपेक्ष आंदोलन से मोदी के पीस मिशन तक... दुनिया में कितना बदला भारत का रोल?

शीत युद्ध के वक्त दुनिया दो बड़े शक्तिशाली गुटों में बंट गई. एक तरफ अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी गुट थे और दूसरी तरफ सोवियत संघ (USSR) के नेतृत्व में पूर्वी गुट. इन दोनों गुटों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य प्रतिस्पर्धा चल रही थी. हालांकि, भारत इन दोनों गुटों से दूर था और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के साथ आगे बढ़ रहा था. आज फिर दुनिया को दो खेमों में बंटा देखा जा रहा है और भारत किसी गुट का हिस्सा ना होकर शांति का संदेश दे रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में यूक्रेन का दौरा किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में यूक्रेन का दौरा किया था.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:06 PM IST

साल 1945. द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो दुनिया दो हिस्सों में बंट गई. एक तरफ मित्र राष्ट्र थे और दूसरी तरफ पूर्वी राष्ट्र. मित्र राष्ट्र में फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ और चीन था. दूसरे गुट में जर्मनी, इटली और जापान था. मित्र राष्ट्रों को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र के नाम से जाना गया. इनमें संयुक्त राष्ट्र के सभी युद्धकालीन सदस्य शामिल थे. इस युद्ध में भले ही भारत की सीधे भूमिका नहीं थी, लेकिन उसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी. भारत उस समय ब्रिटेन की ओर से लड़ रहा था. 1947 में देश आजाद हुआ और जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने. भारत के सामने नई विदेश नीति तैयार करने और उसे आगे बढ़ाने की चुनौती थी. 

Advertisement

फिर साल आया- 1961. बेलग्रेड कॉन्फ्रेंस में तीन नेताओं भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नजीर और यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज टीटो ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की नींव रखी. गुटनिरपेक्ष देशों ने बयान दिया कि वे कार्य और विचार में स्वतंत्र बने रहेंगे. यानी किसी गुट का हिस्सा नहीं बनेंगे. साठ साल बाद आज फिर दुनिया दो खेमों में बंटी देखी जा रही है. रूस-यूक्रेन में ढाई साल से युद्ध चल रहा है. सालभर से इजरायल और गाजा में बमबारी हो रही है. एक तरफ अमेरिका और यूरोपीय देश हैं तो दूसरी तरफ रूस, चीन, ब्राजील जैसी महाशक्तियां मोर्चा संभाले खड़ी हैं. भारत आज भी किसी गुट का हिस्सा नहीं है. दोनों खेमों से जुड़े देशों का भारत भरोसेमंद साथी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संदेश दे रहे हैं कि युद्ध के मैदान में समाधान नहीं है. दुनिया भी पीएम मोदी के पीस मिशन का स्वागत कर रही है.

Advertisement

वैश्विक स्तर पर कितना बदल गया है भारत का रोल?

भारत ने युद्ध को लेकर पश्चिम या रूस की ओर से पेश किए गए हर प्रस्ताव से खुद को दूर रखा है. यह सीधे तौर पर भारत की ऐतिहासिक गुटनिरपेक्ष नीति को दर्शाता है. यह कहा जा सकता है कि जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक के कार्यकाल में वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका में महत्वपूर्ण बदलाव और विकास हुआ है. भारत की चमक और धमक दुनिया में देखने को मिल रही है. भारत पर लोगों का भरोसा बढ़ा है. आज जब रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करवाने की पहल आगे बढ़ती है तो भारत को पीस मिशन में सबसे आगे देखा जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलते हैं और उनसे शांति की अपील करते हैं. तीन महीने बाद जब वे यूक्रेन पहुंचते हैं तो वहां भी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की से शांति की ही पहल करते हैं. अमेरिका समेत अन्य देश भी भारत की भूमिका पर भरोसा जताते हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भारत के समर्थन को दोहराते और सराहते हैं और अब मोदी के पीस मिशन को मूर्त रूप देने के लिए भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल रूस दौरे पर पहुंच रहे हैं. जंग को रोकने के लिए भारत मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है. हाल ही में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भी कहा कि इस जंग को खत्म करने में भारत का रोल अहम हो सकता है. डोभाल रूस में BRICS एनएसए की बैठक में हिस्सा लेंगे. वे वहां रूस-यूक्रेन संघर्ष को सुलझाने के लिए भी चर्चा कर सकते हैं और राष्ट्रपति पुतिन से भी मुलाकात संभव है. इस दौरान उनकी चीनी समकक्ष के साथ एक अलग मीटिंग होने की भी संभावना है. फिलहाल, भारत के इस बदलाव को चार प्रमुख चरणों के जरिए समझा जा सकता है.

Advertisement

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की कहानी...

1. जवाहर लाल नेहरू ने स्वतंत्रता के बाद गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस नीति के तहत भारत ना तो अमेरिकी गुट का हिस्सा बना और ना ही सोवियत गुट का, बल्कि उसने अपनी विदेश नीति स्वतंत्र बनाई रखी, जो उसके राष्ट्रीय हितों के अनुकूल हो. दरअसल, भारत ने शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी और सोवियत ब्लॉकों के साथ ना जुड़ने का फैसला किया था और अपने लिए एक स्वतंत्र, तटस्थ स्थिति बनाए रखी. नेहरू ने पंचशील के सिद्धांतों के तहत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की वकालत की, जो वैश्विक स्तर पर शांति और सहयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित थी. भारत ने स्वतंत्रता के तुरंत बाद से ही संयुक्त राष्ट्र में सक्रिय भूमिका निभाई. पीस मिशन में हिस्सा लिया और वैश्विक शांति के लिए जोर दिया.

गुटनिरपेक्षता के कारण भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक महत्वपूर्ण और स्वतंत्र भूमिका निभाई और कई वैश्विक मुद्दों पर मध्यस्थता की. नेहरू की नीति ने भारत को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाए रखा. भारत ने दोनों गुटों के साथ व्यापार और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा दिया, जिससे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई. गुटनिरपेक्ष नीति ने भारत को विकासशील देशों के लिए एक नैतिक और वैचारिक नेतृत्व प्रदान किया, जिससे भारत अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण आवाज बन गया.

Advertisement
जवाहरलाल नेहरू, क्वामे नक्रूमा, गमाल अब्देल नासिर, सुकर्णो, जोसिप ब्रोज टीटो ने मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन का गठन किया था. (फाइल फोटो)

2. 1990 के बाद उदारीकरण और वैश्वीकरण का युग आया. 1991 में आर्थिक संकट के बाद भारत ने वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई, जिससे उसकी वैश्विक स्थिति में बड़ा बदलाव आया. भारत ने वैश्विक व्यापार और निवेश के लिए अपने दरवाजे खोले, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी स्थिति मजबूत हुई. भारत ने अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ, जापान, और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी विकसित की, जो सिर्फ सैन्य और सुरक्षा मुद्दों तक सीमित नहीं थी, बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और आर्थिक सहयोग तक भी फैली हुई थी. इस बीच, 1998 में भारत ने पोखरण-II परमाणु परीक्षण करके खुद को एक परमाणु शक्ति के रूप में घोषित किया, जिससे उसकी वैश्विक स्थिति को मजबूती मिली और कूटनीतिक समीकरणों में बदलाव आया.

3. 2000 के दशक के बाद उभरती शक्ति का युग आया. भारत ने संयुक्त राष्ट्र, G20, BRICS, IBSA, और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी सक्रियता बढ़ाई. भारत ने अपनी 'सॉफ्ट पावर' (जैसे संस्कृति, योग, और बॉलीवुड) को भी वैश्विक मंच पर पेश किया. भारत ने अमेरिका, जापान, इजरायल, रूस, और फ्रांस जैसे देशों के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत किया. इसके अलावा, उसने हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी नौसेना की उपस्थिति को भी बढ़ाया.

Advertisement

4. देश में 2014 में एनडीए की सरकार बनी और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. मजबूत विदेश नीति के साथ 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति को आगे बढ़ाया गया. मोदी सरकार ने 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति के तहत पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत किया. इसके साथ ही 'एक्ट ईस्ट' नीति और 'इंडो-पैसिफिक' रणनीति के जरिए पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में भारत की भूमिका को बढ़ाया. भारत ने 'क्वाड' (Quad) जैसे मंचों में शामिल होकर अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया के साथ रणनीतिक सहयोग बढ़ाया. यह सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा, और आर्थिक साझेदारी तक फैला है.

पीएम मोदी ने भारत को एक 'वैश्विक शक्ति' के रूप में पेश किया है, जो ना सिर्फ क्षेत्रीय स्थिरता में बल्कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, और सतत विकास जैसे मुद्दों पर भी नेतृत्व करता है. 'इंटरनेशनल सोलर अलायंस' (ISA) का नेतृत्व इसका एक प्रमुख उदाहरण है. मोदी सरकार ने डिजिटल कूटनीति (डिजिटल इंडिया, इंडिया स्टैक आदि) और आर्थिक सुधारों (जैसे GST, मेक इन इंडिया) के जरिए भारत को वैश्विक निवेश के लिए एक आकर्षक जगह के रूप में पेश किया.

फिलहाल, आज भारत की भूमिका और स्थिति वैश्विक स्तर पर मजबूत हो गई है. जहां नेहरू ने स्वतंत्रता और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए गुटनिरपेक्षता का रास्ता चुना तो मोदी ने आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक शक्तियों को मिलाकर भारत को एक प्रमुख वैश्विक महाशक्ति बनाने का प्रयास किया है. वैश्विक मुद्दों पर भारत की आवाज अब और भी ताकतवर हो गई है और इसका प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में महसूस किया जा रहा है. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement