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900 से ज्यादा छात्राओं को दिया जहर... क्या हिजाब के खिलाफ आवाज उठाने वालों से बदला ले रही ईरान सरकार?

ईरान में छात्राओं को स्कूल जाने से रोकने के लिए सरकार की तरफ से खौफनाक बदला लिया जा रहा है. रिपोर्ट्स के अनुसार ईरान में 900 से अधिक छात्राओं को जहर देने की खबर सामने आई है. जहर देने की पहला मामला पिछले साल कोम शहर से सामने आया था.

ईरान के अस्पतालों में भर्ती हैं कई छात्राएं ईरान के अस्पतालों में भर्ती हैं कई छात्राएं
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 06 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 11:03 AM IST

ईरान में महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा को लेकर लगातार वैश्विक स्तर पर चर्चा होते रही है. पिछले साल सितंबर में महसा अमीनी नाम की एक 22 साल की युवती की मौत के बाद देशभर में व्यपाक प्रदर्शन हुए. महसा ने ईरान के महिला ड्रेस कोड के खिलाफ अपने बाल कटवा लिए थे और हिजाब उतारकर सार्वजनिक रूप से आवाजाही करने लगी थीं. कुछ समय बाद जब वह तेहरान गई तो पुलिस ने उन्हें सही तरह से हिजाब नहीं पहनने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और फिर वो कभी वापस नहीं लौटीं. आरोप लगा कि पुलिस प्रताड़ना की वजह से उनकी मौत हुई जिसके बाद हजारों महिलाएं सड़कों पर उतर आईं. तब से लेकर अभी तक ईरान में ड्रेस कोड और महिलाओं की शिक्षा को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. अब छात्राओं को जहर देने की हैरान कर देने वाली खबर सामने आई है.

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900 से अधिक छात्राओं को जहर

विभिन्न ईरानी शहरों में करीब 900 स्कूली छात्राओं को जहर देने की खबर है. सरकार समर्थक कट्टरपंथियों द्वारा बदला लेने के लिए यह 'जहर' वाला हमला किया जा रहा है है तांकि लड़कियां स्कूल ना जा सके. महसा अमिनी की मौत के बाद देश में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों से सरकार समर्थक कट्टरवादी बौखालए हुए हैं और महिलाओं तथा लड़कियों को अब इस तरह निशाना बना रहे हैं. वहीं ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी इसे तेहरान के दुश्मनों के काम बता रहे हैं.

कई प्रांतों से सामने आए मामले

स्कूली छात्रा को जहर देने की पहली घटना 30 नवंबर, 2021 को क़ोम शहर में हुई जब लगभग 50 छात्राएं बीमार पड़ गईं और उन्हें अस्पताल ले जाया गया। स्थानीय मीडिया ने बताया कि लड़कियों को अचानक से सिरदर्द, चक्कर आना और सांस लेने में परेशानी जैसी दिक्कतें होने लगी. इनमें से कुछ को तो पैराइलाइज तक हो गया. लड़कियों को कुछ दिनों के बाद अस्पताल से छुट्टी मिल गई और फ़तेमेह रेज़ाई नाम की एक 11 वर्षीय लड़की की ज़हर से मौत हो गई. हालांकि उसके परिवार और उसका इलाज करने वाले डॉक्टर ने कहा कि उसकी मौत एक गंभीर संक्रमण की वजह से हुई और उसे ज़हर नहीं दिया गया था. ईरानी मीडिया ने बताया कि आठ प्रांतों और राजधानी तेहरान तथा बोरुजेर्ड और अर्देबी शहरों में कम से कम 58 स्कूलों में स्कूली छात्राओं को जहर देने की खबर सामने आई है. दर्जनों लड़कियों के साथ-साथ कुछ लड़के और शिक्षक भी अस्पताल में भर्ती हुए और सभी जहरीले पदार्थ से प्रभावित थे.

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सरकार ने किया स्वीकार

शनिवार को, रॉयटर्स समाचार एजेंसी ने बताया कि ईरान के 31 प्रांतों में कई स्कूली छात्राएं बीमार हैं और दर्जनों छात्राओं को इलाज के लिए अस्पतालों में भर्ती कराया गया है. लगातार जहर देने के मामले सामने आए तो सबसे पहले ईरान की सरकार ने ऐसी किसी भी घटना होने से इंकार कर दिया और फिर जैसे-जैसे हमले बढ़ते गए तो सरकार के लिए भी जवाब देना मुश्किल हो गया. सवाल उठने लगे कि यह आकस्मिक घटना तो कतई नहीं हो सकती है. जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने शुक्रवार को संदिग्ध हमलों की पारदर्शी जांच का आह्वान किया और जर्मनी तथा अमेरिका सहित कई देशों ने चिंता व्यक्त की. ईरानी उप शिक्षा मंत्री यूनुस पनाही ने अंतत: स्वीकार किया कि हमले जानबूझकर किए गए थे लेकिन इसमें युद्ध में इस्तेमाल होने वाले यौगिक रसायन नहीं थे बल्कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रसायनों का इस्तेमाल किया गया था.

बाद में उन्होंने कहा, 'यह स्पष्ट हो गया है कि कुछ लोग चाहते थे कि सभी स्कूल, विशेष रूप से लड़कियों के स्कूल बंद हो जाएं.' पिछले शुक्रवार को राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने दावा किया कि जहर देना ईरान के दुश्मनों का काम था जो देश में अराजकता पैदा करना चाहते हैं और माता-पिता तथा छात्राओं के बीच भय और असुरक्षा पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.रायसी ने आंतरिक मंत्रालय को इसकी जांच करने का आदेश दिया है.

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आतंकित करना है उद्देश्य
अल जज़ीरा ने तेहरान के पारदिस उपनगर के डिप्टी गवर्नर रेज़ा करीमी सालेह के बयान का हवाला देते हुए कहा कि उपनगर में स्कूल के बगल में पाए गए ईंधन टैंकर पर ज़हरीले पदार्थ से हमला किया गया था. टैंकर के चालक को गिरफ्तार कर लिया गया है. कई  ईरानियों को डर है कि हमलों के पीछे इस्लामी कट्टरपंथियों का हाथ है क्योंकि उनका उद्देश्य लड़कियों को आतंकित करना और उनके परिवारों को उन्हें स्कूल भेजने से रोकना है. इस तरह के तरीकों का इस्तेमाल 2010 में अफगानिस्तान में तालिबान और हाल ही में नाइजीरिया के इस्लामिक आतंकवादी समूह बोको हरम द्वारा किया गया था. बोको हरम ने 2014 में 276 स्कूली लड़कियों का अपहरण कर लिया था.

सरकार के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन

पिछले सितंबर में महसा अमिनी की मौत के बाद ईरान के दर्जनों शहरों और कस्बों में महिलाओं तथा पुरुषों द्वारा बार-बार बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए. लोगों ने अपने नागरिकों और विशेष रूप से महिलाओं पर असंख्य प्रतिबंध लगाने वाले दमनकारी शासन के खिलाफ नारेबाजी की. सोशल मीडिया पर हजारों महिलाओं और स्कूली छात्राओं के हिजाब को फाड़ने वाली तस्वीरें वायरल हुईं थी. लोगों ने ईरानी नेता अयातुल्ला खुमैनी, सर्वोच्च नेता अली खामेनेई, राष्ट्रपति रायसी और अन्य वरिष्ठ मौलवियों के खिलाफ नारे लगाए. 'नारी, जीवन, स्वतंत्रता,' जैसे नारों की तख्तियां लेकर लड़कियों ने अपने स्कूलों में कई विरोध प्रदर्शन किए. इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान लड़कियों ने अपने हिजाब को फेंक दिया था और 'तानाशाह को फांसी' जैसे नारे लगाए. इसके बाद से कट्टरवादी ईरान सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

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