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अमेरिका चुनाव: राष्ट्रपति उम्मीदवार के साथ एक ही टिकट पर 'रनिंग मेट' क्यों उतरता है?

जो बिडेन ने कमला हैरिस को अपना रनिंग मेट चुना है. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुल्क के राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार अपने-अपने रनिंग मेट्स क्यों चुनते हैं.

जो बिडेन की रनिंग मेट कमला हैरिस (फोटो-PTI) जो बिडेन की रनिंग मेट कमला हैरिस (फोटो-PTI)
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 8:08 PM IST

  • अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव
  • जो बिडेन ने कमला हैरिस को चुना रनिंग मेट
  • कमला हैरिस की मां भारतीय मूल की थीं

अमेरिका में एक तरफ जहां कोरोना वायरस तबाही मचा रहा है, वहीं राष्ट्रपति चुनाव की धमक भी पूरी दुनिया में सुनाई देने लगी है. कोरोना वायरस ने भले ही पूरी दुनिया की स्पीड पर ब्रेक लगी दी हो लेकिन अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव समय से ही हो रहे हैं. विश्व युद्ध के दौरान भी अमेरिका में चुनाव नहीं टले थे. कोरोना काल में आगामी चुनाव खास है. डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से लिए गए एक फैसले ने चुनावी सरगर्मियों को और बढ़ा दिया है. राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन ने भारतीय मूल की कमला हैरिस को अपना रनिंग मेट बनाया है.

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ऐसे में ये समझना भी जरूरी है कि रनिंग मेट क्या होता है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रनिंग मेट क्यों चुनते हैं और एक ही टिकट पर रनिंग मेट क्यों उतारा जाता है. अमेरिका का चुनाव काफी पेचीदगी भरा माना जाता है. यहां का राष्ट्रपति चुनाव भारतीय चुनावों से काफी अलग होता है.

रनिंग मेट यानी उपराष्ट्रपति पद पर उम्मीदवार

आसान भाषा में समझें तो जिस नेता या शख्स को रनिंग मेट चुना जाता है, वो उप-राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार होता या होती है. अमेरिका में दोनों बड़े दल रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार अपने-अपने रनिंग मेट्स चुनते हैं. जो बिडेन ने कमला हैरिस को चुना है जबकि डोनाल्ड ट्रंप ने उपराष्ट्रपति माइक पेंस को ही एक बार फिर अपना रनिंग मेट बनाया है.

यानी अगर डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार अमेरिका में आती है तो जो बिडेन राष्ट्रपति बनेंगे, जबकि उनके साथ कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बनेंगी. वहीं, ट्रंप के जीतने पर वो राष्ट्रपति और माइक पेंस उपराष्ट्रपति बनेंगे. अमेरिकी चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ही अपना रनिंग मेट चुनते हैं. राष्ट्रपति के साथ ही उनके रनिंग मेट यानी उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए भी वोटिंग होती है. दोनों उम्मीदवारों के लिए वोटिंग होती है और दोनों एक टीम की तरह एक ही टिकट पर लड़ते हैं, जीत दर्ज करते हैं या हारते हैं.

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क्या है रनिंग मेट का इतिहास?

वॉशिंगटन स्थित अमेरिकन यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर क्रिस एडल्सन के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने रनिंग मेट सिस्टम के बारे में विस्तार से लिखा है. क्रिस एडल्सन ने बताया है कि अमेरिकी राजनीति में वैसे रनिंग मेट सिस्टम को कभी भी औपचारिक तौर पर कानून में सम्मिलित नहीं किया गया था, लेकिन ये प्रथा 1864 से चली आ रही है. मूल सिस्टम के तहत उपराष्ट्रपति भी राष्ट्रपति पद का ही उम्मीदवार होता था, जो इलेक्टोरल कॉलेज की वोटिंग में दूसरे नंबर पर आता था. लेकिन इस सिस्टम ने एक बार बड़ा विवाद पैदा कर दिया. जिसके बाद 1804 में यूएस संविधान में 12वें संशोधन के साथ नियम बदल गए. नए नियम में बताया गया कि इलेक्टोरल कॉलेज रनर अप की बजाय राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को अलग-अलग चुनेंगे. मौजूदा सिस्टम में इसी तरह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों के लिए वोटिंग की जाती है, लेकिन दोनों एक टीम के रूप में ही चुनाव लड़ते हैं.

जो बिडेन के साथ कमला हैरिस-PTI

कैसे होता है रनिंग मेट्स का चयन?

रनिंग मेट्स का चुनाव एक आसान प्रक्रिया का हिस्सा है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार अपने रनिंग मेट्स को चुनते हैं. अगर चाहें तो इसके लिए वो पार्टी नेताओं और सलाहकारों की भी मदद ले सकते हैं. लेकिन रनिंग मेट चुनने के लिए कोई सेट क्राइटेरिया नहीं है. आमतौर पर सभी राष्ट्रपति उम्मीदवार अपने लिए ऐसे रनिंग मेट्स चुनते हैं जो उनके चुनाव जीतने में फायदेमंद साबित हों और उनके साथ आसानी से काम भी किया जा सके.

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क्या रनिंग मेट्स को बदला जा सकता है?

क्रिस एडल्सन का कहना है कि अमेरिकी चुनावी इतिहास में रनिंग मेट्स को आखिरी वक्त पर बदलने की घटना एक बार हुई है. 1972 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जॉर्ज मैकगवर्न ने आखिरी मौके पर थॉमस ईगल्टन को डेमोक्रेटिक टिकट पर रनिंग मेट चुना था. हालांकि, उनका ये फैसला विवाद का केंद्र भी बना. दरअसल, थॉमस ईगल्टन की मेडिकल फिटनेस को लेकर सवाल उठे. जांच में पाया गया कि ईगल्टन डिप्रेशन जैसी बीमारियों के लिए अस्पताल में भर्ती भी हो चुके थे. थॉमस की उम्मदीवारी वापस कराई गई. बताया जाता है डेमोक्रेट्स का यह फैसला जनता को पसंद नहीं आया और जॉर्ज मैकगवर्न को रिचर्ड निक्सन से हार का सामना करना पड़ा. लिहाजा, मौजूदा व्यवस्था में रनिंग मेट्स की मेडिकल कंडिशन का भी ध्यान रखा जाता है.

रनिंग मेट्स का रोल कितना अहम?

क्रिस एडल्सन का कहना है, ''धारणा ये है कि रनिंग मेट्स आमतौर पर चुनाव में कोई बड़ा फर्क पैदा नहीं करते हैं. लेकिन रनिंग मेट्स राष्ट्रपति भी बन सकते हैं, उस दृष्टिकोण से रनिंग मेट्स काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. हालांकि, रनिंग मेट्स का गलत चुनाव भी राष्ट्रपति पद के लिए भारी पड़ने की आशंका रहती है.''

डोनाल्ड ट्रंप के साथ माइक पेंस (रॉयटर्स)

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जो बिडेन ने कमला हैरिस को क्यों चुना?

कमला हैरिस एक सीनेटर हैं. कमला हैरिस की मां श्यामला गोपालन मूल रूप से एक भारतीय थीं, जो चेन्नई से थीं और उनका निधन 2009 में हुआ था. जबकि कमला के पिता डोनाल्ड हैरिस जमैका से हैं. अमेरिका में श्वेत-अश्वेत को लेकर लंबे समय से बहस रहती है. कमला हैरिस को अश्वेत के तौर पर जाना जाता है.

कमला हैरिस को चुनने से क्या चुनाव में जो बिडेन को कोई लाभ मिलेगा? इस सवाल पर कानपुर स्थित क्राइस्टचर्च कॉलेज में प्रोफेसर रह चुके और अमेरिकी चुनाव पर नजर रखने वाले ए.के वर्मा का कहना है, ''जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका गए तो डोनाल्ड ट्रंप ने एक तरह से उनका इस्तेमाल किया, यहां तक कि मिलता-जुलता नारा 'अबकी बार ट्रंप सरकार' भी दिया. इससे जाहिर होता है कि भारतीय समुदाय वहां काफी स्ट्रॉन्ग हो रहा है. भारतीय समुदाय रेसिज्म पर ट्रंप के रुख से नाराज है. क्योंकि ट्रंप ने ओपनली रेसिज्म को सपोर्ट किया और जब से ये सत्ता में आए रेसिज्म का स्वरूप भी बदल गया. ऐसे में भारतीय समुदाय के गुस्से को भुनाने के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी का ये एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक भी है.''

अमेरिका चुनाव को समझने के लिए ये जरूर पढ़ें- कैसे चुना जाता है अमेरिका का राष्ट्रपति? जानें भारत से कितनी अलग है चुनावी प्रक्रिया

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दूसरी तरफ हाल ही में एक अश्वेत शख्स पर पुलिस कार्रवाई ने पूरी दुनिया में तूल पकड़ा. इस मसले पर डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन पूरी तरह से बैकफुट पर नजर आया है, यहां तक व्हाइट हाउस के बाहर जमकर धरने-प्रदर्शन भी किए गए.

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