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जर्मनी को धोखा देने के लिए जब फ्रांस ने बनाया नकली Paris, दिलचस्प है प्रथम विश्व युद्ध की ये कहानी

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस ने पेरिस का एक फेक शहर बनवाया था. यहां गलियों, घरों, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन से लेकर एयरपोर्ट तक को हूबहू वैसा ही तैयार किया गया था. इसके पीछे क्या कारण था? कैसे इस शहर को बनाया गया और किसे इस शहर को बनाने का श्रेय दिया जाता है? पूरा किस्सा सुनकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे. तो चलिए जानते हैं इस कहानी को विस्तार से...

जर्मनी को गुमराह करने के लिए बनाया गया था फेक पेरिस. जर्मनी को गुमराह करने के लिए बनाया गया था फेक पेरिस.
तन्वी गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:23 PM IST

क्या आप जानते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब फ्रांस ने अपने खूबसूरत शहर पेरिस जैसा फेक शहर भी बनाया था? जी हां यह सच है. आखिर फ्रांस को फेक पेरिस शहर बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? इसके पीछे की पूरी कहानी जानने के लिए ले चलते हैं आपको प्रथम विश्व युद्ध के दौर में. तो चलिए जानते हैं पूरा किस्सा...

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1914 से 1918 तक चले प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस ने इंजीनियर्स को एक बड़ा काम सौंपा. उन्होंने पेरिस से दूर एक और पेरिस शहर बसाने का काम शुरू किया. यहां गलियों, घरों, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन से लेकर एयरपोर्ट तक को हूबहू वैसा ही तैयार किया गया. इसका पूरा श्रेय इलेक्ट्रिकल इंजीनियर फरनेंड जैकोपोजी (Fernand Jacopozzi) को दिया जाता है. उन्होंने फ्रांस सरकार की मदद से इस काम को पूरा किया.

पेरिस पर जर्मन का हमला
दरअसल, साल 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सैनिकों ने पेरिस शहर पर बम बरसाए थे. जर्मन सिर्फ पेरिस को ही अपना शिकार क्यों बनाना चाहते थे, इसकी दो वजह थीं. पहली यह कि जर्मनी के सबसे नजदीक पेरिस शहर ही था. यहां पर हमले के लिए जर्मन विमानों को महज 30 किलोमीटर की ही दूरी तय करनी पड़ती. और दूसरा कारण यह था कि पेरिस फ्रांस की राजधानी है. इसलिए इसे एक महत्वपूर्ण शहर माना जाता है. पेरिस पर जर्मनी ने पहला हमला 30 अगस्त 1914 को किया था. हमला करने वाला पहला जर्मन विमान था तौब (Taube), जोकि एक लड़ाकू विमान था.

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इलेक्ट्रिकल इंजीनियर फरनेंड जैकोपोजी (फाइल फोटो)

1917 में फ्रांस को मिली थोड़ी राहत
यह पहली बार था जब किसी देश की राजधानी पर हमला हुआ था. हमले में लोगों को तो ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था. लेकिन इससे मानसिक तौर पर दबाव जरूर बन गया था. 1917 को फ्रांस को उस वक्त थोड़ी राहत मिली जब जर्मनी का ध्यान पेरिस से हटकर लंदन की तरफ चला गया. लंदन पर हमले के लिए जर्मनी अपने नए बॉम्बर विमानों का इस्तेमाल कर रहा था. इन्ही बॉम्बर विमानों के कारण जून 1917 में हुए एक हमले में ब्रिटेन के 162 लोगों की जान चली गई थी.

1917 में फेक शहर बनाने की योजना बनाई गई
फ्रांस जानता था कि लंदन को नुकसान पहुंचाने के बाद एक बार फिर जर्मनी उसकी तरफ रुख करेगा. ऐसे में फ्रांस की सरकार ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियर फरनेंड जैकोपोजी को एक योजना के बारे में बताया. जिसके तहत उन्हें पेरिस को जर्मन हवाई हमलों से बचाना था. फिर 1917 में यह तय किया गया कि पेरिस का फेक शहर बनाया जाएगा, ताकि जर्मन विमान असली पेरिस पर हमला न कर पाएं. दरअसल, उस समय तकनीकी रूप से दुनिया उतनी विकसित नहीं हुई थी जितनी कि आज है. उस समय विमान के जरिए विस्फोटक ले जाया जाता. फिर आसमान से सीधे नीचे देखकर उस जगह विस्फोटक गिरा दिया जाता, जहां हमला करना होता था. Daily Mail के मुताबिक, इसीलिए फ्रांस ने डुप्लीकेट पेरिस बनाने का प्लान बनाया क्योंकि तकनीक की कमी के कारण पायलट आसमान से देखकर यह नहीं बता सकते थे कि वो असली पेरिस पर विस्फोटक गिरा रहे हैं या नकली पेरिस पर.

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शहर बनाने के लिए जगह की सिलेक्शन
फिर शुरु हुई जगह की सिलेक्शन कि किस जगह पर नकली पेरिस बनाया जाए. बता दें, पेरिस में एफिल टॉवर के पास से सेन नदी (Seine River) बहती है. लेकिन ये नदी सीधी नहीं बहती. एफिल (Eiffel Tower) टॉवर के पास से गुजरने वाली यह नदी एक बार नहीं, बल्कि दो बार मुड़ते हुए आगे बढ़ती है. इन्ही में से दो मोड़ के पास माइसन्स लफीते (Maisons Laffitte) नाम की जगह है. जैकोपोजी ने इसी जगह को नकली पेरिस बनाने के लिए चुना.

दो और नए ठिकाने बनाए गए
Daily Beast के मुताबिक, जर्मन विमानों को धोखा देने के लिए दो और नए ठिकाने बनाए गए. पहला राजधानी पेरिस से 16 किलोमीटर दूर पूर्व में एक नकली इंडस्ट्रियल जोन बनाया गया. और पेरिस के उत्तर पूर्व की ओर विलेपिंट (Villepinte) में एक नकली शहर बनाने की योजना बनाई गई. 1918 में जैकोपोजी ने यहां शहर का सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन गारे दे ल्योन (Gare De Lyon) बनाया. यहां तक कि चलती हुई ट्रेन भी बनाई जिसे लकड़ी के तख्तों से बनाया गया. इसमें रोशनी का ऐसा इस्तेमाल किया गया कि रात को ऊपर से देखने में ऐसा लगता था कि यह ट्रेन असल में चल रही है.

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लकड़ियों के इस्तेमाल से बनाया गया इंडस्ट्रियल एरिया
ऐसे ही लकड़ियों के इस्तेमाल से इंडस्ट्रियल एरिया भी बनाया गया. फैक्टरियों के ढांचे तैयार किये गए. फैक्टरियों की छत पर उन्होंने कैनवस का इस्तेमाल किया. जिसे उन्होंने अलग-अलग रंगों से पेंट किया. सफेद, पीले और सफेद रंगों के अलग-अलग लैंप्स का इस्तेमाल इस तरह किया गया कि उससे फैक्ट्री में आग लगी दिखे और उससे धुआं निकलता दिखे. उनकी कोशिश थी कि रोशनी प्राकृतिक दिखे ताकि जर्मन पायलटों को किसी तरह का शक न हो.

और खत्म हो गया प्रथम विश्व युद्ध
फिर समय आया 16  सितंबर 1918 का. जर्मनी ने एक बार फिर फ्रांस पर हमला किया. इस हमले में 6 लोगों की मौत हुई और 15 लोग इसमें घायल हुए थे. फ्रांस ने सोचा कि इससे पहले जर्मन फिर से कोई हमला करें, फेक पेरिस शहर को जल्दी ही चालू कर दिया जाएगा. लेकिन वो वक्त कभी आया ही नहीं. क्योंकि 2 महीने बाद प्रथम विश्व युद्ध खत्म हो गया. और जैकोपोजी को कभी भी ये पता नहीं लग पाया कि उनकी योजना से जर्मन पायलटों को चकमा दिया जा सका या नहीं. हालांकि, सरकार इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि अगर युद्ध आगे चला होता तो बजाव की यह रणनीति कारगर साबित होती.

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जैकोपोजी हो गए दुनिया में फेमस
जैकोपोजी की इस योजना को युद्ध खत्म होने के बाद भी खूफिया ही रखा गया. साल 1920 में जब ब्रिटिश मीडिया ने इसे लेकर खबर छापी तब इस बात का पता चल पाया. बाद में जैकोपोजी को फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान लीजन ऑफ ऑनर (Legion Of Honour ) से सम्मानित किया गया. 1920 के दशक में उन्हें काफी सफलता भी मिली. उन्होंने एफिल टॉवर को रोशनी से सराबोर भी किया. उसके बाद शहर की खास जगहों को भी रोशनी से जगमगाया. इस तरह जैकोपोजी फ्रांस सहित दुनिया में फेमस हो गए थे. फिर 6 फरवरी 1932 में उनकी मौत हो गई.

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