
इस्लामिक स्टेट एक चरमपंथी समूह है, जो साल 2013 के दौरान अल कायदा संगठन से टूटकर बना था. कुछ ही दिनों में अपने खूंखार कारनामों के चलते इसे दुनिया का सबसे ताकतवर और सबसे क्रूर आतंकवादी ग्रुप माना जाने लगा. इसी दौरान एक अजीब खबर आई कि युवा लड़कियां भी ISIS से जुड़ रही हैं. इनमें से ज्यादातर ब्रिटेन और यूरोपियन देशों की मॉर्डन खयालात वाली लड़कियां थीं, जो आधुनिक सोच रखतीं. फिर एकाएक क्या हुआ कि वे सीरिया जाकर एक चरमपंथी गुट में लगभग गुलाम की जिंदगी जीने लगीं. इसके पीछे आतंकियों की लंबी-चौड़ी रणनीति काम करती है.
कितने लोग हुए ISIS में शामिल?
साल 2019 में लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स की एक रिपोर्ट- फीमेल रेडिकलाइजेशन: व्हाई डू वीमन जॉइन आईएसआईएस में बताया गया कि सालभर पहले अमेरिकी, ब्रिटिश और यूरोपियन देशों के लगभग 41,500 लोगों ने आतंकी संगठन को जॉइन किया. इसमें पौने 5 हजार औरतें और लगभग इतने ही माइनर थे. वहीं इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्टडी ऑफ रेडिकलाइजेशन एंड पॉलिटिकल वायलेंस (ICSR) का साल 2017 तक का डेटा मानता है कि इस्लामिक स्टेट में शामिल होने वाली काफी लड़कियों की भर्ती जेहादियों की बीवियों की तरह होती और अंत सेक्स स्लेव यानी यौन गुलाम की तरह.
कैंप में रहती लड़कियों की बातों के आधार पर बनी रिपोर्ट्स
इस तरह की कई रिपोर्ट्स आईं जो सीरियाई कैंपों में रह रही पूर्व ISIS लड़कियों से बातचीत पर आधारित हैं. ये दावा करती हैं कि कट्टरपंथी संगठन लड़कियों को फंसाने के लिए कई तरीके अपनाता था. वो ऑनलाइन इस तरह के वीडियोज डालता, जिसमें युवा लड़ाके ट्रेनिंग ले रहे हों या मजहबी नियमों का पालन कर रहे हों. ये इस तरह के होते कि कम उम्र की लड़कियां अक्सर आकर्षित हो जातीं.
अक्सर रोमांटिक रिश्तों का जाल
कई बार इस्लामिक स्टेट की सोच वाले लोग शहरों में आम लोगों के बीच घुलते-मिलते और लड़कियों से प्यार का नाटक रचते. पूरी तरह से झांसे में आ चुकी लड़कियों को इस्लामिक स्टेट की सोच में ढाल लिया जाता.
ऐसे वादे भी करता था इस्लामिक स्टेट
ICSR के मुताबिक चरमपंथी गुट लड़कियों को बेहद मजबूत बनाने के झूठे वादे भी करता था. जैसे अमेरिकी राज्य अल्बामा की रहने वाली हुडा मुथाना छोटी उम्र में घर छोड़कर सीरिया भाग गईं. बाद में उन्होंने बताया कि ऑनलाइन वीडियो देखकर उन्हें लगा कि इस्लामिक स्टेट ही औरतों को सच्ची मजबूती दे सकता है, इसलिए वो उसकी तरफ गईं.
शमीमा बेगम की कहानी ने डरा दिया
इसी तरह से ब्रिटेन की शमीमा बेगम अच्छी लाइफस्टाइल के लिए इस्लामिक स्टेट भाग गई थीं. काफी बाद में सीरिया के शरणार्थी कैंप में रहते हुए शमीमा ने जो बातें बताईं, उसने दुनिया को हिला दिया था. शमीमा ने चार सालों में तीन बच्चे खो दिए और उसे यौन गुलाम बनाकर रखा गया था. ऐसा लगभग सभी के साथ होता था.
मजहबी कारणों से भी हुईं आकर्षित
बहुत सी युवतियां धार्मिक वजहों से भी गुट से जुड़ने लगती थीं. असल में वेस्ट बाकी मामलों में तो काफी आगे निकल गया, लेकिन वहां के तौर-तरीके ऐसे हैं जो अक्सर लोगों को अकेला बना देते हैं. ऐसे में अगर कोई धार्मिक संगठन उन्हें सेंस ऑफ परपस या जीने का मकसद जैसा कुछ देता दिखे तो वहां के लोग फटाफट उस तरफ आकर्षित होने लगते हैं. कुछ यही चीज इस्लामिक स्टेट के मामले में भी हुई. युवतियां और खासकर माइनर युवतियां इस तरफ जाने लगीं.
जाने से पहले इतने लोगों ने बदला धर्म
लगभग सभी जगह एक ट्रेंड दिखा. युवतियां कुछ महीने पहले किसी चरमपंथी सोच वाले पुरुष के संपर्क में आईं और सोच बदलने लगी. देखा गया कि अक्सर सीरिया भागने से पहले वे अपना पुराना धर्म छोड़कर इस्लाम अपना लेती थीं. इसपर ICSR की स्टडी कहती है कि यूरोप की जितनी महिलाओं ने इस्लामिक स्टेट जॉइन किया, उनमें से लगभग 20% ने जाने से कुछ पहले ही धर्म बदला.
क्यों कम उम्र लड़कियों को निशाना बनाता रहा इस्लामिक स्टेट?
इसकी कई वजहें हैं. एक तो ये कि उन्हें बहलाना-फुसलाना आसान होता है. वे मैच्योर लोगों की बजाए जल्दी राजी हो जाती हैं. दूसरी बड़ी वजह थी- लड़कियों के लिए तैयार रोल्स. इस्लामिक स्टेट में लड़ाके तो बहुत हो गए, लेकिन उनकी यौन जरूरतों को पूरा करने के लिए लड़कियों की कमी थी. तो उसके नेताओं ने अलग-अलग तरह से लड़कियों को ट्रैप करना शुरू किया.
सुसाइड बॉम्बिंग में भी लड़कियों को रखा जाता था आगे
लड़कियां अक्सर किसी न किसी लड़ाके की पत्नी बनकर आतीं, फिर वक्त के साथ वे स्लेव बना दी जातीं. खाना पकाने, बच्चों की देखभाल जैसे कामों के लिए भी उनकी जरूरत थी. एक और बात देखी गई कि गुट अक्सर सुसाइड बॉम्बिंग के लिए युवकों नहीं, बल्कि युवतियों का इस्तेमाल करता था क्योकि माना जाता था कि यौन सुख देने, घरेलू काम और फ्यूचर लड़ाके तैयार करने के अलावा उनकी कोई खास जरूरत दुनिया में नहीं है.
क्या होता था वहां उनके साथ?
लगभग सभी के साथ बदसलूकी, मारपीट और बलात्कार हुआ करता. एनजीओ ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब भी उत्तर-पूर्वी सीरिया में कई कैंपों में ऐसी महिलाएं और उनसे जन्मे बच्चे रह रहे हैं. आतंकी होने का ठप्पा लग जाने के कारण कोई भी देश उन्हें अपनाने को तैयार नहीं.
इनसे बात करके यूनाइटेड नेशन्स ह्यूमन राइट्स काउंसिल (UNHRC) ने माना कि महिलाओं के पास वहां मानवाधिकार जैसी कोई चीज नहीं थी. उनकी जबर्दस्ती शादियां होती, जबरन बच्चे पैदा करवाए जाते और जबरन ही सुसाइड बॉम्बर बना दिया जाता. पश्चिम की महिलाओं के साथ ये ज्यादा होता था. उन्हें हंसने-बोलने की तो छूट नहीं ही थी, अगर गलती से भी वे किसी पुरुष का विरोध करतीं, तो सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाते थे.