
22 फरवरी 2022 को रूस ने पूर्वी यूक्रेन के दो राज्यों, दोनेत्स्क और लुहांस्क को देश का दर्जा दे दिया. जिसके बाद वहां न तो NATO और न ही अमेरिका, यूक्रेन की मदद के लिए आधिकारिक रूप से अपने सैनिक भेज सकते हैं. लेकिन इन सब के बीच एक सवाल उठता है कि यूक्रेन जो मौजूदा वक्त में रूस के सामने बेहद ही कमज़ोर दिख रहा है, क्या वो आज से 30 साल पहले इतना ही कमज़ोर था? इसका जवाब जानने के लिए हमें 25 दिसंबर 1991 से कहानी की शुरुआत करनी होगी...
25 दिसंबर 1991 की तारीख़ थी जब सोवियत यूनियन के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने 10 मिनट की स्पीच दी और उसके बाद ही उन्होंने सोवियत यूनियन के dissolution की घोषणा कर दी, जिसके बाद सोवियत यूनियन 15 स्वतंत्र देशों में बंट गया. लेकिन इसके साथ ही सोवियत यूनियन से टूटे देशों के बीच न्यूक्लियर वेपन के अन इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन (असमान वितरण) की समस्या खड़ी हो गई. बताया जाता है कि बेलारूस के पास उस वक्त 100 न्यूक्लियर वीपन्स थे, कजाकिस्तान के पास 1400 तो वहीं यूक्रेन के पास 5 हजार न्यूक्लियर वीपन्स थे. कुछ रिपोर्ट्स का ये भी कहना है कि ये संख्या 9 हजार तक थी. इसके अलावा यूक्रेन के पास intercontinental ballistic missiles और strategic bombers भी थे. जानकार मानते हैं कि यूक्रेन उस वक्त nuclear arsenal रखने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश हुआ करता था.
न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल नहीं जानता था यूक्रेन
बेलारूस, कजाकिस्तान, यूक्रेन के पास न्यूक्लियर हथियार तो थे, मगर इसके इस्तेमाल के बारे मे किसी को कोई ख़ास जानकारी नहीं थी. इसलिए यूएस ने तय किया कि सारे न्यूक्लियर वेपन ये देश रूस को दे दें, जिसे न्यूक्लियर वेपन को इस्तेमाल करना आता है. यूएस को ये भी डर लगने था कि न्यूक्लियर वेपन का ग़लत इस्तेमाल करके ये देश खुद को ही तबाह ना कर लें. इसी को देखते हुए international community ने तुरंत बेलारूस, कजाकिस्तान और यूक्रेन को START I treaty और Non-Proliferation Treaty के अंतर्गत आने को कहा ताकि बेलारूस, कजाकिस्तान, यूक्रेन अपने न्यूक्लियर वेपन को कम कर दें या नष्ट कर दें. कजाकिस्तान, बेलारूस और यूक्रेन तैयार थे. इसी को लेकर 1994 में रूस, यूक्रेन, अमेरिका, बेलारूस, कजाकिस्तान के बीच Budapest Memorandum साइन हुआ.
बुडापेस्ट मेमोरेंडम का पहली बार उल्लंघन
2014 में रूस ने Budapest Memorandum का उलंघन करते हुए क्रीमिया पर आक्रमण किया और उसे यूक्रेन से हटा कर अपना हिस्सा बना लिया. इसे सबसे आसान आक्रमण भी कहा जाता है, क्योंकि यूक्रेन ने बगैर जंग लड़े ही क्रीमिया दे दिया था. नवंबर 2013 में यूक्रेन के राष्ट्रपति यानुकोविच यूरोपियन यूनियन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने से पीछे हट गए. इस समझौते से यूक्रेन को 15 अरब डॉलर की फाइनेंशियल पैकेज मिलने वाला था.
Minsk एग्रीमेंट का भी रूस ने नहीं किया पालन
फरवरी 2014 में यूक्रेन की राजधानी कीव में दर्जनों प्रदर्शनकारी मारे गए. प्रदर्शन तेज हो गए. आखिरकार यानुकोविच को देश छोड़कर जाना पड़ा और विपक्ष सत्ता में आ गया. यानुकोविच रूस के समर्थन में बताए जाते थे और इसी कारण कहा जाता है कि रूस ने 6 मार्च 2014 को क्रीमिया की संसद में जनमत संग्रह कराया जिसमें 97 फीसदी लोगों ने रूस में शामिल होने की बात कही. इस जनमत संग्रह को अमेरिका और यूरोपीय देशों ने अवैध करार दिया था. हालांकि, रूस ने दलील दी कि वहां 60 फीसदी लोग रूसी हैं और वो खुद के लिए फैसले का हक रखते हैं. क्रीमिया के रूस में शामिल होने के बाद रूस और यूक्रेन के बीच शांति बहाल करने के लिए minsk agreement साइन हुआ, मगर रूस यूक्रेन पर इस एग्रीमेंट को न मानने का आरोप आज तक लगाता है.
यूक्रेन का कितना सही फैसला था?
इस एग्रीमेंट के करीब आठ साल बाद अब वापस से रूस ने यूक्रेन पर हमला कर Budapest Memorandum का उल्लंघन किया है. कई लोगों के बीच ये बहस चलती है कि यूक्रेन का रूस को nuclear arsenal दे देना कितना सही फैसला था? कुछ लोगों का मत ये कहता है कि यूक्रेन का न्यूक्लियर हथियार के ऑपरेशनल को न जानना उसके लिए खुद एक परेशानी बन सकता था, वहीं कुछ लोग ये कहते हैं कि nuclear arsenal और वेपन यूक्रेन के लिए समस्या नहीं खड़ी करती, बल्कि भविष्य में उसे ताकतवर बना देता अगर वो कुछ साल का वक्त लगा कर न्यूक्लियर हथियार का ऑपरेशनल सीख लेता तो.
एक हिस्से में अलगाववाद हावी
रूस और यूक्रेन की एक लंबी कहानी है. 1991 में सोवियत संघ के टूटने से यूक्रेन का आजाद मुल्क बनना पर देश को एकजुट करते वक्त चुनौतियों का सामना करना. यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों में नेशनलिज्म पश्चिमी हिस्से के मुकाबले कमजोर है. ऐसे में लोकतंत्र और पूंजीवाद की ओर शिफ्ट आसान नहीं था. अराजकता का माहौल भी बना. पूर्वी यूक्रेन में ज्यादातर लोग अब भी रूसी कायदे-कानूनों से जुड़ाव महसूस करते हैं.
यह विभाजन 2004 के ऑरेंज रिवॉल्यूशन में भी साफ दिखा था. उस समय यूक्रेन के हजारों लोगों ने यूरोप से जुड़ने के लिए मार्च निकाले थे. इकोलॉजी देखें तो दक्षिणी व पूर्वी हिस्सों की जमीन पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा उपजाऊ है. लोगों में मतभिन्नता आपको यूक्रेन के 2004 और 2010 के राष्ट्रपति चुनावों में भी दिखाई दी थी.
(आजतक रेडियो से सूरज कुमार की रिपोर्ट)