
2014 में भारत की सत्ता नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी के पास आई तो विदेशी नीति में खाड़ी के देशों को काफी तवज्जो दी गई. इसके पीछे ठोस वजह भी थी. इस इलाके में लाखों की संख्या में भारतीय काम करते हैं और अरबों डॉलर कमाकर भारत भेजते हैं. इसके अलावा, भारत के तीन बड़े ट्रेड पार्टनर यूएई, सऊदी अरब और इराक इसी इलाके के देश हैं. तीनों देश भारत के तीसरे, चौथे और पांचवे बड़े ट्रेड पार्टनर हैं.
भारत की ऊर्जा सुरक्षा भी इन्हीं देशों पर निर्भर है. लेकिन पिछले दो हफ्ते से बीजेपी अपने दो प्रवक्ताओं के कारण खुद को असहज पा रही है. अरब के ये देश इस्लामिक हैं और बीजेपी प्रवक्ता ने पैगंबर मोहम्मद को लेकर विवादित टिप्पणी कर दी थी. इन इस्लामिक देशों से तीखी प्रतिक्रिया आई और इन आपत्तियों के बाद पैगंबर पर टिप्पणी करने वालीं बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपुर शर्मा की पार्टी सदस्यता निलंबित हो गई और दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता नवीन जिंदल को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. भारत सरकार की प्रतिक्रिया बेहद संतुलित रही लेकिन इसके साथ ही अरब देशों के साथ रिश्तों के भविष्य के संबंध को लेकर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं.
आइए एक नजर डालते हैं कि भारत के लिए खाड़ी के देश इतने अहम क्यों हैं?
भारत के लिए खाड़ी देशों के महत्व को उनके साथ होने वाले व्यापार से समझा जा सकता है. खाड़ी क्षेत्र के छह अरब देशों बहरीन, कतर, कुवैत, ओमान, सऊदी अरब और यूएई को गल्फ कॉरपोरेशन काउंसिल (जीसीसी) कहा जाता है.
भारत में आयात होने वाले तेल का एक तिहाई हिस्सा इन्हीं जीसीसी देशों से आता है. कतर से भारत में सबसे अधिक एलएलजी की सप्लाई होती है.
आसान शब्दों में कहें तो ये छह जीसीसी देश ही भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करते हैं.
जीसीसी देशों में लगभग 90 लाख भारतीय प्रवासी मजदूर रहते हैं. बीते तीन सालों में भारत भेजी जाने वाली रकम (रेमिटेंस) की राशि 80 अरब डॉलर से अधिक रही है. इसमें जीसीसी देशों की भागीदारी लगभग 65 फीसदी है. विदेश में रहने वाले भारतीय अपने परिवारों के लिए जो पैसा भारत भेजते हैं, उसे रेमिटेंस कहा जाता है.
भारत के वैश्विक कारोबार में इन देशों की भागीदारी लगभग 15 फीसदी है. इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था में जीसीसी देशों की अहम भूमिका है. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, जीसीसी देशों में यूएई, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार देश है. अमेरिका और चीन के बाद इसका तीसरा स्थान है.
यूएई के साथ व्यापार, भारत के कुल व्यापार का सात फीसदी से भी अधिक है. 2021-2022 के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने 28 अरब डॉलर के सामान और सेवाओं का निर्यात किया. भारत का आयात लगभग 45 अरब डॉलर रहा.
ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2021-2022 में जीसीसी के साथ भारत का द्विपक्षीय कारोबार लगभग 154 अरब डॉलर रहा. भारत का व्यापार घाटा 67 अरब डॉलर रहा. हालांकि, 2019 से पहले खाड़ी क्षेत्र से रेमिटेंस 50 अरब डॉलर के आसपास रहा.
जीसीसी देशों से भारत होने वाला लगभग 60 फीसदी आयात कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का होता है. अन्य सामानों में हीरा, सोना और पॉलीमर है.
वहीं, जीसीसी देशों को भारत के निर्यात में आभूषण, रिफाइन्ड पेट्रोलियम, चावल, गारमेंट्स, कारें और ब्रॉडकास्टिंग उपकरण हैं.
2021 में भारत और यूएई ने कॉम्प्रेहेंसिव इकॉनोमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट (सीईपीए) के तहत आर्थिक समझौते के लिए बातचीत शुरू की थी. यह बातचीत इस साल पूरी हुई.
भारत के विदेश मंत्रालय ने फरवरी 2022 में जारी बयान में कहा था, सीईपीए के लिए सितंबर 2021 में बातचीत शुरू हुई थी और अब यह पूरी हुई.
यह समझौता भारत, यूएई के बीच आर्थिक और व्यावसायिक जुड़ाव को अगले स्तर पर लेकर जाएगा.
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के रिसर्च पेपर से पता चला है कि हाल के सालों में भारत और जीसीसी के बीच व्यापार और निवेश संबंध बहुत बढ़े हैं. जीसीसी देशों में भारतीय निवेश महत्वपूर्ण रहा है लेकिन हाल के दिनों में इन देशों का भारत में निवेश बढ़ा है. खाड़ी देश भारत को निवेश के लिहाज से पसंदीदा देशों में से एक मानते हैं.