क्राइम की खबरें... मतलब शम्स ताहिर खान. क्राइम रिपोर्टिंग की दुनिया में पिछले 18 सालों से ये नाम सबसे ऊपर और सबसे विश्वसनीय रहा है. इसकी वजह भी है. शम्स ने अखबार में क्राइम की खबरों को पेज थ्री से उठा कर पहले पन्ने पर जगह दिलाई तो टीवी में क्राइम की खबरों को ना सिर्फ हेडलाइन बनवाई बल्कि क्राइम के अलग-अलग शो की शुरुआत भी की.
1993 में बतौर क्राइम रिपोर्टर हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ से शम्स ने पत्रकारिता की शुरुआत की. जनसत्ता में सात साल काम करने के बाद दिसंबर 2000 में ‘आज तक’ के साथ जुड़े. अपने 18 साल के करियर में क्राइम की खबरों को एक नया आयाम देने के साथ-साथ उसे एक नई पहचान दिलाई.
पिछले 18 सालों में देश में क्राइम की जितनी भी बड़ी घटनाएं घटीं, उसे शम्स ने एक अलग अंदाज में कवर किया. किसी न्यूज़ चैनल पर पहला वीकली क्राइम शो लॉन्च करने का आइडिया भी शम्स का ही था. मार्च 2003 में ‘आज तक’ पर साप्ताहिक क्राइम शो 'जुर्म' शुरू किया जो पूरे देश में लोकप्रिय हुआ. 'जुर्म' की लोकप्रियता के बाद ही दूसरे न्यूज़ चैनल ने भी वीकली क्राइम शो शुरू किया. 'जुर्म' के बाद ‘आज तक’ पर डेली क्राइम शो ‘वारदात’ की शुरुआत की.
फॉरेंसिक इनवेस्टिगेशन पर देश का पहला शो 'राज़' भी शम्स ने शुरू किया. मानवाधिकार उल्लंघन और बरसों जेल काटने के बाद अदालत से बेगुनाह करार दिए गए लोगों पर बनी सीरीज 'कोई लौटा दे मेरे...' को ना सिर्फ लोगों ने सराहा बल्कि इसे 'रेड इंक' और एनटी अवार्ड से भी नवाज़ा गय़ा.
क्राइम के अलावा शम्स ने बहुत सी चर्चित डाक्यूमेंट्री भी बनाई. जिनमें "अयोध्या की आवाज़ सुनो', मुंबई हमले पर 'मेरे मातम का कोई नाम नहीं', भोपाल गैस त्रासदी पर 'रात क्या होती है भोपाल से पूछो', चुनावों में मुस्लिम राजनीति पर 'जीतेगा भाई जीतेगा' सत्याग्रह, गांधी हत्याकांड पर 'हे राम'...इन सभी डॉक्यूमेंट्री को अलग-अलग अवॉर्ड भी मिले. देश के अलावा शम्स ने बगदादी के गढ़ इराक में मोसुल से भी रिपोर्टिंग की जिसके लिए बेस्ट इंटरनेशनल रिपोर्टर का ईएनबीए अवॉर्ड भी मिला.
शम्स की क्राइम के साथ-साथ स्क्रिप्ट, क्राइम के पीछे के दर्द और मानवीय पहलू पर खास पकड़ है. क्राइम की खबरों को अलग अंदाज में लिखने और उसे अलग ढंग से पेश करने में उनका कोई सानी नहीं है.