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कला, व्याकरण-शब्दावली... संस्कृत और संस्कृति का आधार है प्राचीन भारत की नृत्य परंपरा

डमरू के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियां निकली, इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का स्वरूप सामने आया. इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक नटराज को माना जाता है. महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव के आशीर्वाद से प्राप्त किया जो कि पाणिनीय संस्कृत व्याकरण का आधार बना.

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शिवजी के नृत्य का समापन ही व्याकरण की शुरुआत है
शिवजी के नृत्य का समापन ही व्याकरण की शुरुआत है

नृत्य... ताल के साथ मेल करती हुई भाव भंगिमा पर आधारित एक गतिविधि, देखा जाए तो नृत्य की यही सबसे आसान परिभाषा है. दूसरे शब्दों में कहें तो जो नित्य है, वही नृत्य है. भरतमुनि के नाट्य शास्त्र में भारत की प्राचीन नृत्य परंपरा अनुमानतः 7000 साल पुरानी मिलती है और जो काफी विकसित भी रही. भारतीय नृत्य की प्रेरणा महादेव शिव हैं, जिनके लिए नृत्य भी उनके योग का एक अंग है. उनका प्रिय और सबसे अधिक पहचान पाने वाला नृत्य तांडव है.

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विनाश का जरिया ही नहीं सृजन का प्रतीक भी है तांडव
यह तांडव सिर्फ विनाश का जरिया नहीं है, बल्कि सृजन का प्रतीक है. शिव जब प्रसन्न होते हैं, तब भी नृत्य करते हैं और वह आनंद तांडव कहलाता है. उनके इसी नृ्त्य के साथ जुड़ा हुआ संस्कृत व्याकरण के जन्म का इतिहास. शिवपुराण की एक कथा के अनुसार, शिव ने अपस्मार नामके वैचारिक राक्षस को कंट्रोल करने के तांडव नृत्य किया. उन्होंने बौने अपस्मार को अपने पैरों तले दबा लिया और 108 अलग-अलग मुद्राओं को ताल से मेल करते हुए सही गति में प्रस्तुत किया. यही मुद्राएं नृत्य बन गईं और इसे तांडव नृत्य कहा गया.

नृत्य के अंत में महादेव ने 14 बार डमरू का वादन किया. अपस्मार इसे सह नहीं पाया और अचेत हो गया. डमरू की इन 14 ध्वनियों का पाणिनी ने विश्लेषण किया और वह उन्हें जिन अक्षरों के रूप में सुनाई दीं उनको संकलित करते हुए संस्कृति विद्वान पाणिनी ने सूत्रों के रूप में सामने रखा. यही 14 सूत्र माहेश्वर सूत्र कहलाए. माहेश्वर सूत्रों की उत्पत्ति भगवान नटराज (शिव) के द्वारा किए गए तांडव नृत्य से मानी गई है, इस तरह तांडव नृत्य के जन्म का भी आधार बना और संस्कृत व्याकरण के जन्म का भी.
 

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तांडव

"नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥"

अर्थ- "नृत्य (तांडव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना की पूर्ति के लिये नवपंच (चौदह) बार डमरू बजाया. इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुई."

डमरू के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियां निकली, इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का स्वरूप सामने आया. इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक नटराज को माना जाता है. महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव के आशीर्वाद से प्राप्त किया जो कि पाणिनीय संस्कृत व्याकरण का आधार बना.

1. अ इ उ ण्
2. ऋ ऌ क्
3. ए ओ ङ्
4. ऐ औ च्

5. ह य व र ट्
6. ल ण्
7. ञ म ङ ण न म्

8. झ भ ञ्
9. घ ढ ध ष्
10. ज ब ग ड द श्

11. ख फ छ ठ थ च ट त व्
12. क प य्
13. श ष स र्
14. ह ल्
 
भरतनाट्यम नृत्य की प्रेरणा है तांडव
नटराज का नृत्य केवल आकर्षण का केंद्र नहीं है, बल्कि यह कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों, विशेष रूप से भरतनाट्यम, के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है. इस प्राचीन नृत्य रूप नटराज द्वारा व्यक्त की गई कई विचारों और मुद्राओं को अपनाता है. इसके नर्तक अपने प्रदर्शन में नटराज की मुलायम और लयबद्ध गति को व्यक्त करने की कोशिश करते हैं, और इस प्रकार ब्रह्माण्डीय नृत्य को जीवित करते हैं. सद्गुरु ने इसीलिए इसे कॉस्मिक डांस ऑफ यूनिवर्स कहा है.

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