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भरतनाट्यम, कथक से गरबा और भांगड़ा तक... हमारी संस्कृति की धड़कन है नृत्य

भारत में शास्त्रीय नृत्य केवल एक कला नहीं, बल्कि एक साधना है. यह नृत्य रूप नाट्यशास्त्र पर आधारित होते हैं और इनमें भाव, राग, ताल एवं मुद्राओं का गहन समन्वय देखने को मिलता है. प्रमुख भारतीय शास्त्रीय नृत्य अलग-अलग प्रदेशों की खासियत के साथ सामने आता है.

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भारत के शास्त्रीय नृत्य
भारत के शास्त्रीय नृत्य

नृत्य उस जादुई दुनिया का नाम है, जहां हर ताल, थाप और कदम एक नई कहानी सुनाता है. नृत्य केवल शरीर की गतियों का खेल नहीं, बल्कि भावनाओं और संवेदनाओं की भाषा है. जब शब्द असमर्थ हो जाते हैं, तब नृत्य अपनी गहरी अभिव्यक्ति से भावों को प्रकट करता है. यह कला रूप न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि इतिहास, संस्कृति, और अध्यात्मिकता से भी गहराई से जुड़ा हुआ है.

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संस्कृत में 'नृत्य' का अर्थ है लयबद्ध गति के माध्यम से किसी भावना को व्यक्त करना. यह मात्र शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मा की भाषा भी है. नृत्य में लय, ताल, भाव और गति का संयोजन होता है, जिससे यह एक सम्पूर्ण कला बनता है. यह कला रूप हमारे अतीत से लेकर आधुनिक समय तक अनेक रूपों में विकसित हुआ है.

हर प्रदेश का अलग नृत्य
भारत में शास्त्रीय नृत्य केवल एक कला नहीं, बल्कि एक साधना है. यह नृत्य रूप नाट्यशास्त्र पर आधारित होते हैं और इनमें भाव, राग, ताल एवं मुद्राओं का गहन समन्वय देखने को मिलता है. प्रमुख भारतीय शास्त्रीय नृत्य अलग-अलग प्रदेशों की खासियत के साथ सामने आता है.

भरतनाट्यम (तमिलनाडु): प्राचीनतम नृत्य शैली जिसमें भक्ति रस प्रधान होता है.

कथक (उत्तर भारत): कहानी कहने की शैली जिसमें भाव-भंगिमा, पद संचालन और चक्कर महत्वपूर्ण होते हैं.

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कुचिपुड़ी (आंध्र प्रदेश): यह नृत्य नाटकीयता के लिए प्रसिद्ध है.

ओडिसी (ओडिशा): इसमें त्रिभंगी मुद्रा और कोमलता प्रमुख होती है.

मणिपुरी (मणिपुर): भक्ति प्रधान नृत्य जिसमें कोमलता और सौम्यता प्रमुख होती है.

कथकली (केरल): यह मुखौटे और भव्य वेशभूषा वाला नाट्य प्रधान नृत्य है.

सत्रिया (असम): असम के वैष्णव संप्रदाय से जुड़ा यह नृत्य भाव और भक्ति से भरपूर है.

मोहिनीअट्टम (केरल): यह विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है, जो सौंदर्य और कोमलता से परिपूर्ण है.

कथकली (केरल): यह नृत्य भी केरल का ही शास्त्रीय नृत्य है, जिसमें मुखौटों का खास महत्व है.

नृत्य


लोक नृत्य: संस्कृति की धड़कन

जहां शास्त्रीय नृत्य अनुशासन और परंपरा का प्रतीक हैं, वहीं लोक नृत्य किसी भी समाज की संस्कृति, परंपराओं और जीवनशैली को दर्शाते हैं. लोक नृत्य किसी विशेष क्षेत्र से जुड़े होते हैं और उत्सवों और त्योहारों का अभिन्न अंग होते हैं. भारत के कुछ प्रमुख लोक नृत्य भी हैं.

भांगड़ा (पंजाब): ऊर्जा और जोश से भरा यह नृत्य खेती-बाड़ी से जुड़ा है.

गरबा (गुजरात): नवरात्रि में किया जाने वाला यह नृत्य डांडिया रास के साथ प्रसिद्ध है.

घूमर (राजस्थान): महिलाएं इसे समूह में घूँघट के साथ करती हैं.

बिहू (असम): यह नृत्य फसल कटाई के समय किया जाता है.

लावणी (महाराष्ट्र): यह तेज गति और आकर्षक हाव-भाव से भरपूर होता है.

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यक्षगान (कर्नाटक): यह नाटकीय शैली का नृत्य नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.

समय के साथ नृत्य शैलियां भी बदलीं

जैसे-जैसे समय बदला, नृत्य शैलियां भी विकसित हुईं. आज के दौर में नृत्य कला का एक नया स्वरूप देखने को मिलता है. बॉलीवुड डांस, हिप-हॉप, कंटेम्पररी, सालसा और बैले जैसे नृत्य रूपों ने भी भारतीय मंच पर अपनी जगह बना ली है. आधुनिक नृत्य सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि फिटनेस और आत्म-अभिव्यक्ति का भी माध्यम बन चुके हैं.

नृत्य

मन, शरीर और आत्मा के लिए वरदान है नृत्य

नृत्य एक बेहतरीन व्यायाम है, जो हृदय स्वास्थ्य को सुधारता है और लचीलापन बढ़ाता है. यह तनाव को कम करता है और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देता है. यह हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है और हमारी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है. जब शब्द कम पड़ जाते हैं, तब नृत्य अपने हाव-भाव से गहरी भावनाओं को व्यक्त करता है. इसलिए यह आत्म अभिव्यक्ति का सरल जरिया भी है.

नृत्य केवल एक कला नहीं, बल्कि भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का सबसे सुंदर माध्यम है. यह हमारी परंपराओं, संस्कृति, और आध्यात्मिकता का प्रतिबिंब है. चाहे वह शास्त्रीय हो, लोक हो या आधुनिक, नृत्य हमेशा हमें आनंद और आत्म-अभिव्यक्ति का अवसर देता है. नृत्य केवल मंच पर ही नहीं, जीवन के हर पहलू में मौजूद होता है.

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