राजधानी दिल्ली में बीते साल 2024 में जब G20 सम्मेलन का आयोजन हुआ तब भारत मंडपम की भव्यता की भी हर ओर चर्चा रही थी. इस भव्यता की शोभा तब और बढ़ गई, जब यहां 'नटराज' की विशाल प्रतिमा का अनावरण हुआ. अष्टधातु से बनी यह नटराज की प्रतिमा दुनिया में सबसे ऊंची प्रतिमा बताई जाती है. नटराज असल में भगवान शिव का ही एक स्वरूप है, जिसमें वह नृत्य कर रहे हैं. महान योगी और ध्यानी शिव, नृत्य के भी प्रणेता हैं और संसार के प्रथम नर्तक भी माने जाते हैं. उनका यही नृत्य स्वरूप नटराज कहलाता है.
भारत की नट जाति और नटराज
भारत के प्राचीन जनजातीय समूहों में एक जाति 'नट' भी शामिल है. 21वीं सदी की शुरुआत तक नट जाति के लोग गांवों-कस्बों में दिख जाया करते थे. अभी भी ये सुदूर गांवों में मौजूद हैं. मेलों में करतब दिखाते, सड़क किनारे अपने जिम्नास्ट जैसे कौशल का बेजोड़ प्रदर्शन करते ये कलाकार 'नट' समुदाय से ही ताल्लुक रखते हैं, हालांकि अब इनकी जगह मॉल्स में दिखने वाले क्लाउन ने ले ली है, जो कभी जोकर का मुखौटा पहने कुछ करतब दिखाते दिख जाते हैं.
ललित कला के तीन प्रमुख कौशल का नमूना है नटराज
खैर, नट पर लौटते हैं. शिव का नटराज स्वरूप ललित कला के तीन प्रमुख कौशल, नृत्य, मूर्त शिल्प और चित्रकला की शुरुआत का सबसे बेजोड़ नमूना है. विश्व भर में आपको इसके तीनों विधाओं के स्वरूप आसानी से मिलेंगे, लेकिन इसके मूल में नृत्य ही सबसे प्रमुख है और पहले इसी पर बात करना जरूरी है.
क्या शिव के नृत्य से प्रलय आती है?
शिव का नटराज अवतार, असल में उनके द्वारा किए नृत्य का फाइनल पोज (प्रतिनिधि मुद्रा) है. उनके नृत्य के विषय में सबसे मशहूर तथ्य ये है कि वह तांडव जैसा भयानक नृत्य करते हैं और इसके फाइनल पोज तक पहुंचते-पहुंचते प्रलय आ जाती है और इस तरह उन्हें संहारक कहा गया है. यह सिर्फ अधूरा तथ्य है.
शिव तांडव के दो स्वरूप
शिव तांडव के दो स्वरूप हैं, आनंद तांडव और रुद्र तांडव. रुद्र तांडव को ही क्रोध तांडव भी कहते हैं. शिव के आनंद तांडव में शृंगार की प्रधानता है और यह नई विचारधारा का सृजन करने वाला नृत्य है. इसमें पॉजिटिव वाइब है और यह चेतना का स्वरूप है. आनंद तांडव की शुरुआत ओंकार की मूल ध्वनि से होती है.
तांडव के विषय में सद्गुरु कहते हैं कि असल में यह संसार एक नृत्य ही तो है. यहां सबकुछ नाच रहा है. पदार्थ का सबसे छोटा कण, परमाणु भी नृत्य कर रहा है. ऊर्जा का प्रवाह हो ही इसलिए रहा है कि उसमें गति है. वह कहते हैं नृत्य ही तो है, जिसकी वजह से सृष्टि अस्तित्व में आती है. इस अस्तित्व में शिव का नृत्य ही सुसंगति लाता है.
शिव की तांडव मुद्रा की खासियत
शिव का नटराज स्वरूप उनके अन्य स्वरूपों की तरह मनमोहक है और उसकी कई व्याख्याएं हैं. शिव संसार में उपस्थित सभी कलाओं के देवता माने जाते हैं. नटराज शिव की प्रसिद्ध प्राचीन मूर्ति में नर्तक शिव की चार भुजाएं हैं, उनके चारों ओर अग्नि के घेरें हैं. उनके एक पांव से उन्होंने एक बौने (अकश्मा, जिसे अपस्मार भी कहते हैं) को दबा रखा है, और दूसरा पांव नृत्य मुद्रा में ऊपर की ओर उठा हुआ है. उन्होंने अपने पहले दाहिने हाथ में (जो कि ऊपर की ओर उठा हुआ है) डमरू पकड़ा हुआ है.
शिव की नटराज मुद्रा की खासियत
इसी डमरू की आवाज को सृजन का प्रतीक कहा गया है. इस प्रकार यह नृत्य शिव की सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक है, जो उनके संहारक होने के सबसे प्रसिद्ध तर्क और तथ्य से अलग व्याख्या है. ऊपर की ओर उठे हुए उनके दूसरे हाथ में अग्नि है. यह अग्नि ही विनाश का प्रतीक है, इसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि शिव ही एक हाथ से सृजन करते हैं तथा दूसरे हाथ से संहार, लेकिन इसे इस तरीके देखा जाना चाहिए कि शिव एक हाथ से सृजन करते हैं और दूसरे हाथ में अग्नि को थामकर, उन्होंने विनाश करने वाली शक्तियों को कंट्रोल कर रखा है.
अभय मुद्रा, मोक्ष और अज्ञानता का नाश
उनका दूसरा दाहिना हाथ अभय (या आशीष) मुद्रा में उठा हुआ है जो कि हमारी रक्षा करता है. बीते दिनों संसद में राहुल गांधी ने कई बार अभय मुद्रा का जिक्र किया था. नटराज शिव का दाहिना हाथ जिस तरह से आशीष की मुद्रा में उठा हुआ है, वही सबसे प्राचीन अभय मुद्रा है. इसमें चार अंगुलियां एक साथ मिली हुई हैं और अंगूठा भी उन्हीं की दिशा में उठा हुआ है. ये पंचतत्व का प्रतीक हैं. वही पंचतत्व, जिनसे ये सारी सृष्टि बनी है.
शिव चरणों में है मोक्ष
शिव का एक पांव उठा हुआ है, यह मोक्ष है. उनका दूसरा बायां हाथ उनके उठे हुए पांव की ओर इंगित करता है, यानि शिव मोक्ष के मार्ग पर आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. इसका अर्थ यह भी है कि शिव के चरणों में ही मोक्ष है. उनके पांव के नीचे कुचला हुआ बौना दानव अज्ञान का प्रतीक है जो कि शिव द्वारा नष्ट किया जाता है.
अज्ञान नाशक हैं शिव
शिव अज्ञान का विनाश करते हैं. चारों ओर उठ रही आग की लपटें इस ब्रह्माण्ड की प्रतीक हैं. उनके शरीर पर से लहराते सर्प कुण्डलिनी शक्ति के प्रतीक हैं, यह इस बात के भी प्रतीक हैं, कि हमारी इच्छा और आकांक्षाओं ने किस तरह हमें जकड़ रखा है. उनकी संपूर्ण आकृति ॐ कार जैसी दिखती है. ॐ खुद में ब्रह्मांड है और ब्रह्मांड शिव में समाया हुआ है.
शिव की यह मुद्रा चेतना का साकार स्वरूप है और साधना के सबसे ऊंचे आयाम को सामने रखता है. यही वह मुद्रा है, जिससे ललित कलाओं का जन्म होता है.
सभी नृत्य विधाओं के जनक हैं नटराज
नटराज कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों, विशेष रूप से भरतनाट्यम, के लिए प्रेरणा का स्रोत है. यह प्राचीन नृत्य शैली नटराज द्वारा सामने रखी गईं कई मुद्राओं को अपनाता है. नटराज की मुद्राएं भरतनाट्यम की कोरियोग्राफी में एक मौलिक तत्व के रूप में काम करती है. नर्तक अपने प्रदर्शन में नटराज की मुलायम और लयबद्ध गति को व्यक्त करने की कोशिश करते हैं, और इस प्रकार ब्रह्माण्डीय नृत्य को जीवित करते हैं.
ओडिशी, कुचीपुड़ी से कथक तक
दूसरे भारतीय शास्त्रीय नृत्य जैसे ओडिशी, कुचिपुड़ी, और कथक भी नटराज से प्रेरित हैं. वे अपनी प्रस्तुतियों में नटराज की विशिष्ट हाथ की मुद्राओं और आसनों को शामिल करते हैं, जो भारत में नृत्य और धर्म के बीच गहरे संबंध को दर्शाता है. इन आकर्षक प्रस्तुतियों के जरिए नटराज के नृत्य का वास्तविक सार जीवित होता है, जो नर्तक, दर्शक और कला के पीछे के गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक विचारों के बीच एक कनेक्शन स्थापित करता है. नटराज आज भी नर्तकों को प्रेरित करता है, चाहे वे शास्त्रीय हों या आधुनिक, और यह उसकी स्थायी शक्ति और कालातीत आकर्षण को प्रदर्शित करता है.