शिव महापुराण में शिवजी के 24 अवतारों का वर्णन है. इसमें एक अवतार है सुनटनर्तक. शिव ने ये अवतार क्यों लिया था इस बारे में कहते हैं कि पार्वती, शिव से विवाह की इच्छा लिए तपस्या कर रही थीं. शिव, जो एक बार सती प्रसंग (दक्ष यज्ञ में सती विध्वंस) के कारण गृहस्थ से विमुख हो चुके थे और अब दोबारा वह विवाह के फेर में नहीं पड़ना चाहते थे. इधर, एक असुर था तारक, जिसने शिवपुत्र के हाथों ही मारे जाने का वरदान पा लिया था. यानि अगर शिव विवाह नहीं करते हैं तो यह वरदान उसके लिए अपने आप में अमरत्व से कम नहीं था.
शिव क्यों बने सुनटनर्तक
देवताओं के बहुत कहने पर शिव, पार्वती को दर्शन देने के लिए राजी तो हुए, लेकिन वह फिर भी पार्वती को दर्शन देने से बच रहे थे. इसकी वजह थी शिव का पहला विवाह जो सती से हुआ था. सती ने पिता दक्ष की इच्छा के विरुद्ध जाकर शिव से विवाह किया और इसका परिणाम ये हुआ कि सती को भस्म होना पड़ा. इसलिए शिव पहले हिमालय की ओर से संतुष्ट होना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सुनटनर्तक का अवतार लिया.
आनंद तांडव भी करते हैं शिव
इस स्वरूप में वह डमरू बजाते हुए हिमालय के भवन के बाहर पहुंचे और आनंद नृत्य किया. इस नृत्य से राजा हिमालय खुश हुए और नर्तक से जो भी इच्छा चाहे वो वर मांगने को कहा. शिव ने मौका पाते ही पार्वती को मांग लिया. यह सुनते ही राजा हिमालय और उनकी पत्नी मैना बहुत नाराज हुए, लेकिन उसी समय नारद मुनि और सप्तऋषि मौके पर पहुंचे और हिमालय को सुनटनर्तक के वास्तविक रूप को समझाया और पार्वती के पूर्वजन्म की भी कथा सुनाई. ये सब सुनकर हिमालय बहुत खुश हुए और शिवजी से क्षमा मांगते हुए पार्वती के साथ उनका विवाह करने का संकल्प लिया. शिव ने जो नृत्य किया वह आनंद नृत्य का एक उदाहरण है.
सर्वश्रेष्ठ नर्तक हैं शिव
नटराज शिव का वह स्वरूप है, जिसमें वह सबसे उत्तम नर्तक हैं. नटराज शिव का स्वरूप न सिर्फ उनके संपूर्ण काल को दर्शाता है, बल्कि यह भी बिना किसी संशय स्थापित करता है कि ब्रह्माण्ड में स्थित सारा जीवन, उनकी गति कंपन और ब्रह्माण्ड से परे शून्य की नि:शब्दता सभी कुछ एक शिव में ही निहित है. नटराज दो शब्दों के समावेश से बना है – नट (अर्थात कला) और राज. इस स्वरूप में शिव कलाओं के आधार हैं.
अपस्मार बौने पर विजय
शिव के नट स्वरूप धारण करने के पीछे एक और कथा है. शिव पुराण में शिव के एक राक्षस पर विजय की घटना को बताता है. उस राक्षस का नाम अपस्मार है. असल में अपस्मार, एक राक्षस नहीं, बल्कि राक्षसी विचार है जो अहंकार का प्रतीक है. शिव इस अहंकार के दमनकर्ता हैं. शिव ने तांडव क्यों किया, इसकी एक और कथा प्रसिद्ध है और यह मेडिकल साइंस से भी जुड़ती है. कथा के अनुसार अपस्मार एक बौना राक्षस था, जो स्वयं को सर्वशक्तिशाली और दूसरों को हीन समझता था.
उसे किसी की भी चेतना हर लेना का वरदान था. अपस्मार के प्रभाव में आकर लोग सोचने-समझने की क्षमता ही खो देते थे. उसने ऋषियों को अपने प्रभाव में लेकर उन्हें सत्कर्म से विमुख कर दिया. अपनी इस शक्ति और अमरता के कारण उसे अभिमान हो गया कि उसे कोई परास्त नहीं कर सकता है. एक बार कई ऋषि अपनी-अपनी पत्नियों के साथ हवन एवं साधना कर रहे थे, जिन्हें अपनी सिद्धियों पर अभिमान हो गया था.
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ऋषियों ने बनाया अपस्मार को बलशाली
इसी दौरान वहां शिव नट स्वरूप में और देवी पार्वती भिक्षुणी बनकर पहुंचीं. शिव ने नट स्वरूप में नृत्य करना शुरू किया तो स्त्रियां हवन से उठ गईं और उन्हें देखने लगीं. तब ऋषियों ने मंत्र शक्ति से कई सर्पों को उन पर हमला करने के लिए भेजा. शिव ने उन्हें अपने अलग-अलग अंगों में हार की तरह सजा लिया. किसी को कंठ में पहने लिया, किसी को कमर में बांध लिया. दो नागों को उन्होंने बाजूबंद बना लिया. जब ऋषियों ने खुद को हारते हुए देखा तब उन्होंने अपस्मार को प्रकट किया और अपनी सारी चेतना शक्ति उसे दे दीं. इससे अपस्मार बहुत बलशाली हो गया.
शिव ने अपस्मार को पैरों तले दबाया
अब अपस्मार ने दोनों पर आक्रमण किया और अपनी शक्ति से पार्वती को भी भ्रमित कर दिया और उन्हें अचेत कर दिया. शिव, जो अब तक अपस्मार की ताकत आजमा रहे थे, वह बहुत क्रोधित हो गए और फिर उन्होंने नटराज स्वरूप का विस्तार किया. उन्होंने अपना एक पैर उठाकर अपस्मार को पैर के तले दबा दिया और उसी पर खड़े होकर नृत्य करने लगे. शिव ने नृत्य खत्म होने पर 14 बार डमरू का नाद किया उस भीषण नाद को अपस्मार सहन नहीं कर पाया और अचेत हो गया. शिव ने उसका वध नहीं किया, बल्कि उसे नियंत्रित कर लिया. जब उन साधुओं ने भगवान शिव का वो रूप देखा, तो उनका अहंकार चूर-चूर हो गया. इस तरह नटराज की यह प्रतिमा साकार हो उठी.
अहंकार का प्रतीक है अपस्मार
नटराज की प्रतिमा में दिखाई देता है कि, शिव की चार भुजाएं हैं, उनके चारों ओर अग्नि का घेरा है, एक पांव के नीचे वह बौना अपस्मार दबा हुआ है और दूसरा पांव नृत्य मुद्रा में ऊपर की ओर उठा हुआ है. उन्होंने अपने दाहिने हाथ में डमरू पकड़ा हुआ है. ऊपर की ओर उठे हुए उनके दूसरे हाथ में अग्नि है. दूसरा दाहिना हाथ अभय (या आशीष) मुद्रा में उठा हुआ है और इसके नीचे ही चौथे हाथ की मुद्रा पैरों की ओर है. उनके शरीर पर सर्प लहरा रहे हैं. बौने अपस्मार के हाथ में भी एक सांप पकड़ा हुआ है. अपस्मार बौना इसलिए दिखाया जाता है, क्योंकि यह प्रतीक है कि अहंकार कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसका कद छोटा ही होता है. शिव इस स्वरूप के साथ ब्रह्मांड कि विशालता को समझने का इशारा करते हैं. अहंकार का दमन ही नटराज स्वरूप की व्याख्या है.