उनके झुर्रियों भरे हाथ प्रार्थना के लिए जुड़े हैं. झुर्रियां, जिनकी लकीरों और दरारों के बीच जिंदगी के कई धूप-छांव भरे मौसम का अनुभव समाया हुआ है. चेहरा थोड़ा ऊपर की ओर उठा हुआ और मोटे गोल फ्रेम वाले चश्मे से ढकी हुई आंखें शायद ईष्ट को निहार रही हैं. सिर पर सफेद पल्लू है और उनके किनारों से जिंदगी के चौथे पन की झलक दिखलाती कुछ लटें बाहर की ओर झांक रही हैं.
ये सारी जीवंत भंगिमाएं एक तस्वीर में कैद हैं और इस तस्वीर को लेंस की नजर से दिखाने का काम किया है फोटोग्राफर राजेद्र मोहन पांडेय ने. बीते लगभग 10 दिनों से यह तस्वीर उस प्रदर्शनी का हिस्सा थी, जो राजधानी दिल्ली के ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसाइटी (एआईएफएसीएस) गैलरी में हाल ही में संपन्न हुई.
आंद्रेई स्टेनिन अंतरराष्ट्रीय प्रेस फोटो प्रतियोगिता
ये प्रदर्शनी आंद्रेई स्टेनिन अंतरराष्ट्रीय प्रेस फोटो प्रतियोगिता के तहत लगाई गई थी, भावनाओं के असीम ज्वार से भरी ऐसे ही तमाम तस्वीरें दीवार पर टंगी हुई थी और हर तस्वीर अपनी एक अलग कहानी सुना रही थी. बस जरूरत थी तो ठहरकर और आंख भरकर उन्हें देखने की.
कहते भी हैं, तस्वीर एक शब्द रहित कविता है जो लिखे और गढ़े गए गीतों-काव्यों या कहानियों से कुछ अधिक ही बताने की क्षमता रखती है. जो बातें आप पढ़कर या सुनकर समझेंगे, एक तस्वीर उस पूरे घटनाक्रम को अपने एक दृश्य में समेट लेती है और फिर पूरे रहस्य को देखने वाले की आंखों के आगे खोल देती है.
फिर चाहे वह युद्ध का मंजर हो, शांति के गीत हों, संस्कृति का रंग-ढंग हो या फिर इतिहास के ही किसी पल का कोई पहलू... ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसाइटी गैलरी की हर तस्वीर ने न सिर्फ खूबसूरती से अपनी कहानी बयां की, बल्कि उनके पीछे छुपी गहरी भावनाओं और सच्चाइयों से भी दर्शक रूबरू हुए.

क्यों आयोजित होती है प्रतियोगिता
इस प्रतियोगिता में 75 देशों के 385 युवा फोटो जर्नलिस्ट्स ने अपनी कला का जादू बिखेरा, और इनमें से चुनी गईं 55 तस्वीरें इस प्रदर्शनी की शान बनीं. यह प्रतियोगिता हर साल रूस के सेवस्तोपोल इंटरनेशनल इंफॉर्मेशन एजेंसी 'रॉसिया सेगोडन्या' द्वारा आयोजित की जाती है, जो वॉर फोटो जर्नलिस्ट आंद्रेई स्टेनिन को समर्पित है. साल 2014 में यूक्रेन में ड्यूटी के दौरान स्टेनिन मारे गए थे और उनकी स्मृति में यह मंच दुनिया भर के युवा फोटोग्राफर्स को एकजुट करता है.
इस प्रदर्शनी को देखना ऐसा था, मानो एक ही छत के नीचे दुनिया के हर कोने की कहानियां सिमट आई हों. युद्ध के धुएं से भरे मलबे से लेकर शांति के सौम्य पलों तक, इतिहास के पन्नों से लेकर संस्कृति के रंगों तक, हर तस्वीर में एक अलग अहसास था. क्यूरेटर नंदन सुमन सिंह (प्रसार भारती से जुड़े पत्रकार) कहते हैं, "ये तस्वीरें एक दुर्लभ मौका हैं, जब आप युद्ध, शांति, इतिहास, संस्कृति और विरासत को एक साथ जोड़ते हुए देखते हैं. ऐसा कम ही होता है कि कला या इतिहास राजनीति को पीछे छोड़ दे." उनकी यह बात प्रदर्शनी की हर तस्वीर में साफ झलकती है.

तस्वीरें, जो भावों से भर देती हैं
चार श्रेणियों में बंटी ये तस्वीरें—'टॉप न्यूज', 'स्पोर्ट्स', 'माय प्लैनेट' और 'पोर्ट्रेट'—फोटो जर्नलिस्ट्स की उस काबिलियत को दिखाती हैं, जो मुश्किल हालात में भी जिंदगी के सबसे नाजुक और मजबूत पलों को कैद कर लेती है. सीरिया के एक बर्बाद शहर के खंडहरों से लेकर अफगानिस्तान की एक महिला का उजले कमरे में ली गई फोटो, या फिर रूस की बर्फीली लहरों में मैराथन सेलिंग की रोमांचक तस्वीर, हर फ्रेम में एक अलग ही रोमांच था. हर शॉट में अलग ही जुनून झलक रहा था. ये तस्वीरें न सिर्फ अपने किरदारों की हिम्मत दिखाती हैं, बल्कि उन फोटोग्राफर्स की नन्हीं सी कोशिश को भी बयां करती हैं, जो जान जोखिम में डालकर इन पलों को हमारे सामने लाते हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय में आर्ट, हिस्ट्री और सिविलाइजेशन की विद्वान अपराजिता पाल कहती हैं, "ये तस्वीरे फोटो जर्नलिज्म की ताकत को बयां करती हैं. एक रूसी फोटोग्राफर की त्बिलिसी में प्राइड परेड के दौरान विरोध की तस्वीर में गुस्सा झलकता है. वहीं, एक तुर्की फोटोग्राफर की सीरियाई शरणार्थी कैंप में परिवार के खाने की तस्वीर आपको पलभर में पिघला देती है. यही फोटो जर्नलिज्म की ताकत है."
इस प्रतियोगिता का मकसद उन युवा फोटो जर्नलिस्ट्स की नई अभिव्यक्तियों को सम्मान देना है, जो हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर सच को दुनिया के सामने लाते हैं. जूरी में दुनिया भर के मशहूर पत्रकारों और फोटोग्राफरों ने हिस्सा लिया. इस साल की विजेता तस्वीर है, एक यूक्रेनी महिला की, जो बमबारी से तबाह अपने घर के बीचों बीच प्रार्थना कर रही थी. यह तस्वीर दुख का प्रतीक तो है ही इसके साथ ही यह ताकत का एक रूप भी है.

विजेताओं में सीरिया की करीना अल मुनिर, ईरान के फरशीद तिघेसाज, यूक्रेन के रोमन चॉप, और रूस के ग्लेब इलिन जैसे नाम शामिल थे. भारत के फोटोग्राफर्स ने भी अपनी छाप छोड़ी, इनमें दिनेश परब, अर्पण बसु ठाकुर, और दीपक कुमार साह को नाम खासतौर पर शामिल है. इन तस्वीरों ने साबित किया कि फोटो जर्नलिज्म सिर्फ खबरें नहीं दिखाता, बल्कि इंसानी जज्बातों को भी जीवंत करता है.
हर तस्वीर में अलग कहानी
प्रदर्शनी में हर तस्वीर अपने आप में एक कहानी थी. मिसाल के तौर पर, सीरिया के एक फोटोग्राफर की तस्वीर में बमबारी से उजड़े शहर का मंजर था, लेकिन उसमें एक बच्चे की मासूम मुस्कान भी कैद थी. अफगानिस्तान की उस महिला की तस्वीर, जो उजाले में बैठी अपने भविष्य को ताक रही थी, ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया. रूस की बर्फीली लहरों में सेलिंग की तस्वीर में जोश और जुनून का ऐसा मेल था कि आप उसे महसूस कर सकते थे.
ये तस्वीरें सिर्फ देखने के लिए नहीं थीं, ये आपको झकझोरती थीं, सोचने पर मजबूर करती थीं. एक दर्शक ने कहा, "ये तस्वीरें आपको याद दिलाती हैं कि दुनिया में कितना कुछ हो रहा है, और हम कितने कम जानते हैं." यह प्रदर्शनी न सिर्फ फोटोग्राफरों की हिम्मत की गवाही थी, बल्कि उन लोगों की भी, जो इन तस्वीरों के किरदार थे.
भारतीय फोटोग्राफरों ने भी इस मंच पर अपनी प्रतिभा दिखाई. दिनेश परब की एक तस्वीर में भारत के किसी गांव की सादगी और संघर्ष को खूबसूरती से कैद किया गया था. अर्पण बसु ठाकुर ने खेल के एक पल को ऐसा उभारा कि उसमें जिंदगी की रफ्तार नजर आई. दीपक कुमार साह की तस्वीर में एक आम इंसान की असाधारण कहानी थी. इन फोटोग्राफरों को मिला सम्मान भारत के युवा फोटो जर्नलिस्ट्स की बढ़ती ताकत को दिखाता है.

छोड़े जाने के बाद का अपनापन
राजेंद्र मोहन पांडेय अपनी खास तस्वीर को लेकर बताते हैं कि, उन्होंने इस तस्वीर को वृंदावन के विधवा आश्रम में क्लिक किया था. वह महिलाएं, जो समाज में ठुकराई गईं और अब अकेले जीने को मजबूर हैं. जो गरीबी, समाज के ताने, को चुपचाप सहती हैं, लेकिन इन मुश्किलों के बीच भी कुछ खास है. ये वो दर्द है जो उन्हें आपसे में एक-दूसरे से जोड़ता है. वह जो उन्हें प्रार्थनाओं में एक-साथ लाता है और जीवन के बाकी दिनों को मजबूती से जीने लायक बनाता है. फोटो की थीम भी यही है, “छोड़े जाने में भी हमें अपनापन मिलता है.” यह दिखाता है कि जब औरतें एक-दूसरे का साथ देती हैं, तो मुश्किल जगह भी एक उम्मीद की जगह बन जाती है.
इसी तरह एक तस्वीर और है, जो अनायास ही अपनी ओर ध्यान खींचती है. एक स्याह से बैकग्राउंड में बीचों-बीच लकड़ी का पुल है. खुद को नीले लिबास से ढकी एक लड़की दूर से नजर आ रही है. आप बैकग्राउंड पर ध्यान देंगे तो इसमें हिलोरे दिखाई देंगी. जीं हां, यह डल झील है, कश्मीर के खूबसूरती में एक चांद के टुकड़े से डल झील, लेकिन इस खूबसूरती के बीच जीवन का संघर्ष ही इसका दूसरा पहलू है, जिसे अपने कैमरे के लिए बतौर सब्जेक्ट चुना था फोटोग्राफर अर्पण ने.
कश्मीर, डल झील और जीवन के संघर्ष की खूबसूरती
अपनी इसी कृति पर अर्पण क्या कहते हैं, यह देखिए... 'डल झील की ठंडी हवा, सुबह का हल्का उजाला और पानी पर तैरती एक शिकारा, यह दृश्य सिर्फ कश्मीर की खूबसूरती नहीं, बल्कि उसकी आत्मा को भी दर्शाता है. यह तस्वीर एक सुबह की सैर के दौरान ली गई, जहां लकड़ी के पुल से होते हुए डल झील शहर के दिल श्रीनगर से जुड़ती है. इस तस्वीर में नजर आ रही युवती कश्मीर की एक स्थानीय निवासी हैं, जो रोज़ सुबह डल झील पर लगने वाली सब्ज़ी मंडी से लौट रही थीं. यहां वह ‘नादरू’ यानी कमल ककड़ी बेचती हैं, जो कश्मीरी खानपान का अहम हिस्सा है. हर सुबह वह अपनी पारंपरिक शिकारा में बैठकर झील की शांत लहरों को पार करती हैं.

उनके चेहरे पर बसी मुस्कान में संघर्ष की तपिश भी है और आत्मसम्मान की ठंडक भी. बिना कुछ कहे वह बहुत कुछ कह जाती हैं. कश्मीर की उन अनगिनत महिलाओं की कहानी जो हर हालात में आत्मनिर्भर बनी रहती हैं. सुबह की मुलायम रोशनी में उनकी आंखों में झांकिए तो वहां हौसला और उम्मीद दोनों दिखते हैं। इस झील की यात्रा में वह सिर्फ एक विक्रेता नहीं, बल्कि उस अनकही कहानी की नायिका हैं जो चुपचाप जीत रही है—हर दिन, हर सांस में. डल झील की खूबसूरती के बीच यह तस्वीर याद दिलाती है कि कश्मीर सिर्फ झीलों, पहाड़ों और बर्फ की वादियों का नाम नहीं है. यह उन लोगों की भी कहानी है, जिनकी सादगी में गहराई है और जिनके जीवन में एक पूरी दुनिया बसती है.'
वाकई, तस्वीरें तो खामोश होती हैं, लेकिन उनकी आवाज गूंजती है. ये प्रदर्शनी हमें इस बात का ध्यान दिलाती है कि, दुनिया में हर पल कुछ न कुछ बदल रहा है. कहीं युद्ध की आग है, कहीं शांति है, कहीं खेल का जुनून है तो कहीं संस्कृति को संजोने की चाहत. इन सबके बीच, फोटो जर्नलिस्ट्स वो हीरो हैं, जो इन पलों को हम तक पहुंचाते हैं. आंद्रेई स्टेनिन की तरह, ये युवा फोटोग्राफर भी सच को सामने लाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. उनकी ये हिम्मत और कला हमें सोचने, समझने और संवेदना रखने की प्रेरणा देती है.