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फिल्मों में नौकरों के 'रामू' नाम का राज कपूर कनेक्शन... NSD में सुनाए गए शोमैन के अनसुने किस्से

राज कपूर के साथ अपने बरसों के अनुभव और संस्मरण सुनाते हुए प्रदीप सरदाना ने कहा-'राज कपूर ने 5 वर्ष की उम्र में अपना पहला नाटक ‘द टॉय कार्ट’ किया था. राज कपूर ने नाटक ‘दीवार’ में तो रामू की ऐसी भूमिका की, जिसके बाद फिल्मों तक में नौकर की भूमिका करने वाले चरित्र का नाम रामू या रामू काका हो गया.

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NSD में आयोजित भारत रंग महोत्सव में फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना ने सुनाए अभिनेता राज कपूर से जुड़े किस्से
NSD में आयोजित भारत रंग महोत्सव में फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना ने सुनाए अभिनेता राज कपूर से जुड़े किस्से

राज कपूर... फिल्मी दुनिया का सबसे बड़ा शोमैन, उनकी बात होती है याद आता है आरके फिल्म्स का वो लोगो, जिसमें गिटार पकड़े नौजवान के हाथ में उसकी माशूका झूलती दिखाई देती है. याद आते हैं रजनीगंधा के सफेद फूल, सफेद साड़ी में शरमाती हीरोइन और आम आदमी की जिंदगी. राज कपूर ने सिनेमा को आम आदमी के मन के सवालों को समाज के सामने उठाने का जरिया बनाया, लेकिन 37 साल पहले जब एक दिन उनकी जिंदगी का आखिरी दिन बन गया तो यह दिन भी अपने आप में एक दास्तान बन गया. 

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अभिनेता राज कपूर को जब पड़ा अस्थमा का दौरा 
उनकी इसी दास्तान को भारंगम (भारत रंग महोत्सव) में वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना ने सामने रखा. शुक्रवार शाम राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में आयोजित ‘राज कपूर जन्म शताब्दी’ व्याख्यान में  उन्होंने राज कपूर के आखिरी दिन की बातें सामने रखीं. उन्होंने कहा कि 'महान फ़िल्मकार राज कपूर ने सिनेमा को जो योगदान दिया उसे दुनिया जानती लेकिन राज कपूर का रंगमंच से भी गहरा नाता रहा, नाट्य जगत के लिए भी उन्होंने बहुत कुछ किया. राज कपूर की जड़ों में रंगमंच की ही शक्ति थी, जिसने उन्हें शिखर पर पहुंचाया. उन्हीं राज कपूर ने 37 बरस पहले मुझसे बातें करते-करते, जब सदा के लिए आँखें मूंद ली थीं तो मैं अवाक रह गया था.' 

साल 1944 में हुई थी पृथ्वी थिएटर की शुरुआत
राज कपूर के साथ अपने बरसों के अनुभव और संस्मरण सुनाते हुए प्रदीप सरदाना ने कहा-'राज कपूर ने 5 वर्ष की उम्र में अपना पहला नाटक ‘द टॉय कार्ट’ किया था. बाद में जब उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने 1944 में अपने ‘पृथ्वी थिएटर’ की शुरुआत की तो पृथ्वी के पहले नाटक ‘शकुंतला’ की सेट डिजायन से लाइटिंग और म्यूजिक अरेंजमेंट्स का जिम्मा राज कपूर ने संभाला. साथ ही राज कपूर ने नाटक ‘दीवार’ में तो रामू की ऐसी भूमिका की, जिसके बाद फिल्मों तक में नौकर की भूमिका करने वाले चरित्र का नाम रामू या रामू काका हो गया. राज कपूर का यह नाट्य जगत से लगाव ही था कि 1948 में जब उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘आग’ बनाई तो उसकी कहानी भी नाट्य जगत से जुड़ी थी.  

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प्रदीप सरदाना ने यह भी कहा कि राज कपूर ने अपनी ‘आवारा’ फिल्म से अपने नाम के साथ भारत के नाम को भी दुनिया में बुलंद किया. रूस, ताशकंद, ईरान और चीन जैसे कितने ही देशों में आज भी राज कपूर का जादू बरकरार है. राज कपूर से पहले और उनके बाद कितने ही अच्छे और दिग्गज फ़िल्मकार देश में आए. लेकिन उन जैसा ग्रेट शोमैन आजतक कोई और नहीं हुआ. यह संयोग था या उनसे पूर्व जन्म का कोई रिश्ता 1988 में राष्ट्रपति से फाल्के सम्मान लेने से पूर्व ही राज कपूर को जब अस्थमा का भयावह दौरा पड़ा. तब मैं ही उन्हें राष्ट्रपति भवन की एंबुलेंस से एम्स लेकर गया. उनकी अंतिम चेतनावस्था में अस्पताल में उनकी पत्नी और मैं ही उनके साथ थे. जहां मुझसे बात करते हुए ही वह कोमा में चले गए थे.‘’

इस व्याख्यान में रंगमंच और सिनेमाई दुनिया के कई गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद रहे. समारोह में एनएसडी के पूर्व निदेशक और वर्तमान में ‘गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी’ के निदेशक प्रो॰ दिनेश खन्ना ने प्रदीप सरदाना का स्वागत करते हुए कहा-'आज देश में सिनेमा के अच्छे समीक्षक और ज्ञाता बहुत कम रह गए हैं. लेकिन प्रदीप सरदाना अपने में सिनेमा का 100 बरस के दस्तावेज़ समेटे हुए हैं. उनकी स्मृतियों में ऐसे हजारों संस्मरण हैं जिन्हें घंटों दिलचस्पी के साथ सुना जा सकता है.'

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