कला, मानव जाति को मिली वह खूबसूरत नेमत है जिसके जरिए वह आदिम काल से ही अपनी पहचान गढ़ रहा है. कला खुद में कालचक्र की ही एक परिभाषा है और यह ऐसी नाव है जिस पर सवार होकर आदमजात ने प्रागैतिहासिक काल से आधुनिक काल तक का सफर तय किया है. इस सफर में कला उसकी संवेदना, चेतना और इसके साथ ही संवाद की भी भाषा रही है.
यह कभी शैल चित्रों की टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों में दर्ज रही तो कभी रंगों के संयोजन के साथ मिलकर रंगीन बन गई. भाव, अहसास, अनुभव और दृष्य के साथ इसी रंगीन संयोजन को चित्रकला कहा गया और कैनवस पर कूची की ये कलाकारी पेंटिंग के अलग-अलग आयाम के साथ 'द स्टेनलेस गैलरी' (दिल्ली) में प्रदर्शित है. शुक्रवार शाम को इसका उद्घाटन हुआ और अब दर्शकों के लिए रंगों का तीन दिवसीय यह समारोह जारी रहेगा.
द स्टेनलेस गैलरी में प्रदर्शनी
द स्टेनलेस गैलरी में 22 फरवरी से 25 फरवरी 2025 तक 'क्रोमालॉग: कलर्स एंड कन्वर्सेशंस' कला प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है. 'द आर्ट एक्सचेंज प्रोजेक्ट' की ओर से आयोजित इस सातवें सामूहिक प्रदर्शन में 15 कलाकारों की कृतियां प्रदर्शित की जा रही हैं. प्रदर्शनी का उद्घाटन 21 फरवरी को किया गया, जिसमें प्रसिद्ध कला समीक्षक यूरीको लोचन और प्रो. राजीव लोचन ने दीप जलाकर कार्यक्रम की शुरुआत की. यह कला प्रदर्शनी हर दिन सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक कला प्रेमियों के लिए खुली रहेगी.
विविध माध्यमों में सजी कलाकृतियां
'क्रोमालॉग' प्रदर्शनी रंगों, संवादों और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों का अनूठा संगम प्रस्तुत कर रही हैं. इसमें कलाकारों के 100 से अधिक चित्रों को प्रदर्शित किया जा रहा है. इस प्रदर्शनी की क्यूरेटर और 'द आर्ट एक्सचेंज प्रोजेक्ट' की फाउंडर आरती उप्पल सिंगला ने कहा, "'क्रोमालॉग' के जरिए हम रंगों की अभिव्यक्ति और संवाद की शक्ति को दर्शाने का प्रयास कर रहे हैं. यह प्रदर्शनी कलात्मक विविधता और रचनात्मकता का उत्सव है."
व्यक्त और अव्यक्त का सहज संदेश
आरती उप्पल सिंगला यहां प्रदर्शनी में शामिल अपनी कलाकृति को भागवत से जोड़ती हैं और बताती हैं कि संसार में ईश्वरीय सत्ता का व्यक्त और अव्यक्त स्वरूप ही उनके कैनवस पर विषय बनकर उभरा है. यह कुछ ऐसा है कि शोक में ग्रस्त अर्जुन को जब श्रीभगवान 'ई्श्वर सत्य और जगत मिथ्या' का ध्येय समझाते हुए कर्मयोग सिखाते हैं तो दृश्यों में उलझा हुआ अर्जुन इसे समझ नहीं पाता है. तब श्रीकृष्ण उसे दिव्य नेत्र देते हैं, जहां वह संसार की सूक्ष्मता को समझ पाता है.
यह सूक्ष्मता व्यक्त नहीं की जा सकती है, यह हर दृश्य से परे है. देखने को यह सिर्फ एक 'ब्लैक डॉट' है, लेकिन इस काले अंधेरे से घिरे बिंदु के भीतर भी प्रकाश है. वही प्रकाश जो सत्य है, लेकिन अव्यक्त है. यह प्रकाश ब्रह्मांड की शुरुआत का प्रकाश है. उसका नीला, सलेटी और गहरे भूरे से मिश्रित काला रंग बिगबैंग के महाविस्फोट से उभरा हुआ उजाला है. उनकी कृति कमल ताल (Manifest and Unmanifest: Lotus Pond) श्रीमद्भगवत के इसी संदेश की चित्रात्मक व्याख्या है.
क्या कहती है श्रीमद्भागवत?
सिंगला कहती हैं कि, "श्रीमद्भागवत" में कहा गया है कि पदार्थ (Matter) सबसे पहले अव्यक्त (Avyakt) रूप में सामने आता है है जिसे न तो जाना जा सकता है और न ही देखा जा सकता है. इसके बाद पदार्थ का व्यक्त (Vyakt) रूप प्रकट होता है, जो देखा और अनुभव किया जा सकता है. अव्यक्त एक वास्तविकता है, जिसमें आदि काल से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है और यह सनातन सत्य का स्वरूप है. एक कलाकार के लिए, यह कागज़, रंग, तेल, पानी, ब्रश आदि का रूप लेता है. यही उसका ब्रह्मांड है, यही उसका ब्रह्म है. एक निराकार सत्ता है. यह एक मिरर इमेज की तरह है, जिसमें जो प्रतिबिंब दिखता है, वही हमारी दृष्टि में वास्तविकता बन जाता है.'
प्रत्यक्ष यथार्थ से परे: खुशरू कल्याणवाला
इसी तरह खुशरू कल्याणवाला जब अपनी कृति Flora: The Blues That Bring Cheer को सामने लाते हैं तो इसके जरिए प्रकृति के मानवीय स्वरूप को सामने रखते हैं. उनके लिए फूलों का खिलना और रंगत बिखेरना कोई एक दिन का खेल नहीं है, बल्कि ये एक लंबा सफर है. जिसमें पहले बेल का फैलना, फिर उस पर कलियों का आना, झुरमुटों का सजना और तब इन बेलों पर रंगतों का खिलना शामिल है.
प्रकृति की इस रंगत को कैनवस पर उतारने के तरीके में इतना साम्य है कि ऐसा लगता है कि नेचर और कैनवस में कोई फर्क ही नहीं रह गया है. इन कलाकृतियों की मूल प्रेरणा प्राकृतिक आकृतियों, संरचनाओं और रंगों से ली गई है, लेकिन इन्हें इतना अमूर्त (Abstract) बनाया गया है कि ये प्रत्यक्ष यथार्थ से परे प्रतीत होती हैं.
ये सभी कृतियां वॉटरकलर और इंक पेन के मिले-जुले संयोजन से बनाई गई हैं, जिसमें रिवर्स इमेजरी टेक्निक को सामने रखा गया है. पेंटिंग, बिना किसी शुरुआती रेखाचित्र के सीधे रंगीन धब्बों से शुरू होती है. वाटर कलर के छींट टेक्निक के साथ शुरुआत हुई, फिर हर छोटी-बड़ी छींटाकशी को उसका खूबसूरत आकार दिया गया और फिर आखिरी में हर के छींट अपनी फूल की आकृति में सज गया. ये काम इतनी बारीकी से हुआ है कि इसमें गलती की कोई गुंजाइश ही नहीं थी, फिर जो निखर के सामने आया है, उसकी व्याख्या आप अपने अनुसार करने को स्वतंत्र हैं.
जैसे यही कृति Flora: The Blues That Bring Cheer को आप देखें तो इसकी सभी फूल मिलकर एक ग्वालन को आकार देते हैं, जिसने घेरदार लहंगा और ओढ़नी पहन रखी है, वह किसी बगीचे के बीच इठलाती हुई चली आ रही है और वसंत उसके पीछे-पीछे चला आ रहा है. खुशरू कल्याणवाला की इस श्रृंखला प्रकृति की सजीवता और अमूर्तता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है.
इंसानी दिमाग और विचारों का बहावः निकिता गंभीर
बात प्रकृति के चित्रण और उसके स्वरूप की हो रही है तो निकिता गंभीर की कलाकृति इस व्याख्या को और आगे ले जाती है. ऐक्रेलिक रंगों के सुखद प्रवाह, टेक्सचर्स की गहराई, वाइब्रेंट वॉटरकलर के साथ उनकी पेंटिंग इंसानी दिमाग के भीतरी बहाव को आकार देती है. यह रचना उस शांति की खोज यात्रा है जिसे हर कोई अपनी रोजमर्रा की व्यस्त जिंदगी के बीच एक सुकूनभरे अहसास के लिए तलाश रहा है. 'Smell The Coffee' प्रकृति, भावनाओं और प्रवाहशीलता (Fluidity) की सुंदरता को सामने रखती है.
प्रगति गुप्ताः टैंगलिंग शैली की अनूठी कहानी
भावनाओं के इस बहाव को प्रगति गुप्ता का कैनवस और भी अधिक गहराई देता है. उनके कैनवस पर टैंगलिंग शैली इस तरह सजी है जैसे इंसानी आंखों में अलग-अलग दृश्य सजते जाते हैं. उनका एक खास पैटर्न न होते हुए भी एक पैटर्न होता है, जिसमें कहीं डॉट, कहीं डेश, तो कहीं गोल-कहीं त्रिकोण जैसे पैटर्न एक साथ मिलकर खूबसूरत आकार और आकृति गढ़ते हैं. उनकी पेंटिंग चित्रात्मक तरीके से की गई सकारात्मकता की व्याख्या है और डार्क से लाइट की ओर बढ़ता हुआ उनका प्रवाह शाश्वत की ओर गतिमान यात्रा की तरह है.
इस यात्रा को ही समझाने के लिए वह टैंगलिंग शैली में अपनी ट्रैवेल सीरिज को गढ़ती हैं. हर किसी के दिल के भीतर छिपी एक यात्रा और एक यात्री की कहानी है ट्रैवल सीरीज, जिसे देखने का सुख शब्दों में जाहिर नहीं किया जा सकता है. ट्रैफिक लाइट्स, सूटकेस और ग्लोब का संयोजन उनकी शैली के सब्जेक्ट हैं. उनकी एक और सीरीज PAWS भी आकर्षण का केंद्र है, जो वफादारी के प्रतीक पालतू और विश्वासी साथी (Puppies) को श्रद्धांजलि है.
कुमार नीलेश वत्सः कैनवस पर वफादारी और पुरुषार्थ की परिभाषा
यहां से आगे बढ़ते हैं तो कुमार नीलेश वत्स एक और पशु में वफादारी की परिभाषा खोजते दिखते हैं. नीलेश के मुताबिक, घोड़े वह पशु हैं, जिनमें आप वफादारी की भावना को स्पष्ट तौर पर देख सकते हैं. उनकी बात सही भी लगती है क्योंकि कविवर श्याम नारायण पांडेय ने यूं ही तो अपने शब्दों का विशाल भंडार महाराणा प्रताप के प्रिय अश्व चेतक पर खर्च न किया होगा. जब वह लिखते हैं कि,
रण-बीच चौकड़ी भर-भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा को पाला था।
जो तनिक हवा से बाग़ हिली
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था।
नीलेश अपनी कृति में घोड़ों को खासतौर पर जगह देते हैं और कहते हैं घोड़े सिर्फ वफादारी ही नहीं पुरुषार्थ का भी प्रतीक हैं. वह ऊर्जा और सकारात्मक शक्तियों का सोर्स हैं और शायद इसीलिए उन्होंने अपनी कृति को Echoes of Dawan यानि भोर का शोर कहा है. यह नाम ठीक भी है क्योंकि घोड़ा जीवन की चेतना और शुरुआत का भी अंश है. सूर्य के उदय रथ को खींचने वाले सात घोड़े ही हैं जो उनकी सात किरणों को धरती पर सबसे पहले पहुंचाकर भोर का संदेश देते हैं.
कृति, जहां झूठ-फरेब की कोई जगह नहीं
वत्स की कृति में एक सुदृढ़ मेहराब के बीच एक शक्तिशाली घोड़ा बेहद शांति के साथ खड़ा दिखाई देता है. उसके पार्श्व (पीछे की ओर) में क्षितिज की रंगत है. यह क्षितिज भूत और भविष्य का मिलन स्थल भी है और वर्तमान की आवाज भी. घोड़े की आंख में विचारों का समुद्र है, जिसे कलाकार ने घुमावदार गहरी पुतलियों के जरिए चित्रित किया है. इन आंखों में देखने की ताकत आपकी तभी होगी, जब आप सच्चाई के साथ उन्हें निहार सकेंगे, झूठ और फरेब के लिए यहां कोई जगह नहीं. नीलेश वत्स की पेंटिंग को ठहरकर देखने से कुछ ऐसे ही अहसास पैदा होते हैं.
सुशील भसीनः डूडल के हस्ताक्षर
डिजिटल दुनिया के इस दौर में डूडल से कौन अछूता रह गया है. नई न होने के बावजूद कला की यह सबसे नूतन और सबसे अधिक पसंद की जाने वाली शैली बन चुकी है और कलाकार सुशील भसीन इसे भरपूर जी रहे हैं, इतना कि वह चेन स्मोकर नहीं हैं, लेकिन डूडलिंग के नशे में रहते हैं. यह उनके लिए पैशन है और यही पैशन उनकी कृति Trance Dance में दिखाई देता है. सुशील के आर्ट में तीन किरदार खास तौर पर दिखते हैं. एक तो है कोई चिड़िया, दूसरा है एक पॉट और तीसरा किरदार है कोई भी शख्स. भसीन इन तीनों के संयोजन से मानवीय भावनाएं, अभिव्यक्तियां और आपसी जुड़ाव को जीवंत करते हैं.
खास बात ये है कि उनके डूडल के किरदार हर बार एक नई सोच, एक नई कहानी कहने लगते हैं. आप अभी इन्हें देखकर गए तो उनकी कुछ और कहानी थी, लौट-फिर के फिर से कैनवस पर नजर पड़ जाएगी तो सहसा ही कहानी बदल जाएगी. आप इन तीन किरदारों में नवरस को फील कर सकते हैं. काले और सफेद के संयोजन में ही सतरंग को पहचान सकते हैं या फिर किसी दूसरी ही भावनाओं को गढ़ सकते हैं. डूडल्स के ज़रिए कला की नई सीमाओं को छूने वाले सुशील भसीन की कृतियां सृजनात्मकता और कल्पना की शक्ति को दर्शाती हैं.
प्रुिया बेरी दिखाती हैं भावनाओं का संगम
भावनाओं के इसी संयोजन को दिखाने में प्रिया बेरी भी पीछे नहीं रही हैं. आप यहां प्रदर्शित उनकी कृति 'चंपा' को देखिए. शर्मीली सी चंपा की गहरी आंखें पहली ही नजर में आपको रोक लेंगीं.आर्ट डेको शैली और स्त्री के चेहरे-मोहरे के साथ उनकी भाव-भंगिमाओं के साथ प्रिया बेरी का खास प्रेम झलकता है. उनकी कृतियां समाज में महिलाओं की भूमिका पर एक व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण भी सामने रखती हैं.
ऊन में वसंतः कृपाल माथुर
प्रदर्शनी में कृपाल माथुर की कृति Spring Dance भी अपने अनूठे रंग-ढंग के कारण सहज ही आकर्षित करती है. इस प्रदर्शनी में उनकी कृतिय पी.बी. शेली की कविता "ओड टू द वेस्ट विंड" से प्रेरित हैं. इस कविता में पश्चिमी हवा को एक शक्तिशाली और रहस्यमयी ताकत के रूप में दिखाया गया है, जो बादलों को बहाती है, समुद्र में लहरें उठाती है और मौसम बदलती है. यह हवा खुशी, ऊर्जा और उम्मीद का प्रतीक है.
इन कलाकृतियों को बनाने के लिए ऊन का उपयोग किया गया है और ‘वेट फेल्टिंग’ तकनीक से बनाया गया है. पहले डिज़ाइन कागज़ पर तैयार किया जाता है. फिर ऊन की 15-20 पतली परतें एक के ऊपर एक रखी जाती हैं. इनके ऊपर जालीदार कपड़ा रखा जाता है. इसके बाद गर्म पानी और साबुन से ऊन को हाथों से रगड़ा जाता है. इससे ऊन के रेशे आपस में जुड़कर एक मज़बूत सतह बना लेते हैं, फिर इसे धूप में सुखा लेते हैं. इस तरह, एक खूबसूरत फेल्टेड आर्ट पीस तैयार होता है. कृपाल की कला डिज़ाइन और शिल्प कौशल का बेहतरीन उदाहरण है.
सुजाता खन्नाः आर्ट ऑफ इन्वर्ज़न
सुजाता खन्ना की कृति की ओर बढ़ेंगे तो उनकी रचना Blossoms in Perspective में आर्ट ऑफ इन्वर्ज़न की टेक्निक देखने को मिलती है. उनकी पेंटिंग में सरल रचनाएं, जीवंत लेकिन सुकून देने वाले रंगों के साथ प्रकाश व रेखाओं का बेहतरीन संयोजन देखने को मिलता है. "आर्ट ऑफ इन्वर्ज़न" की इस सीरीज में वह अपनी कृति को उलट-फेरकर एक नई कला में तब्दील कर देती हैं. जिसमें आकार, रंग के साथ नेगेटिव स्पेस भी अपनी जगह पा लेते हैं. नेगेटिव स्पेस क्यों? क्योंकि जीवन में असल में वह अपनी जगह बनाए रखते हैं. वह मौजूद हैं तभी हमें पॉजिटिव होने का अर्थ समझ आता है. यह प्रोसेस घड़ी की सुइयों के घूमने या ऋतुओं के बदलने जैसी है, जहां सबकुछ होता तो वही है, लेकिन हमारी ही धारणा बदल जाती है. जब चित्र को उल्टा किया जाता है, तो एक नई और अनदेखी दुनिया सामने आती है. सुजाता की यह कला दर्शकों को नए दृष्टिकोण से देखने और कल्पना की सीमाओं को तोड़ने की अपील है.
विनी सिंहः सरलता में जटिलता
इसी तरह विनी सिंह की कृति Meditative Reveries अपने आप में एक अनूठी शैली है. उनके लिए "सरलता में जटिलता" ही जीवन का सार है, और यही विचार उनकी हर कृति में झलकता है. आप उनकी कृति में सुकून की परिभाषा और चित्रात्मक व्याख्या देख पाते हैं. वह इसे ऐसे एक्सप्लेन करती हैं कि, किसी को सुकून और आनंद का अहसास कैसे होता है? बगीचे में बैठकर, फूलों की खुशबू के बीच, किताब पढ़ते हुए और कॉफी की चुस्कियों के साथ. इन सारे जवाबों का संयोजन ही सरलता में जटिलता है. विनी की कलाकृति इसी जवाब की दुनियावी झलक है. जिसमें किताबों के पन्नों और कॉफी के दागों को खूबसूरती से शामिल किया गया है. बारीक रेखाओं से खिले हुए फूलों ऐसे उकेरे गए हैं, जैसे झंझावातों के बीच भी मुस्कुराता हुआ जीवन. उनकी कला न केवल यादों को संजोती है, बल्कि दर्शकों को एक जादुई और सुकून भरी दुनिया में ले जाती है.
इस प्रदर्शनी में आप इन सभी के अलावा कलाकार बबिता वर्मा (Aswan), हिमानी (Portal of Peace), माधव भारद्वाज (Silence Speaks in Colour), साक्षी बजाज (Seeds of Growth), व श्रावणी (Monsoon) की कलाकृति सीरीज देख सकते हैं. कला प्रेमियों के लिए यह प्रदर्शनी एक बेहतरीन अवसर है, जहां वे रंगों और रचनाओं के जरिये कलाकारों की भावनाओं और दृष्टिकोण को समझ सकते हैं.