मशहूर संगीतकार खतीजा रहमान, इस बारे में बताती हैं कि, “पहले के समय में राग प्रकृति, मौसम और इंसानी भावनाओं से प्रेरित होते थे. 'झाला' उसी अहसास को फिर से जीवंत करने की कोशिश है और अपने संगीत में प्रकृति और जीवन की लय को शामिल करने का एक जरिया है. ” खतीजा ने साई श्रवणम और कन्निका उर्स के साथ मिलकर इस सपने को हकीकत में बदला है.
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की परंपरा में सुकून के पर्याय अनेक रागों का वर्णन है, लेकिन एक राग खास तौर पर तब याद आता है, जब आपकी रूह किसी रुहानी सुकून की तलाश में हो, जब आप जिंदगी की उथल-पुथल से तंग आ चुके हों और जब आप अपनी जिंदगी में उम्मीद की एक नई किरण-एक नया सवेरा तलाश रहे हों. खुद को रीस्टार्ट करके फिर से कमबैक की चाहत है तो आप पहुंचिए 'राग भटियार' की शरण में.
बद्रीनाथ धाम के समीप बामणी गांव में मां उर्वशी देवी का मंदिर मौजूद है. लेकिन, यह उर्वशी रौतेला का नहीं बल्कि स्वर्ग की सबसे सुंदर, गायन और नृत्य में निपुण उर्वशी अप्सरा का मंदिर है. देवी उर्वशी कई पौराणिक कथाओं में केंद्रीय किरदार के तौर पर रही हैं और पुराणों में उनका जिक्र अलग-अलग संदर्भों में आया है.
चैत्र मास के स्वागत का गीत है चैती. जब वसंत की शोभा अपने पूरे शबाब पर होती है और प्रकृति रंग-बिरंगे फूलों से सज उठती है. तब मानव हृदय में प्रेम, श्रृंगार और विरह की भावनाएं भी जागृत होती है. इस माह में गूंजने वाली चैती, भारतीय लोक संगीत की एक ऐसी विधा है, जो श्रृंगार और भक्ति के रस में डूबी, हृदय को छू लेने वाली धुनों के साथ जीवन के हर रंग को समेटे हुए है.
बैशाख-जेठ की इसी दोपहरी में दालान में, आंगन में, चबूतरे पर या ऐसी ही किसी जगह, जहां ज्यादा लोग बैठ सकें, इन महिलाओं की मंडली बैठती है और इनके बीच में स्थापित होती है चक्की और जांता. ये मंडली गेहूं को आटा बना देती है, दलहन की फसलों को दर कर दाल बना देती हैं. चने को भी सत्तू और बेसन में बदल देती हैं. मेहनत का ये काम इतना आसान तो है नहीं, तो इसे आसान बनाता है... जतसार गीत.
विदुषी सुनंदा शर्मा ने अपने गायन की शुरुआत बड़ा ख्याल से की, जो कि राग मधुवंती में था. उन्होंने इस राग की प्रकृति और उसके तेवर-कलेवर के बारे में पहले ही बता दिया कि चैत्र के महीने में जब मौसम सिंकती हुई सी गर्मी और हल्की ठंड के मिले-जुले संयोग से आलस से भरा हो जाता है, तो ऐसे ही मौसम की शाम का प्रतिनिधि राग है मधुवंती.
राग दुर्गा की उत्पत्ति को लेकर संगीतज्ञों और इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ का मानना है कि यह राग हाल के दिनों में उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीतकारों द्वारा विकसित किया गया हो सकता है, जबकि अन्य इसे प्राचीन मानते हैं, क्योंकि यह कई अन्य हिंदुस्तानी रागों से संबंधित है. दक्षिण भारत के कर्नाटक संगीत में इसे "शुद्ध सावेरी" के नाम से जाना जाता है.
भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग भैरवी इन्हीं सारी विशेषताओं के साथ शामिल है. ऐसा राग जो सुबह की पहली किरण की तरह नर्म गर्माहट से भरा है कोमल सुरों से सजे होने के बाद भी गहरी भावनाओं का साक्षी है. यह राग केवल स्वरों का समूह नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो आत्मा को प्रभात की शांति और प्रेम की अनंत गहराइयों में ले जाती है.
पद्मश्री अलंकरण से सुशोभित, प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका अश्विनी भिड़े देशपांडे की प्रस्तुति का जादू श्रीराम शंकरलाल संगीत महोत्सव में कुछ ऐसा चढ़ा कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध होकर उनकी स्वर लहरियों में खो गए. ऐसा खोये कि वह रागों की गहराई, भावनाओं की ऊंचाई और ताल की दोगुन-चौगुन की लय के साथ डूबने-उतराने लगे.
ऋषभ शर्मा ने बताया कि शुरुआत में वे गिटार बजाते थे, लेकिन फिर उन्हें सितार की ध्वनि और उसके प्राकृतिक नाद ने अपनी ओर आकर्षित किया. मैं इसकी ओर खिंचता सा चला गया. सितार को वाद्ययंत्र के तौर पर अपनाने का मेरा अनुभव मेरे लिए बेहद ही दिलचस्प रहा और फिर इसके बाद मेरे भीतर जो बदलाव आने शुरू हुए, वह मेरे लिए स्वाभाविक था."