scorecardresearch
 

चैती गीत... जिसमें दुख-सुख, प्रेम-शृंगार, जलन-उदासी और पीड़ा सब कुछ सुनते हैं राम

चैत्र मास के स्वागत का गीत है चैती. जब वसंत की शोभा अपने पूरे शबाब पर होती है और प्रकृति रंग-बिरंगे फूलों से सज उठती है. तब मानव हृदय में प्रेम, श्रृंगार और विरह की भावनाएं भी जागृत होती है. इस माह में गूंजने वाली चैती, भारतीय लोक संगीत की एक ऐसी विधा है, जो श्रृंगार और भक्ति के रस में डूबी, हृदय को छू लेने वाली धुनों के साथ जीवन के हर रंग को समेटे हुए है.

Advertisement
X
चैती गीत
चैती गीत

पौराणिक आख्यानों में चैत्र के महीने को शुरुआत का प्रतीक माना गया है और आम भारतीयों में इस महीने को लेकर ये भावना इसलिए भी प्रबल होती है, क्योंकि एक तो संवत की शुरुआत इस महीने से होती है, और दूसरा ये कि इस दौरान जब वसंत की ऋतु होती है, तभी प्रकृति पूरी तरह से अपने आप को बदल लेती है और नई हो जाती है. इसका पता पेड़-पौधों को भी देखकर लगाया जा सकता है, जिनमें नई-नई कोपलें आ रही होती हैं.

सृजन का महीना है चैत्र

चैत्र मास सृजन का माह होता है और इसलिए संसार में जो भी निर्माण हो रहे होते हैं, या होने वाले होते हैं, उनकी नींव और शुरुआत इसी महीने से होती है. पुराण कथाओं में दर्ज है कि चंद्नमा की 27 पत्नियां हैं, जो असल में 27 नक्षत्र हैं और इन्हीं में से एक है चित्रा नक्षत्र. इस महीने में चित्रा नक्षत्र की मौजूदगी रहती है और यह महीना चैत्र कहलाता है. चित्रा का अर्थ है हृदय और प्रकृति के परिवर्तन के कारण हृदय के तार झूम रहे होते हैं. कलियां खिल रही होती हैं. वायु सुगंधित होती है और बागों में कोयलें बोलने लगती हैं, तब आता है चैत्र.

चैत्र का स्वागत गान है चैती

इस चैत्र मास के स्वागत का गीत है चैती. जब वसंत की शोभा अपने पूरे शबाब पर होती है और प्रकृति रंग-बिरंगे फूलों से सज उठती है. तब मानव हृदय में प्रेम, श्रृंगार और विरह की भावनाएं भी जागृत होती है. इस माह में गूंजने वाली चैती, भारतीय लोक संगीत की एक ऐसी विधा है, जो श्रृंगार और भक्ति के रस में डूबी, हृदय को छू लेने वाली धुनों के साथ जीवन के हर रंग को समेटे हुए है.

Advertisement

चैती गीत

लोकमानस के हृदय से हुआ है चैती का जन्म

चैती, भारतीय संगीत की वह अनमोल धरोहर है, जो लोक और शास्त्रीय संगीत के बीच एक खूबसूरत पुल की तरह है. उत्तर भारत, विशेष रूप से अवध, भोजपुरी और मिथिला क्षेत्रों में, चैत्र मास में गाई जाने वाली संगीत की ये शैली शास्त्र की बारीकियों के साथ भी परंपरागत तरीके से गाई जाती है तो साथ ही इसके कई स्वतंत्र गीत भी मिलते हैं, जो शास्त्र और राग वाली शैली से परे होते हैं. सादगी और भाव से भरी अभिव्यक्ति के लिए जाने जानी वाली चैती का जन्म लोकमानस के हृदय से हुआ है. यह उन साधारण जनों की आवाज है, जो अपनी खुशियों, दुखों, प्रेम और विरह को सहज और स्वाभाविक रूप से व्यक्त करते हैं.

सुनने वालों को बांध कर रखती है चैती

डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने ‘लोक’ को उस समूची जनता के रूप में परिभाषित किया है, जो परिष्कृत और सुसंस्कृत समाज की तुलना में अधिक सरल और अकृत्रिम जीवन जीती है. चैती इसी लोक की आत्मा है. यह न तो छंदशास्त्र की जटिलता से बंधी है, न ही अलंकारों की भारी-भरकम सजावट से लदी है. यह तो बस हृदय की गहराइयों से निकली वह धुन है, जो सुनने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती है.

Advertisement

पुरुष भी गाते है चैती

चैती का स्वरूप विविध है. जब इसे एकल रूप में गाया जाता है, तो इसे ‘चैती’ कहते हैं, और जब समूह में गाया जाता है, तो इसे ‘चैता’ या ‘घाटो’ के नाम से जाना जाता है. ‘घाटो’ की धुन ऊंची और तीव्र होती है, जिसे पुरुष समूह में गाते हैं, कभी-कभी दो दलों के बीच सवाल-जवाब या प्रतियोगिता के रूप में, जिसे ‘चैता दंगल’ कहते हैं. यह विविधता चैती को और भी रोचक बनाती है.

संयोग और वियोग दोनों का सम्मिश्रण

चैती गीत ऐसी ही भावनाओं को रागों में पिरोकर सामने रखते हैं. इनमें संयोग और वियोग दोनों ही तरह के श्रृंगार के रूप देखने को मिलते हैं. संयोग में जहां प्रेमी-प्रेमिका के मिलन की खूबसूरती नजर आती है तो वहीं वियोग में पिया मिलन की तड़प और उसका इंतजार इतना भाव प्रधान होता है कि मन मोह लेता है. बनारस घराने में संगीत साधकों द्वारा गाई जाने वाली एक चैती की बानगी देखिए...

"आइल चैत उतपतिया हो रामा, ना भेजे पतिया."

इस चैती गीत में एक विरह की मारी प्रेमिका शिकायत कर रही है कि, चैत का उत्पाती महीना भी आ गया है, लेकिन प्रेमी की पाती (चिट्ठी) नहीं आ पाई है, कि वो कब आएगा?

Advertisement

कुछ ऐसे ही भाव एक और चैती गीत में देखिए...

'चइत मास जोवना फुलायल हो रामा, कि सैंयाँ नहिं आइलें.

यहां प्रेमिका कह रही है कि उसकी युवावस्था को फूलों की तरह खिल रही है, लेकिन प्रेमी का न आना उसे खल रहा है. चैती गीतों में प्रेम के ये रंग इतने जीवंत हैं कि सुनने वाला खुद को उस रिलेट किए बिना नहीं रह सकता है.

चैती गीत के आधार हैं राम, जो सुनते हैं सबकी पीड़ा-सबके दुख

चैती गीतों की एक खास बात है, हर पंक्ति के आखिरी में राम या रामा शब्द होना. राम का नाम चैती गीतों में सबसे प्रमुख है, इसे टेक कहते हैं और यह इन गीतों में एक तरीके से ईश्वर की पुकार है. जो भी बात कही जा रही है वह सीधे तौर पर आराध्य या ईष्ट को आधार मानकर कही जा रही है. आप इसे लोक की बोलचाल की भाषा की तरह भी समझ सकते हैं.

जैसे कोई आश्चर्यजनक बात कहनी होती है या बतानी होती है, तो अरे बाप रे बाप! अपने आप निकल आता है.  दईया भी ऐसा ही शब्द है, जो किसी वाक्य में आधार की तरह प्रयोग किया जाता है. चैती गीतों के आधार और उसकी आत्मा राम हैं, इसलिए हर गीत की पहली पंक्ति में उनका जिक्र जरूर मिलता है. राम, जो लोकमानस में राजा भी हैं, देवता भी हैं, सखा भी हैं और सब दुख निवारक भी हैं, वह लोगों से उनकी पीड़ा, उनका दुख, उनके मनोभाव, प्रेम-शृंगार सबकुछ सुनते हैं. 

Advertisement

 

चैती गीत

शृंगार ही नहीं भक्ति का गान भी है चैती

राम का नाम आ गया है तो ये भी बताना जरूरी हो जाता है कि, चैती गीत केवल श्रृंगार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भक्ति का रस भी उतनी ही गहराई के साथ समाया हुआ है. चैत्र मास में रामनवमी का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर चैती गीतों में श्रीराम के जन्म और उनके जीवन के प्रसंगों को बड़े ही लौकिक और भावपूर्ण ढंग से रखा जाता है. एक ऐसी ही चैती में राम जन्म का उल्लास इस तरह से वर्णन किया गया है, इसकी बानगी देखिए...

“जग गइले कौशल्या के भाग हो रामा, अवध नगरिया.
माता कौशल्या लेत बलैय्या, धन-धन होवे राजा दशरथ हो रामा.
घर-घर बाजत लला की बधइयां, शोभा वरन ना जाए हो रामा, चैत राम नौमिया.”

इस चैती में न केवल राम जन्म के आनंद है, बल्कि यह सामाजिक उल्लास को भी उकेरती है, जिसमें अवध का सौभाग्य बढ़ गया है, माता कौशल्या अपने लाल को देखकर निहाल होती हैं और राजा दशरथ इस दृश्य को देखकर खुद को सौभाग्यशाली समझ रहे हैं. इसी तरह, राम और सीता के विवाह के प्रसंग भी चैती गीतों में खूबसूरती से उकेरे गए हैं. एक चैती में राम-सीता के स्वागत का दृश्य कैसे रचा गया है, इसकी बानगी देखिए...

Advertisement

“राजत राम सिय साथे हो रामा, अवध नगरिया.
माता कौशल्या तिलक लगावे, सुमित्रा के हाथ सोहे पनमा हो रामा.
दासी सखी चलो दरसन कर आवें, पाऊं आनंद अपार हो रामा, बाबा दशरथ दुअरिया.”

चैती में भक्ति और श्रृंगार का यह मेल ही इसे और भी समृद्ध बनाता है, बल्कि यह भी कहना चाहिए कि तमाम लोक विधाओं के लुप्त होने के सिलसिले के बीच चैती इसलिए भी प्रासंगिक है, क्योंकि इसमें सिर्फ प्रेम और सौंदर्य नहीं है, बल्कि इसमें भक्ति भी है, कीर्तन भी है, ऋतु वर्णन भी है और इसके अलावा लोक-मर्यादा और सामाजिकता की तान भी शामिल है.  

निर्गुण में भी है चैती

असल में जहां एक ओर चैती, प्रेम की मादकता का विषय है, वहीं दूसरी ओर यह भक्ति की शक्ति और उसकी पवित्रता का गीत भी है. संत कबीर जैसे महान कवियों ने भी चैती शैली में निर्गुण भक्ति के पद रचे, और इसी शैली में ब्रह्म की उपासना की है. निर्गुण चैती की ये बानगी देखिए...

“पिया से मिलन हम जाइब हो रामा,
अतलस लहंगा कुसुम रंग सारी
पहिर-पहिर गुन गाएब हो रामा.”

चैती का संगीत पक्ष उतना ही आकर्षक है, जितना इसका साहित्य पक्ष. चैती की धुनें मध्य सप्तक में सीमित रहती हैं, जिससे इन्हें गाना आसान हो जाता है. शुद्ध स्वरों का प्रयोग अधिक होने और स्वरों के मध्य सप्तक तक में ही सीमित रहने से इसे गाना और समझना भी सहज होता है. दीपचंदी, कहरवा और रूपक जैसे ताल चैती के लिए अधिकतर बार प्रयोग होने वाले ताल होते हैं जो इसे लय और प्रवाह देते हैं.

Advertisement

 

चैती की धुनों की एक खासियत यह है कि ये रागों की रचना के लिए प्रेरणा स्रोत रही हैं. लोकगीतों की विशिष्ट धुनों ने कलाकारों की कल्पना को प्रेरित किया, और उन्होंने इन्हें स्वर से सजाकर रागों का रूप दिया. राग भूपाली, जौनपुरी और पहाड़ी जैसे नाम इस बात के साक्षी हैं कि ये राग स्थानीय लोकधुनों से ही विकसित हुए हैं.

चैती केवल एक संगीत शैली नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है. यह हमारे सामाजिक जीवन का दर्पण है, जिसमें इतिहास, परंपराएं, और सामाजिक मूल्य झलकते हैं. चैती गीतों में सामाजिक कुरीतियों, जैसे बाल विवाह, का भी चित्रण मिलता है. एक चैती में बाल विवाह की पीड़ा को सामने रखा गया है.

“राम छोटका बलमुआ बड़ा नीक लागे हो रामा,
अंचरा ओढ़ाई सुलाइबि भरि कोरवा हो रामा.

रामा करवा फेरत पछुअवा गड़ि गइले हो रामा,
सुसुकि-सुसुकि रोवे सिरहनवा हो रामा.”

यह चैती उस मासूम बालिका की व्यथा को दर्शाती है, जो छोटी उम्र में विवाह के बंधन में बंधकर अपने बचपन को खो देती है.

चैती गीत हमारे इतिहास की अमूल्य निधि हैं. इनमें सामाजिक जीवन, रीति-रिवाज, और धार्मिक विश्वासों का चित्रण मिलता है. इतिहासकार यदि इन गीतों का विश्लेषण करें, तो हमारा इतिहास और भी सजीव और सर्वांगीण बन सकता है.

आज के दौर में, जब पाश्चात्य संगीत और आधुनिक धुनें युवाओं को आकर्षित कर रही हैं, चैती अपनी जगह बनाए हुए है. बनारस के संगीत घरानों ने चैती को उपशास्त्रीय गायन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है. सिद्धेश्वरी देवी, गिरिजा देवी, निर्मला देवी, विंध्यवासिनी देवी, और शारदा सिन्हा जैसी गायिकाओं ने चैती को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है.

फिल्मों में चैती गीत

फिल्म संगीत में भी चैती खूब गाई गई है. 1964 की फिल्म ‘गोदान’ में पंडित रविशंकर के संगीत निर्देशन में मुकेश द्वारा गाया गया चैती गीत “हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा” आज भी लोगों की जेहन में है. इसी तरह, फिल्म ‘नमकीन’ में आशा भोसले का गाया चैती “बड़ी देर से मेघा” राग तिलक कामोद के साथ श्रृंगार का अनूठा रंग बिखेरता है.

चैती की लोकप्रियता आज भी बरकरार है, लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में इसकी चमक कहीं फीकी न पड़ जाए, इसके लिए इसे संरक्षित और प्रचारित करने की और जरूरत है. इसलिए चैती की मधुरता को सुनें, इसके रस में डूबें, और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएं. क्योंकि चैती न केवल संगीत है, बल्कि हमारी आत्मा की पुकार है जो कह रही है...

'चांदनी चितवा चुरावे हो रामा, चैत के रतिया.
मधु ऋतु मधुर-मधुर रस घोले,
मधुर पवन अलसावे हो रामा, चैत के रतिया.'

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement