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रानी से धोखा खाये राजा ने रचा था ऐसा संगीत... 'नीले ड्रम' के इस दौर में उम्मीद का सुर है राग भटियार

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की परंपरा में सुकून के पर्याय अनेक रागों का वर्णन है, लेकिन एक राग खास तौर पर तब याद आता है, जब आपकी रूह किसी रुहानी सुकून की तलाश में हो, जब आप जिंदगी की उथल-पुथल से तंग आ चुके हों और जब आप अपनी जिंदगी में उम्मीद की एक नई किरण-एक नया सवेरा तलाश रहे हों. खुद को रीस्टार्ट करके फिर से कमबैक की चाहत है तो आप पहुंचिए 'राग  भटियार' की शरण में.

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विरह के बाद उम्मीद और आशा का गीत है राग भटियार
विरह के बाद उम्मीद और आशा का गीत है राग भटियार

खबरों की दुनिया में नजर डालिए तो हर तरफ बेवफाई छाई हुई है. कहीं 'नीला ड्रम' है, कहीं सांप का जहर है, तो कहीं पति की हत्या के लिए दी गई सुपारी. खैर, प्रेम और विवाह में बेवफाई कोई नई बात नहीं है. लोक कथाओं और किवदंतियों पर निगाह डालें तो यह बेवफाई और प्यार में धोखा जैसी बातें कई कहानियों के कथानक रही हैं. इस एक 'धोखे' ने या तो बड़े-बड़े युद्ध करवा दिए हैं, या फिर इसके नतीजे से निकला है शांति का मार्ग, निर्गुण ब्रह्म की उपासना और 'ईश्वर सत्य जगत मिथ्या' का ध्येय वाक्य..

उम्मीद की नई किरण है राग भटियार

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की परंपरा में सुकून के पर्याय अनेक रागों का वर्णन है, लेकिन एक राग खास तौर पर तब याद आता है, जब आपकी रूह किसी रुहानी सुकून की तलाश में हो, जब आप जिंदगी की उथल-पुथल से तंग आ चुके हों और जब आप अपनी जिंदगी में उम्मीद की एक नई किरण-एक नया सवेरा तलाश रहे हों. खुद को रीस्टार्ट करके फिर से कमबैक की चाहत है तो आप पहुंचिए 'राग  भटियार' की शरण में.

दिलचस्प है राग भटियार की उत्पत्ति की कहानी

ये अद्भुत राग, जितना यूनीक और खूबसूरत है, इसके बनने की कहानी उतनी ही दिलचस्प है. दिलचस्पी का आलम ये है कि इस कहानी का मेन कीवर्ड है बेवफाई. तो पहले जानते हैं राग भटियार की कहानी.

कहते हैं कि प्राचीन उज्जैन में एक राजा थे, नाम था राजा भतृहरि. वीर, प्रजापालक और संतों की सेवा में रत इस राजा पर महाकाल की विशेष कृपा थी. राजा अपनी पत्नी पिंगला से बहुत प्रेम करते थे. एक दिन राजा की सेवा से प्रसन्न होकर एक संत ने उन्हें एक दिव्य फल का प्रसाद दिया. राजा ने प्रेमवश ये फल अपनी पत्नी रानी पिंगला को दे दिया.

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रानी पिंगला गुपचुप तरीके से राज्य के सेनापति से प्रेम करती थीं, इसलिए जब एकांत में सेनापति उनसे मिलने पहुंचा तो रानी पिंगला ने यही फल उस सेनापति को दे दिया. सेनापति का एक वैश्या से भी संबंध था, उस रात जब वह उसके घर पहुंचा, तो उसने वह फल उसे उपहार में दे दिया.

वैश्या के पास नगर सेठ का युवा लड़का भी आता था. सुंदर, आकर्षक और जवान धनी सेठ के लड़के पर वैश्या मन ही मन रीझ गई थी, इसलिए जब अगले दिन वह युवक वैश्या के पास आया तो उसने प्रेमवश वह फल नगर सेठ के लड़के को दे दिया. नगर सेठ के लड़के की पत्नी पतिव्रता स्त्री थी और शिव भक्त थी. वह पूजा के लिए मंदिर जा रही थी, तभी उसके पति ने उसे वह फल दिया.

राजा भतृहरि

घूम-फिरकर राजा तक ही लौट आया दिव्य फल

सेठ की बहू ने सोचा कि पूजा में इसका प्रसाद चढ़ाऊंगी. वह पूजा करके लौट रही थी कि सामने से राजा भतृहरि आते दिखाई दिए . धनी सेठ की बहू ने सोचा कि इतने दिव्य फल के अधिकारी तो केवल महाराज ही हो सकते हैं, तो उसने वह फल प्रसाद के रूप में राजा को भेंट में दे दिया.

राजा ने वह फल लिया तो देखकर चौंक पड़े. वह उसे घर ले आए और रानी पिंगला से पूछा कि मैंने जो आपको संत के प्रसाद का फल दिया था वह कहां है? रानी पिंगला ने झूठ बोलते हुए कहा कि अरे, वह तो मैंने तभी खा लिया था, बहुत स्वादिष्ट था. यह सुनते ही राजा भतृहरि बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने दूसरे हाथ में वही फल निकालकर रानी के सामने रख दिया.

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अब रानी को काटो तो खून नहीं, उनकी चोरी पकड़ी गई थी. राजा के कड़ाई से पूछते ही रानी ने सब सच बता दिया और फिर इसके बाद फल किसके हाथ से होकर कहां पहुंचा इसकी भी कड़ी से कड़ी जुड़ती गई.

राजा भतृहरि को हुआ वैराग्य

राजा क्रोधित होने के साथ-साथ हैरान भी हुआ. हैरान इसलिए कि,उसके राज्य में सच्चे प्रेम का अस्तित्व ही नहीं है और राज परिवार से लेकर सामान्य नागरिक तक सिर्फ वासना के शिकार हैं. यह देख-सुनकर राजा व्यथित हो हुए. वह नंगे पांव महल से निकल गए. सच की तलाश में भटकने लगे. कई दिनों तक यूं ही भटकते-भटकते वह राजा भतृहरि से फकीर भरथरी हो गए. इसी अवस्था में एक दिन उन्हें गुरु गोरखनाथ मिले.

राग भटियार

राजा भतृहरि के वैराग्य से ही उत्पन्न हुआ राग भटियार

राजा ने उनकी शरण ली. गुरु ने उनका मार्गदर्शन किया और संसार के सुंदर रूप के दर्शन कराए. राजा के जीवन में अब नया प्रभात आ चुका था. इसी नव प्रकाश में उनके हृदय से भक्ति का सोता फूट गया जो कंठ से होते हुए सुरगंगा का रूप लेकर बह निकला.  कहते हैं कि संत भरथरी (भतृहरि) के संगीत से ही राग भटियार की रचना हुई. यह राग भोर की सुंदरता और आशा का राग है. इसके स्वर नए सृजन और नई सृष्टि के प्रतीक हैं. इस राग में उसी ब्रह्म की आराधना है, जो दिन पर दिन सृष्टि और प्रलय का खेल खेलता है.

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कई फिल्मों के गीतों में शामिल रहा है राग भटियार

साल 1985 में एक फिल्म आई थी सुर संगम. सात स्वर, आलाप-तान और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के शास्त्र से सजी इस फिल्म के गाने उस दौर में काफी पसंद किए गए थे. इसी फिल्म में एक गीत है, 'आयो प्रभात, सब मिल गावो जी... इसे गाया है,  शास्त्रीय संगीत विधा के प्रसिद्ध नाम पंडित राजन-साजन मिश्र ने और जिस राग में इस गीत को गाया गया है, वह राग भटियार.

अब सोचिए... सूरज उगने वाला है तो उसकी लालिमा पूर्व दिशा के आकाश में उभर आई है. इसी पहली किरण के साथ संसार जाग चुका है. हल्की-हल्की हवा बह रही है और भारतीय रसोई में भी नए सृजन के लिए आंच उठी है. मसालों की महक, गृहिणी के कुशल हाथों से रचा जा रहा स्वाद और इससे उठने वाला मंद-मंद संगीत. यह सिर्फ एक दिन की शुरुआत नहीं है, बल्कि यही तो जीवन की शुरुआत है.

उम्मीद और आशा की रंगत में रंगे हैं सुर

राग भटियार, सुबह की पहली किरणों के साथ होने वाली इसी जुगलबंदी को आलाप-तान में पिरोकर सामने रखता है. इस राग में उम्मीद का रंग घुला हुआ है और आशा की छाप है. राजा भतृहरि से जुड़ी इसकी उत्पत्ति की कहानी भले ही लोककथा की अतिरंजिता के कारण हो, लेकिन इसकी संगीतमय संरचना और भावनात्मक गहराई इसे अनूठा बनाती है. भावनात्मक गहराई इसलिए,क्योंकि गंभीरता इस राग का प्रमुख गुण है, और यह गंभीरता ऐसी नहीं कि जो डर या दुख से उत्पन्न हो, बल्कि यह गंभीरता ऐसी है जो कुछ नया करने की प्रेरणा देती है.

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राग भटियार और राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का टाइटल ट्रैक

किसी कार्य को करने के लिए जिस पॉजिटिव अवेयरनेस और उस काम को सीरीयसली लेने की जरूरत पड़ती है, राग भटियार उस ओर कदम बढ़ाने का राग है. यही वजह थी कि जब गुजरे जमाने में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को बढ़ावा देने के लिए एक टीवी कमर्शियल बनाया जा रहा था, तो उसके टाइटल ट्रैक को राग भटियार में ही पिरोया गया था.

इस ट्रैक में सिर्फ एक ही लाइन थी. 'पूरब से सूर्य उगा, फैला उजियारा, जागी हर दिशा-दिशा, जागा जग सारा' इस पंक्ति की कंपोजिशन राग भटियार में की गई थी और इसे मशहूर गायिका कविता कृष्णमूर्ति ने अपने सुरों से सजाया था.


कमर्शियल बनाने का मकसद था कि भारत की बड़ी जनसंख्या को साक्षरता की ओर बढ़ाया जाए और कश्मीर से कन्याकुमारी तक के लोगों को साक्षरता अभियान से जोड़ा जाए. इस कमर्शियल को पैन इंडिया लॉन्च किया गया, लेकिन इसकी टार्गेट ऑडियंस उत्तर भारतीय लोग थे. 90 के दशक को लोगों को अगर याद होगा तो उनके जेहन में ये गीत और इसकी धुन जरूर बसी होगी, जो कि एक खुशनुमा, उम्नीद भरी सुबह का सुंदर खाका खींचती है.

जैसे- घर में बिखरी धूप और अगरबत्ती की महक, रसोई से आती कुकर की सीटी की आवाज और छौंक-बघार का शोर, समय से सारे जरूरी काम निपटाने की तेजी और टीवी-रेडियो पर आती ये आवाज... 'पूरब से सूर्य उगा...' कविता कृष्णमूर्ति के सुर वाकई उम्मीद से भर देते थे.  

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भटियार राग, एक निश्छल आत्मा का प्रतीक है. इसका एक उदाहरण साल 2005 में आई फिल्म 'वॉटर' में भी देखने को मिल जाता है. इस फिल्म में एक गीत है,

नैना नीर बहाए,
मुझ बिरहन का मन साजन संग

झूम-झूम के गाए
विष का प्याला काम न आया

मीरा ने पीके दिखलाया
प्रेम तो है गंगाजल इसमें

विष अमृत बन जाए...
नैना नीर बहाए....

एआर रहमान ने अपने गहरे और सधे हुए संगीत को राग भटियार में पिरोकर इस गाने को साधना सरगम से गवाया था. इसकी हर एक पंक्ति में शब्दों का ठहराव और बहुत ही स्पष्ट तौर पर उनके अर्थ का समझ में आना ही राग भटियार की सार्थकता है.

पुरानी फिल्मों की ओर एक बार फिर चलें तो फिल्म घर-घर की कहानी में एक फेमस भजन है 'जय नंदलाला-जय-जय गोपाला' इसे सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने गाया था. इस भजन में भी राग भटियार के सुर इस्तेमाल हुए हैं, जो इसे वाकई में भक्ति के प्रदर्शन के लायक बनाता है.

 

असल में रागों की प्रकृति और उनकी प्रवृत्ति का मुख्य कार्य ही होता है कि वह गीत को उसकी असली भाव दे सकें. इसलिए प्रेम का भाव देने वाले राग अलग हैं, शृंगार का भाव शृंगार प्रधान चंचल रागों से आता है. छेड़छाड़ और ऋतु वर्णन के लिए ऋतु प्रधान राग हैं, और जब बात उम्मीद, भक्ति, आशा की किरण, प्रेरणा और ब्रह्म की उपासना की होती है तो इसके लिए रागों की एक अलग ही कतार है, जिनमें भैरव, भैरवी, यमन, तिलंग, पीलू और राग भटियार मुख्य हैं. इन रागों में भी अलग-अलग भावना की बारीकी के साथ अलग-अलग बारीक फर्क भी होते हैं. असली संगीतकार उसी बारीकी को पहचानकर गीतों को रागों पर आधारित करता है और फिर इस तरह गीत अमर हो जाते हैं.

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राग भटियार की सतह पर सादगी भले ही दिखाई दे, लेकिन इसके भीतर एक जटिल और गहरी संरचना छिपी है. यह राग अपनी स्वर-संरचना के कारण आरोही और अवरोही दोनों दिशाओं में सहजता से बहता है. राग मांड और मारवा से अपनी प्रेरणा लेते हुए, भटियार अपनी खास स्वर-संगतियों के जरिए बहुत ही खास कलाबाजी के तौर पर सामने आता है. भटियार की सुंदरता है इसका नाटकीय स्वर-छलांग यानी यह 'सा' से सीधे 'ध' के स्वर की ओर छलांग ले सकता है. इससे होता ऐसा है कि गीत के पहले शब्द को आप नीचे और हल्के सुर में सुनेंगे, लेकिन उसी शब्द का दूसरा हिस्सा सुर में ऊंचाई लिए हो सकता है.  (उदाहरण के लिए 'पूरब से सूर्य उगा' सुनिए, इसमें पूरब शब्द में स्वर की छलांग समझ आएगी. )

आरोह: सा म, म प,  म ध प म, प ग, प ग रे_ सा

अवरोहः सा ध, ध नि प ध म, म (प) ध प, प ग रे_ सा

 

राग भटियार के उत्पत्ति की लोककथा अगर सही न भी है तो यह राग भारतीय संस्कृति को समझने और उसके सत्य को जानने का सबसे अच्छा और बेहतर माध्यम है. यह प्रेम के उस स्वरूप से निकलने का सुंदर उदाहरण है, जो आपके जीवन को छल रहा है और निर्गुण निराकार ब्रह्म की सत्ता के सत्य होने का, उसे सही मानने का जरिया है. राग भटियार सिर्फ एक राग नहीं उम्मीद का सूर्य है, जिसकी किरणें सुरों के बीच झिलमिलाती और जगमगाती रहेंगी.

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