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आलाप, तान और मान-मनुहार... पद्मश्री अश्विनी भिडे देशपांडे ने गाई 70 साल पुरानी बंदिश, बिखेरा जादू

पद्मश्री अलंकरण से सुशोभित, प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका अश्विनी भिड़े देशपांडे की प्रस्तुति का जादू श्रीराम शंकरलाल संगीत महोत्सव में कुछ ऐसा चढ़ा कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध होकर उनकी स्वर लहरियों में खो गए. ऐसा खोये कि वह रागों की गहराई, भावनाओं की ऊंचाई और ताल की दोगुन-चौगुन की लय के साथ डूबने-उतराने लगे.

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पद्मश्री अश्विनी भिडे देशपांडे ने अपनी गायकी से मोह लिया मन
पद्मश्री अश्विनी भिडे देशपांडे ने अपनी गायकी से मोह लिया मन

शाम घिर चुकी थी और अंधेरा अपना दामन फैला कर उसे रात में बदल देने की कोशिश में जुटा था. रुत वासंती, हवा मनोरम और इसमें घुलती जा रही थी वो मिठास, जो श्रीराम भारतीय कला केंद्र के परिसर के बाहर तक गूंज रही सुर लहरियों में थीं. तानपुरे की तान, तबले की संगत के साथ राग में बंधे हुए गीत की बोल, सिर्फ बोल या बंदिश नहीं एक मनुहार थी. मनुहार गीत की नायिका से, जिसे 'प्यारी' कहकर पुकारा जा रहा है और उससे कहा जा रहा है कि वह जरा धीरे-धीरे चले. 

ए प्यारी पग होले होले धरिए
जैसी पग उपर पायल बाजे
अरी हठीली नेक मेरो कहयो मान...

ये मनुहार कर रही थीं पद्मश्री अलंकरण से सुशोभित, प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका अश्विनी भिड़े देशपांडे और उनकी इस अनुनय-विनय को सुनने वालों से श्रीराम भारतीय कला केंद्र का दिव्य आंगन भरा-पूरा था. उनकी प्रस्तुति का जादू श्रीराम शंकरलाल संगीत महोत्सव में कुछ ऐसा चढ़ा कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध होकर उनकी स्वर लहरियों में खो गए. ऐसा खोये कि वह रागों की गहराई, भावनाओं की ऊंचाई और ताल की दोगुन-चौगुन की लय के साथ डूबने-उतराने लगे.

राग बिहागड़ा में सजी बंदिश
ये बंदिश राग बिहागड़ा में बंधी थी और इसके आलाप-तान कभी ब्रज की ओर ले जाते तो कभी जयपुर-अतरौली की विरासत हवेली संगीत की ओर. इस बात का जिक्र करते हुए यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि अश्विनी खुद भी जयपुर-अतरौली ख्याल गायकी परंपरा की उत्कृष्ट गायिका हैं और इसी विरासत को अपनी कलाकारी से आगे बढ़ा रही हैं. 

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मिश्र राग की खूबसूरती
उन्होंने जिस खूबसूरत बंदिश में अपनी गायकी के उच्च आयाम को सबके सामने रखा, वह राग बिहागड़ा के बड़े विलंबित खयाल में थी. राग बिहागड़ा, जो बिहाग और खमाज का मिला-जुला स्वरूप है और इस तरह यह संगीत की विधा में प्रमुख मिश्र जाति के रागों में शामिल हो जाता है. सौम्यता इस राग की खास पहचान है. जहां चेतावनी, समझाइश, हितोपदेश, मनुहार, शृंगार प्रेम और विरह भी बहुत ही सौम्यता के साथ सामने रखा जाता है. यह राग आवेग, उत्तेजना और विषाद से परे होकर मैत्री भाव की ऐसी मिठास लिए होता है, मानो कह रहा हो जो कहना है आराम से, प्यार से मीठी वाणी में कह लीजिए.   

'मीठी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय' राजधानी दिल्ली, जो कि यों भी बहुत भागदौड़ वाली जगह है, वहां एक शाम अगर आपको शांति और सुकून की तरफ ले जा रही है और मीठी वाणी बोलने के लिए प्रेरित कर रही है, तो समझिए की ईश्वर को अभी भी हमसे बहुत उम्मीदें हैं. वह साज-बाज और संगीत के माध्यम से भी हम इंसानों को बदलने की कोशिश में लगे हैं और मिठास भरी आवाज में, ए प्यारी पग हौले-हौले धरिए कहते हुए अश्विनी इसी ईश्वरीय कार्य का जरिया हैं. 

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अश्विनी भिड़े देशपांडे

तालियों से गूंज उठा प्रांगण
इसीलिए तो जब उन्होंने इस पंक्ति को ही तान बनाकर उठाया और इसके सुरों को खींचते हुए सप्तक के ऊंचे स्थान तक ले गईं तो प्रांगण तालियों से गूंज उठा और फिर अगले ही पल वहां ऐसा सन्नाटा भी पसरा, जिसमें उनके सुर ही गूंज-गूंज कर चारों ओर से ब्रह्मनाद उत्पन्न करने लगे. 

बंदिश के बोल-"ए प्यारी पग होले होले धरिए, जैसी पग उपर पायल बाजे, अरी हठीली नेक मेरो कहियो मान", असल में एक नायिका के मनोभाव हैं. नायिका अपने प्रिय से मिलने के लिए बेसब्र है और उसकी चाल में जो जल्दबाजी है, उससे उसकी पायल शोर मचा रही है. गायकी में उसकी पायल की झंकार स्पष्ट सुनी और महसूस की जा सकती है. अश्विनी भिड़े ने इन बोलों को अपनी गायकी में इस तरह पिरोया कि सुनने वाले उस नायिका की भावनाओं को देख सकते थे. 

आगे बढ़ते हुए, "जागे ब्रिज के लोग सब जागे, अरी नवेली मत कर मान गुमान" में उन्होंने उस नायिका के मन के उलझन और अभिमान को बखूबी उकेरा. यहाँ ब्रज की लोकधर्मी शैली का पुट भी था, जो राग बिहागड़ा की शास्त्रीयता के साथ मधुर संतुलन बनाता है. अश्विनी ने विलंबित लय में स्वरों को इतने धीमे और नियंत्रित ढंग से सामने रखा कि हर स्वर कहानी का ही हिस्सा बनने लगा. यही शैली जयपुर-अत्रौली घराने की पहचान है, जिसकी वे एक प्रतिष्ठित प्रतिनिधि हैं.

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कितनी पुरानी है 'प्यारी पग हौले-हौले धरिए बंदिश'
अश्विनी भिड़े देशपांडे की कंठ कलाकारी पर बात हो रही है तो लगे हाथों खयाल गायन की परंपरा की इस खास बंदिश की भी चर्चा कर लेनी चाहिए. बात कुछ ऐसी है कि विलंबित खयाल गायन की बंदिशों का सही संरक्षण शायद ठीक से नहीं हुआ है. हालांकि ये बोल और गीत भी लोक से ही प्रेरित हैं, लेकिन राग में बांधते हुए कई जगहों पर इसमें शाब्दिक बदलाव भी आया है. 'ए प्यारी पग हौले-हौले धरिये' की ही बात करें तो यह कम से कम नहीं तो 70-75 साल पुरानी बंदिश है. महान संगीतज्ञ उस्ताद अल्लादिया खान के विलंबित बंदिशों वाले खजाने से निकला ये मोती असल में ब्रज शैली के किसी लोकगीत का हिस्सा था. 

उस्ताद अल्लादिया खान ही जयपुर-अतरौली घराने के संस्थापक भी थे और हवेली संगीत की परंपरा को आगे घराना संगीत के रूप में उन्होंने विस्तार दिया था. किसी विवाह समारोह में उन्होंने लोकगीत से प्रेरित ये गीत सुना, फिर इसे इसके मूल पाठ से अलग करते हुए, खयाल गायन के अनुकूल बनाया था. 

जयपुर-अतरौली, उदयपुर और नाथद्वारा, कांकरौली जैसे शहरों के बीच फैले पुष्टिमार्गी वैष्णव शाखा के मंदिरों में श्रीनाथ जी को सुनाए जाने वाले कीर्तन हवेली संगीत के ही मिलते-जुलते स्वरूप हैं. हवेलियों के बीच पनपी, फली-फूली और समृद्ध हुई गायन की यह परंपरा हवेली संगीत कहलाई और फिर शास्त्रीयता में पिरोते हुए इनमें कुछ बदलाव किए गए. अल्लादिया खान ने चालीस साल पहले खुलासा किया था कि मंदिरों में गाए जाने वाले रागों और रचनाओं को खयाल के लिए अनुकूल बनाते समय बोलों में बदलाव हुए हैं. कई बार ऐसा भी हुआ 'मंदिर के संगीतकारों ने मूल रचना को गुप्त रखने के लिए बाहर अलग संस्करण प्रस्तुत किए. 'प्यारी पग हौले' एक मंदिर का पदा है, उन्होंने स्वीकार भी था कि यह पद उन्होंने श्रीनाथ जी के प्रसिद्ध मंदिर नाथद्वारा से सीखा था.

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खैर, लौटते हैं श्रीराम भारतीय कला केंद्र के प्रांगण में. राग बिहागड़ा की मनभावन प्रस्तुति के बाद अश्विनी देशपांडे ने होली प्रस्तुति भी दी. आलाप-तान में सजी उनकी ठुमरी गायकी ने माहौल को रंगीन सा कर दिया. भले ही होली का त्योहार बीत चुका है, लेकिन मौसम में उसकी रंगत चैत्र मास तक बनी ही रहती है. उनकी गायकी ने इस रंगत को और बढ़ाया और श्रोताओं को रोमांचित कर दिया. 

क्या है श्रीराम शंकरलाल संगीत महोत्सव?
यह भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित शास्त्रीय संगीत महोत्सवों में से एक है. बीते दिनों 21 से 23 मार्च 2025 तक नई दिल्ली के सेंट्रल ओपन-एयर थियेटर में इसका आयोजन किया गया था. इस महोत्सव की जड़ें 15 अगस्त 1947 से जुडी हैं जब भारत ने आजादी पाई थी और श्रीराम भारतीय कला केंद्र की संस्थापक सुमित्रा चरत राम, ने रात भर चलने वाले संगीत समारोह का आयोजन किया था. भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया के कई बड़े नामों ने उस रात संगीत का जादू बिखेरा था. इस कार्यक्रम ने झंकार संगीत मंडल की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय संगीत की सराहना और इसकी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए नियमित संगीत कार्यक्रमों और एक वार्षिक महोत्सव का आयोजन करना था, जो पहले उनके घर में और बाद में संविधान क्लब, नई दिल्ली में आयोजित किया जाता था

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