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शक्ति पीठों की रक्षिका और संगीत का एक राग... देवी दुर्गा के इस स्वरूप का क्या है क्लासिकल म्यूजिक से कनेक्शन?

भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग भैरवी इन्हीं सारी विशेषताओं के साथ शामिल है. ऐसा राग जो सुबह की पहली किरण की तरह नर्म गर्माहट से भरा है कोमल सुरों से सजे होने के बाद भी गहरी भावनाओं का साक्षी है. यह राग केवल स्वरों का समूह नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो आत्मा को प्रभात की शांति और प्रेम की अनंत गहराइयों में ले जाती है.

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राग भैरवी को बाबा हरिदास ने सिद्ध किया था. बाबा हरिदास प्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन के गुरु थे
राग भैरवी को बाबा हरिदास ने सिद्ध किया था. बाबा हरिदास प्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन के गुरु थे

भोर का समय है. विहान अभी हुआ नहीं है, लेकिन पूर्व दिशा में क्षितिज की रंगत बदलने को है. रात ने अपना आंचल समेट लिया है और उसकी विदाई में बहे आंसू घास पर ओस बनकर ठहर गए हैं. मंद गति में हवा बह रही है. संसार अभी उनींदा ही है, आलस में है, रात के विकार में है. ये तीनों ही ऐसे अवगुण हैं, जो जीवन में चेतना की राह रोक लेते हैं. ये अवगुण दूर कैसे होंगे? 

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ये सवाल अभी सिर उठाता कि इससे पहले ही एक परम पावन कुटिया में वीणा की झंकार उठती है और फिर कोमल ऋषभ, कोमल गंधार, कोमल धैवत और कोमल निषाद के सुर गूंज उठते हैं. एक गंभीर स्वर लहरी सुनाई देती है, जिसमें ब्रह्म को पुकारा जा रहा है और कहा जा रहा है, 'प्रभु जी मोरे अवगुण चित न धरौ'

ये आवाज है बाबा हरिदास की. यमुना का तट, वंशीवट की छांह और तुलसी, हारसिंगार व केले के पौधों से पवित्र कुटिया में बाबा भोर ही में नियमित संगीत साधना करते थे. राग भैरवी में गाया जा रहा उनका ये भजन, प्रातः काल के आगमन का संकेत है, रात्रि के बीत जाने का घोष है और प्रकृति के लिए एक नई दिवस की तैयारी का नाद है.  

शास्त्रीय संगीत में राग भैरवी
भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग भैरवी इन्हीं सारी विशेषताओं के साथ शामिल है. ऐसा राग जो सुबह की पहली किरण की तरह नर्म गर्माहट से भरा है कोमल सुरों से सजे होने के बाद भी गहरी भावनाओं का साक्षी है. यह राग केवल स्वरों का समूह नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो आत्मा को प्रभात की शांति और प्रेम की अनंत गहराइयों में ले जाती है. राग भैरवी का नाम सुनते ही मन में एक मधुर संनाद गूंजने लगता है, जैसे किसी प्राचीन मंदिर की घंटियां मंद हवा से धीरे-धीरे बज रही हैं. 

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राग भैरवी

देवी दुर्गा का एक स्वरूप है देवी भैरवी

नवरात्र का समय है और देवी पूजा जारी है. देवी दुर्गा के 9 रूप तो प्रचलित हैं, लेकिन पौराणिक कथाओं में देवी के कई अन्य रूपों और नामों का भी जिक्र आया है. इसमें देवी दुर्गा की एक शक्ति का नाम है भैरवी. माना जाता है कि जैसे महादेव शिव के अंशावतार भैरव हर शक्तिपीठ की सुरक्षा करते हैं, देवी भैरवी उन्हीं शक्ति पीठों की रक्षिका देवी के तौर पर भैरव की सहायता करती है.

राग भैरवी और देवी भैरवी में समानता

लेकिन, देवी भैरवी का अस्तित्व केवल पुराण कथाओं तक ही सीमित नहीं है. शास्त्रीय संगीत की परंपरा में राग भैरवी का नाम देवी के मा पर ही है. हालांकि जहां देवी भैरवी उग्र और उन्मत देवी हैं, तो वहीं राग भैरवी की प्रकृति  बेहद गंभीर है, लेकिन इस गंभीरता में भी एक चंचलता इसमें शामिल रहती है. इसलिए राग भैरवी में ओज और ऊर्जा के ही साथ-साथ प्रेम और शृंगार भी देखने को मिलता है. कहते हैं कि अकबर के दरबारी गायक रहे तानसेन के गुरु श्रीकृष्ण के बड़े भक्त थे और वह कृष्ण भक्ति में कोई विशेष पूजा नहीं करते थे, बल्कि सिर्फ राग वंदना ही करते थे.

वह कृष्ण भक्ति के पदों को राग में सजाकर गाते थे और यही उनकी पूजा थी. उनका गायन इतना अद्भुत होता था कि राग-रागिनियां सहज रूप में उनकी कुटिया में प्रकट हो जाते थे और उनके गायन के साथ नृत्य करते थे. खुद देवी भैरवी को उन्होंने राग भैरवी गाकर सिद्ध किया था.  
 

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भैरव की शक्ति हैं भैरवी, देवी के नाम से हुई है राग की उत्पत्ति
राग भैरवी का नामकरण एक पौराणिक देवी पर आधारित है. महादेव शिव की जो उग्र शक्ति भैरव कहलाती है, उसी भैरव का शांत और स्त्री स्वरूप ही भैरवी है. जब उग्र भैरव, सदाशिव की प्रेरणा से सर्वनाश की लीला करते हैं तब भैरवी ही अपने कोमल सुरों से सृजन की नई शुरुआत करती हैं. भैरवी शब्द का अर्थ भी "भय को हरने वाली" है और ऐसा ही यह राग भी है. इस राग को भी सुनने वाले के मन से भय, चिंता और अशांति दूर हो जाती है और उसे अलौकिक शांति मिलती है. 

पौराणिक कथाओं में मां भैरवी को ही शक्ति-संहार और सृजन की भी देवी माना गया है, लेकिन संगीत में यह राग कोमलता और करुणा का प्रतीक बनकर उभरता है. इसलिए ही इस राग का गायन काल भोर के समय का है, जब प्रकृति नवजागरण की ओर बढ़ रही होती है. 

भारतीय संगीत के थाट प्रणाली में राग भैरवी को भैरवी थाट का आधार माना जाता है. यह थाट अपने आप में संपूर्ण सप्तक के सभी स्वरों को समेटे हुए है, जिसमें कोमल स्वरों का प्रयोग प्रमुखता से होता है. राग भैरवी का यह गुण इसे अन्य रागों से अलग करता है, क्योंकि यहां स्वरों की स्वतंत्रता और भावनात्मक गहराई दोनों ही मौजूद हैं.

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ऐसी है राग भैरवी की संरचना
राग भैरवी एक संपूर्ण जाति का राग है, संपूर्ण जाति से अर्थ है कि जिस राग के आरोह-अवरोह  (स्वर को बढ़ते क्रम में गाते समय और फिर स्वर की उतराई लेते समय) लेते संगीत के सातों सुरों का प्रयोग होता है, उन्हें संपूर्ण जाति का राग कहते हैं. 

राग भैरवी में सातों सुर प्रयोग होते हैं. षड्ज (सा), ऋषभ (रे), गंधार (ग), मध्यम (म), पंचम (प), धैवत (ध) और निषाद (नि). लेकिन इसकी खासियत यह है कि इसमें सभी कोमल स्वरों (रे, ग, ध, नि) का प्रयोग होता है, जो इसे एक करुण और भावपूर्ण रंग प्रदान करते हैं. जो स्वर कोमल होता है, उसके नीचे ये (-) लगा होता है. इसका आरोह और अवरोह इस प्रकार है,

आरोह: सा, रे॒ (कोमल), ग॒ (कोमल), मा, प, ध॒ (कोमल), नि॒ (कोमल), सां

अवरोह: सां, नि॒ (कोमल), ध॒ (कोमल), प, मा, ग॒ (कोमल), रे॒ (कोमल), सा

इस राग का वादी स्वर मध्यम (मा) और संवादी स्वर षड्ज (सा) है. मध्यम स्वर इस राग की आत्मा है, जो इसे एक गहरी भावनात्मक शक्ति देता है. राग भैरवी में कोमल स्वरों का प्रयोग इसे एक मधुर और करुण रस से भर देता है, जो सुनने वाले के हृदय को छू जाता है.  

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किसी राग के गायन का जो समय, उसका अर्थ ये है कि उस खास समय में वह राग सबसे अधिक प्रभावी होता है. प्राचीन काल में संगीत सिर्फ मनोरंजन का जरिया नहीं बल्कि सिद्धि का अभ्यास और माध्यम भी था. इन्हीं रागों में वेदों की ऋचाएं भी गाई जाती थीं और किस ऋचा को किस समय सिद्ध किया जा सकता है, इसके लिए उन्हें उनके सही समय पर गाना जरूरी था. ऐसे में ही समय के आधार पर वातावरण और प्रकृति की विशेषता को देखते हुए समयानुसार गायन के लिए समयानुसार रागों की उत्पत्ति हुई थी. 

भैरवी राग को सुबह के समय गाए जाने का अर्थ है कि इसे प्रातः काल की सिद्धियों के लिए प्रयोग किया जाता था. यही शिव पूजन के लिए भी विशेष माना गया है, ऐसे में भैरवी में शिव भक्ति के भजन और देवताओं के लिए की गई प्रार्थनाएं अधिक शामिल हैं. हालांकि इस राग को किसी भी समय गाया जा सकता है. क्योंकि इसकी भावनात्मक अपील समय की सीमाओं से परे है.

देवी दुर्गा

राग भैरवी का प्रभाव
राग भैरवी का सबसे बड़ा गुण इसका भावनात्मक प्रभाव है. यह राग भक्ति, प्रेम और शांति का संगम है. जब इसके स्वर कानों में पड़ते हैं, तो ऐसा लगता है मानो सारी दुनिया थम सी गई हो और केवल एक मधुर संनाद बचा हो. यह राग भक्ति रस का प्रतीक माना जाता है, और इसलिए इसे कई भजनों और ठुमरियों में प्रयोग किया जाता है. इसके अलावा, इसमें करुण रस और श्रृंगार रस की छाया भी देखने को मिलती है, जो इसे बहुमुखी बनाता है.

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जब कोई कलाकार राग भैरवी को आलाप के साथ शुरू करता है, तो वह धीरे-धीरे स्वरों को एक-एक करके खोलता है, जैसे सुबह की धूप पंखुड़ियों को खिलाती है. पहले षड्ज की स्थिरता, फिर कोमल ऋषभ की करुणा, कोमल गंधार की मिठास, और मध्यम की गहराई—हर स्वर एक नई भावना को जन्म देता है. यह राग सुनने वाले को एक ऐसी यात्रा पर ले जाता है, जहां मन शांत और आत्मा प्रफुल्लित हो उठती है.

राग भैरवी का प्रयोग शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ लोक संगीत, भजन, ठुमरी, और यहां तक कि फिल्मी संगीत में भी देखने को मिलता है. इसकी लचीलापन और भावनात्मक गहराई इसे हर तरह के संगीतकारों के लिए प्रिय बनाती है. उदाहरण के लिए, पंडित रवि शंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, और पंडित भीमसेन जोशी जैसे महान कलाकारों ने इस राग को अपनी प्रस्तुतियों में अमर कर दिया. ठुमरी गायन में राग भैरवी का विशेष स्थान है, जहाँ इसे "कजरी" और "दादरा" जैसी शैलियों में गाया जाता है.

सूरदास की बंदिशों को गाते थे बाबा हरिदास

खास बात ये है कि प्रभात से ठीक पहले की वेला का राग होने के कारण इस राग में भजन वाली बंदिशें अधिक रची गई हैं. भक्त कवि सूरदास का रचा गया एक पद देखिए. यह वही पद है जिसे सूरदास ने लिखा था, जो कि अष्टछाप के कवियों में से एक था. महान कृष्ण भक्त सूरदास और कृष्ण के ही भक्त स्वामी हरिदास दोनों ही समकालीन थे, लिहाजा सूरदास के कई पदों का शास्त्रीय प्रयोग स्वामी हरिदास ने किया था.

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प्रभु जी मोरे अवगुण चित न धरौ
समदरसी है नाम तिहारो
चाहे तो पार करो

एक लोहा पूजा में राखत, एक घर बधिक परो
पारस गुण अवगुण नहीं चितवे, कंचन कर खरो
प्रभु जी मोरे....

एक नदिया एक नार कहावत, मैलो ही नीर भरो
जब दोऊ मिली एक बरण भए, सुरसरि नाम परो
प्रभुजी मोरे...

एक जीव एक ब्रह्म कहावत, सूर श्याम झगरो,
अबकी बेर मोहे पार उतारो, नहीं पन जात टरो

हालांकि स्वामी हरिदास को सिर्फ गायक मानना या संगीतज्ञ कहना उनकी कृष्ण भक्ति का अपमान होगा. असल में स्वामी हरिदास अपनी संगीत साधना सिर्फ ईश्वर भजन के लिए करते थे. वह दरबारी या श्रोताओं के गायक नहीं थे. जब भी उनके हृदय में भक्ति का सोता फूटता था वह गाते थे और ऐसा गाते थे कि उनके साथ झूमती थी मंद-मंद हवा, पेड़-पौधे और तटों से टकराता यमुना का जल. कहते हैं कि उनके गायन में वो मिठास थी कि घने जंगल से निकलकर हिरन उनकी कुटिया के पास आ जाते थे. बाबा हरिदास प्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन के गुरु भी थे और बैजू इसके अलावा महान संगीतज्ञ बैजू बावरा को भी संगीत की शिक्षा उन्होंने ही दी थी.

फिल्मों में राग भैरवी

फिल्म संगीत में राग भैरवी का प्रयोग बहुत खूबसूरती के साथ दिखाई देता है. खासतौर पर 1940-50 के दशक में जब फिल्में बनीं तो उनके गाने या तो लोकसंगीत से प्रेरित थे, या फिर शास्त्रीय संगीत से. इस दौर में संगीतकारों ने शास्त्रीय संगीत को सिनेमा में बहुत करीने से जगह दी है. नौशाद, सी. रामचंद्र, अनिल बिस्वास जैसे संगीतकारों ने राग भैरवी को अपने गीतों में शामिल कर इसे लोकप्रिय बनाया है. बाद के दशकों में भी यह राग संगीतकारों की पसंद बना रहा, और आज के दौर में भी कुछ गानों में इसका असर दिख जाता है. 

राग भैरवी पर आधारित कई फिल्मी गीत आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में बसे हुए हैं.

मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गए रे (फिल्म: मुगल-ए-आजम, 1960)
संगीतकार नौशाद ने इस गीत में राग भैरवी का खूबसूरत प्रयोग किया है. यह गीत भक्ति और श्रृंगार रस का अद्भुत मिश्रण है, जिसमें मधुरता और भावनात्मक गहराई दोनों मौजूद हैं. लता मंगेशकर की आवाज में यह गीत राग भैरवी की सौम्यता के साथ चंचलता को भी सामने रखता है.

ज्योति कलश छलके (फिल्म: भाभी की चूड़ियाँ, 1961)
इस गीत को संगीतकार सुदर्शन ने राग भैरवी पर सजाया था. लता मंगेशकर की मधुर आवाज में यह गीत भक्ति और करुणा के भाव सामने रखता है. गीत के बोल और संगीत दोनों में राग भैरवी की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है.

रसिक बलमा (फिल्म: चोरी चोरी, 1956)
शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने इस गीत में राग भैरवी का उपयोग कर वियोग के भाव को उभारा है. लता मंगेशकर की आवाज में यह गीत प्रेम में बिछड़ने की पीड़ा को गहराई से व्यक्त करता है. राग भैरवी की कोमल स्वरों ने इस गीत को और भी मार्मिक बना दिया था.

"बैरन बन के सजना" (फिल्म: हम दोनों, 1961)
संगीतकार जयदेव ने इस गीत में राग भैरवी का उपयोग कर प्रेम और वियोग के भाव को व्यक्त किया है. आशा भोसले और लता मंगेशकर की आवाज में यह गीत राग भैरवी की मधुरता को सामने रखता है और आज तक इसे भूला नहीं जा सका है. 

"तेरे बिन साजन लागे न जिया" (फिल्म: आरती, 1962)
आर.डी. बर्मन ने इस गीत में राग भैरवी का हल्का-सा स्पर्श दिया है. लता मंगेशकर और किशोर कुमार की आवाज में यह गीत प्रेम और वियोग के भाव को खूबसूरती से व्यक्त करता है.

हाल की फिल्मों में राग भैरवी
साल 2000 के बाद से नए दौर की फिल्मों में शास्त्रीय रागों का प्रयोग कम हो गया है, फिर भी राग भैरवी का असर देखा जा सकता है. फिल्म "बाजीराव मस्तानी" (2015) में संजय लीला भंसाली ने गीत "मोहे रंग दो लाल" में राग भैरवी का हल्का-सा स्पर्श दिया है. यह गीत भक्ति और श्रृंगार रस का मिश्रण है, जो राग भैरवी की विशेषता को सामने रखता है.

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