बचपन में हम सभी ने कभी ना कभी अपने पापा के स्कूटर पर आगे खड़े होकर शान से सवारी की होगी. पापा के कहने पर स्कूटर को रेस भी दी होगी. याद कीजिए, कितने खास होते थे उस दौर के स्कूटर...इनमें ऐसे-ऐसे फीचर्स की भरमार होती थी जिनकी कमी आजकल के स्कूटर में बहुत खलती है....
(Photo: Getty)
गायब हुई आगे वाली डोलची
पापा जब काम से घर आते थे, तो बच्चों का सबसे पहला काम होता था, स्कूटर में आगे बनी डोलची में से अपनी पसंद का सामान निकालना. गर्मियों के दिनों में तो पापा जब इस डोलची को आम से भरकर घर पहुंचते थे, तो बच्चे दरवाजे पर ही इसमें से आम निकालकर खाने निकल जाते थे. आजकल के जमाने में ये डोलची तो स्कूटर में गायब ही हो गई है और इसकी जगह सीट के अंदर वाली डिक्की ने ले ली है. (Photo: India Today Archive)
अब नहीं दिखती 'छोटू सीट'
आजकल के स्कूटर से एक और चीज बच्चों के लिए गायब हो गई, वो है 'छोटू सीट'. अरे वही सीट, जो आपके पापा ने स्कूटर में अलग से लगवाई थी, ताकि जब आप आगे खड़े-खड़े थक जाएं तो आराम से उस सीट पर बैठ जाएं. हालांकि उस सीट पर बैठने के बाद आगे कुछ दिखता तो था नहीं, तो हम सब फिर खड़े हो जाते थे. (Photo : Santosh Raxine Work)
मम्मी का डर भगाने वाली स्टेपनी
अगर आपके कहने पर पापा कभी-कभी स्कूटर को सुपर स्पीड में दौड़ाकर फर्राटा भरते थे. तब आपको पता भी नहीं होता था कि पीछे बैठी मम्मी की हालत कितनी खराब होती थी, लेकिन तब मम्मी कहती कुछ नहीं थी, बस चुपचाप से पीछे लगी टायर वाली स्टेपनी को पकड़ लेती थी. अब आजकल के स्कूटर में तो ये दिखती नहीं, लेकिन उस दौर में अगर बीच रास्ते में कहीं स्कूटर पंचर हो जाए तब ये स्टेपनी बहुत काम आती थी. (Representative Photo: India Today Archive)
दो सीट के बीच बैठने की दिक्कत
इस समस्या से बचपन में हर उसे बच्चे को दो-चार होना पड़ा होगा, जब स्कूटर पर आगे खड़े होने की जगह पर उसके छोटे भाई या बहन ने कब्जा जमाया होगा. तब स्कूटर में दो अलग-अलग सीट (Spilit Seat) आती थीं और उन सीटों पर मम्मी-पापा के बीच बैठना अपने आप में एक कसरत होती थी. (Photo: Getty)
'साइड कार' होती थी शान की सवारी
'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' (TMKOH) में आपने सेक्रेटरी भिड़े का स्कूटर देखा होगा. तो उसकी साइड कार आपको पुराने जमाने की याद दिलाती होगी. बचपन में इस साइड कार की सवारी 'शान की सवारी' होती थी. बारिश के मौसम में पूरी फैमिली संग इस साइड कार में बैठकर जाने का मजा ही अलग था. फिर पापा चाट-पकौड़ी भी खिला दें तो पूरी पिकनिक ही हो गई. (Photo: Flickr)
बिना मास्ट हेड वाली हेडलैंप
आजकल के ज्यादातर स्कूटर की हेडलैंप बड़े से मास्टहेड के साथ आती हैं, लेकिन बचपन के दिनों में पापा के पास जो स्कूटर होता था, उसकी हेडलैंप गोल होती थी. इसका फायदा ये होता था कि हम आगे खड़े होकर दूर तक पूरी सड़क को आसानी से देख सकते थे. आजकल ऐसा कम ही देखने को मिलता है. (Photo: India Today Archive)