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Does Airbag Deploy Without Seatbelt: सड़क पर जब कोई कार चलती है तो उनमें सवार जिंदगियों की रफ्तार भी ठीक वैसी ही होती है. जिस तरह जरूरत पड़ने पर कार की रफ्तार धीमा करने के लिए ब्रेक का इस्तेमाल किया जाता है वैसे ही कार में सवार यात्रियों की सुरक्षा के लिए एयरबैग और सीट-बेल्ट एक जीवन रक्षक के तौर पर काम करते हैं. रफ्तार... लगाम और सुरक्षा का ये एक ऐसा मैकेनिज़्म होता है जो एक टीम की तरह काम करता है. एयरबैग और सीट-बेल्ट ये दो ऐसे मैकेनिज्म है जो एक दूसरे के पूरक (Supliment) हैं. आम भाषा में समझें तो एक के बिना दूसरा अधूरा है.
एयरबैग, एक बेहद ही जरूरी सेफ्टी फीचर है जिसने दुनिया भर में अब तक न जाने कितनी जिंदगियों को बचाया है. सरकार भी समय-समय पर वाहनों में एयरबैग की संख्या बढ़ाने की वकालत करती रही है. हाल के दिनों में एक्सीडेंट के कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जिन्होनें इस बात की चर्चा को जोर दिया कि, क्या सीट-बेल्ट न लगाने पर कारों में एयरबैग काम नहीं करता है? आज हम आपको एयरबैग और सीट-बेल्ट के बीच उसी ख़ास कनेक्शन के बारे में विस्तार से बताएंगे.
टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल लिमिटेड के चीफ प्रोडक्शन ऑफिसर, मोहन सावरकर
इसके लिए हमने टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल लिमिटेड के चीफ प्रोडक्शन ऑफिसर, मोहन सावरकर से ख़ास बातचीत की और यह समझने की कोशिश की कि, आखिर सीट-बेल्ट और एयरबैग के बीच क्या कनेक्शन है. किस तरह ये दोनों जीवन रक्षक प्रणाली के तौर पर बेहद जरूरी हैं और ये किस तरह से काम करते हैं. हमने इन दोनों फीचर्स के मैकेनिज़्म को ठीक ढंग से समझने के लिए ग्रॉफिक्स का भी सहारा लिया है.
क्या होता है एयरबैग:
सबसे पहले यह समझ लें कि, आखिर 'AIRBAG' क्या होता है? एयरबैग आमतौर पर पॉलिएस्टर की तरह की मजबूत टेक्सटाइल या कपड़े से बना एक गुब्बारे जैसा कवर होता है. इसे ख़ास मैटेरियल से टेनेसिल स्ट्रेंथ (कपड़े की मजबूती) के लिए डिज़ाइन किया जाता है ताकि दुर्घटना के समय यात्रियों को सुरक्षित रखा जा सके. ये कार में किसी सेफ्टी कुशन की तरह काम करता है, जैसे ही वाहन से कोई इम्पैक्ट या टक्कर होती है ये सिस्टम एक्टिव हो जाता है.
गुरुत्वाकर्षण बल यानी G-फोर्स का अहम रोल:
टाटा मोटर्स के मोहन सावरकर बताते हैं कि, "किसी भी गाड़ी का जब एक्सीडेंट होता है तो कार चाहे जिस भी स्पीड में चल रही हो, अचानक से उसकी रफ्तार थम जाती है और स्पीड जीरो पर आ जाती है. ये पूरा घटनाक्रम कुछ मिली सेकंड में होता है और इससे काफी ज्यादा G-फोर्स यानी कि ग्रेविटी फोर्स डेवलप होता है. इसे ऐसे समझें कि, यदि कोई कार 50-60 किमी/घंटा की रफ्तार से चल रही है और एक्सीडेंट होता है तो उस पर आमतौर पर कार में बैठे यात्रियों पर 40 गुना ग्रेविटी फोर्स आता है.'
सावरकार इस बात को समझाते हुए आगे कहते हैं कि, "यदि कार के चलते वक्त उसमें बैठे यात्री का वजन यदि 80 किग्रा है, और ग्रेविटी 40 होगी तो ये बढ़कर (80x40)= 3200 किग्रा हो जाता है. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि, यदि कोई व्यक्ति 50 किमी/घंटा की रफ्तार से चल रहा है और अचानक से उस पर 40 गुना गुरुत्वाकर्षण बल लगे तो कांच तोड़कर गाड़ी से बाहर निकल जाएगा. आमतौर पर गाड़ियों का वजन 2 टन तक होता है उनके लिए ये ग्रेविटी फोर्सेज और भी खतरनाक साबित होती हैं."
यहीं काम आता है सीट-बेल्ट:
रफ्तार के समय यात्रियों को चोट न लगे और उनकी सुरक्षा हो सके, ऐसे मौके पर ही सीट-बेल्ट काम आता है. मोहन सावरकर बताते हैं कि, "सीट बेल्ट कई प्रकार के आते हैं, पहले बेसिक सीट-बेल्ट्स आते थें जैसा कि पुरानी गाड़ियों में देखने को मिलता था. शुरुआत में केवल गोद (लैप) में लगने वाला बेल्ट आता है फिर कंधे से होकर जाने वाला ट्राएंगुलर बेल्ट आने लगा."
सीट-बेल्ट के प्रकार:
इसके उपर ELR सीट बेल्ट आते हैं, जिसे इमरजेंसी लॉकिंग रिट्रेक्टर (Emergency Locking Retractor) कहते हैं. ये बेल्ट इस तरह से काम करता है कि, जब भी एक्सीडेंट होगा तो बेल्ट में जिमना भी ढ़ीलापन होगा वो उसे खींच लेगा और फिक्स जगह पर रूक जाएगा, इससे पैसेंजर की बॉडी आगे नहीं जाएगी. हालांकि सावरकर का मानना है कि, ये सिस्टम उतना अच्छा नहीं है, क्योंकि इस तरह के बेल्ट से यात्री ज्यादा चोट पहुंचने की संभावना होती है."
सावरकार आगे बताते हैं कि, "इसके बाद आता है प्रीटेंशनर ELR बेल्ट, इसमें जैसे ही सेंसर्स को जैसे ही पता चलता है कि, एक्सीडेंट होने वाला है, तो बेल्ट में जितना भी ढ़ीलापन होता है वो पूरी तरह से खीच जाता है और पैसेंजर की बॉडी बिल्कुल भी आगे नहीं जाती है, जिससे सेफ्टी और भी बढ़ जाती है." यानी कि, ये बेल्ट एक्सीडेंट होने से पहले ही सेंसर्स की मदद से एक्टिव जाते हैं.
बेल्ट के टाइप्स बताते हुए सावरकर बताते हैं कि, "इसके उपर भी एक सीट बेल्ट आता है, जिसे प्रीटेंशनर लोड लिमिटर कहा जाता है. लोड लिमिटर का मतलब होता है कि, जैसे ही एक्सीडेंट हुआ और पैसेंजर की बॉडी झटका लगने पर आगे की ओर फेकी जाती है, तो जब तक फोर्स 5 किग्रा तक नहीं होता है तक तक सीट-बेल्ट पैसेंजर को पकड़कर रखता है. लेकिन जैसे ही फोर्स 5 किग्रा से ज्यादा होता है तो बेल्ट धीमे-धीमें बॉडी को आगे छोड़ता है." सावरकर कहते हैं कि, "ये काफी टेक्निकल बातें हैं और समय के साथ इसमें काफी डेवलपमेंट हो रहा है और सेफ्टी बेहतर हो रही है."
एयरबैग की एंट्री और सीट-बेल्ट से कनेक्शन:
मोहन सावरकर कहते हैं कि, "सीट-बेल्ट लगे होने के बावजूद पैसेंजर की बॉडी आगे डैशबोर्ड की तरफ जाएगी, तो वो ज्यादा न जा पाए और डैशबोर्ड से न टकराए इसके लिए एयरबैग की जरूरत होती है. यही कारण हैं कि, सीट-बेल्ट को हमेशा प्राइमरी रिस्ट्रेंट सिस्टम (Primary Restraint System) कहा जाता है और 'एयरबैग' को हमेशा सप्लीमेंट्री रिस्ट्रेंट सिस्टम (Supplementary Restraint System) कहा जाता है."
आपको याद होगा कि, कारों के डैशबोर्ड या स्टीयरिंग व्हील पर आपने (SRS Airbag) लिखा होता है. इसके पीछे यही कारण होता है क्योंकि, इसे सप्लीमेंट्री रिस्ट्रेंट सिस्टम कहा जाता है.
कैसे काम करता है एयरबैग:
मोहन सावरकर सप्लीमेंट्री रिस्ट्रेंट सिस्टम यानी कि एयबैग की कार्यप्रणाली बताते हुए कहते हैं कि, "पहले आपने देखा कि, सीट-बेल्ट अपना काम करता है और अब बारी आती है एयरबैग की. जैसे की दुर्घटना होती है, SRS सिस्टम में पहले से ही इंस्टॉल किया गया नाइट्रोजन गैस एयरबैग में भर जाता है. ये पूरी प्रक्रिया पलक झपकते यानी कि कुछ मिली सेकंड में होती है. इसके बाद एयरबैग फूल जाता है और यात्री को एक बेहतर कुशनिंग के साथ सेफ्टी प्रदान करता है. एयरबैग में होल्स यानी कि छेद दिए जाते हैं जो कि डिप्लॉय होने के बाद गैस को बाहर निकाल देता है."
इन सारी प्रक्रिया के बीच गाड़ी की बॉडी की मजबूती का भी ख्याल रखा जाता है. ताकि किसी भी क्रैश के समय कार के भीतर बैठे व्यक्ति को ज्यादा नुकसान न हो और ज्यादा से ज्यादा इंपेक्ट एनर्जी गाड़ी ही झेल जाए, इसके लिए कार की बॉडी को मजबूत मेटल से तैयार किया जाता है.
क्या सीट-बेल्ट न लगाने पर एयरबैग डिप्लॉय नहीं होगा?
जब हमने मोहन सावरकर से पूछा कि, क्या अगर सीट-बेल्ट न लगाने पर एयरबैग डिप्लॉय नहीं होगा, तो वो बताते हैं कि, "नहीं ऐसा नहीं है, एयरबैग डिप्लॉय होगा लेकिन इससे यात्री को ज्यादा चोट आएगी. लेकिन यदि सीट-बेल्ट का इस्तेमाल किया गया है और क्रैश के दौरान एयरबैग डिप्लॉय होता है तो यात्री को कम से कम चोट लगने की संभावना रहती है."
कब खुलता है एयरबैग:
एयरबैग के डिप्लॉयमेंट को लेकर सावरकर बताते हैं कि, "बहुत ही लो-स्पीड पर एयरबैग डिप्लॉय नहीं होता है, इसके लिए सिस्टम में एक स्पीड निश्चित की गई होती है, यानी कि एयरबैग तभी खुलेगा जिस स्पीड पर टक्कर होने पर यात्री को चोट पहुंच सकती है. ये ऐसे ही रोड पर चलते हुए अचानक से लगने वाले छोटे-मोटे इम्पैक्ट पर डिप्लॉय नहीं होता है."
कितनी स्पीड पर डिप्लॉय होता है एयरबैग:
जब सावरकर से पूछा गया कि, एयरबैग के डिप्लायेंट के लिए सामान्यत: कितनी स्पीड की जरूरत होती है. जिसके बारे में वो कहते हैं कि, "यदि मैं गलत नहीं हूं तो आमतौर कार की स्पीड 30 किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा होनी चाहिए, हालांकि ये एकदम एक्जेक्ट फीगर नहीं है."
क्या ऑफ्टर मार्केट एयरबैग रिपेयर कराया जा सकता है?
सबसे आखिरी में मोहन सावरकर बताते हैं कि, "यदि किसी भी कार का एक्सीडेंट हो गया है और क्रैश इतना तेज हो कि एयरबैग डिप्लॉय हो जाते हैं तो इस दशा में कभी भी ऑफ्टर मार्केट एयरबैग इंस्टॉल न करवाएं. क्योंकि दुर्घटना के समय की बॉडी पर लगे कई ऐसे एलिमेंट भी डैमेज हो जाते हैं जिनका इस्तेमाल एनर्जी ऑब्जर्व करने के लिए किया जाता है. उन्हें भी ठीक ढंग से मरम्मत की जरूरत होती है. ऐसी स्थिति में हमेशा अधिकृत सर्विस सेंटर पर ही वाहन को रिपेयर करवाएं."