हाल में Ratan Tata को एक इलेक्ट्रिक टाटा नैनो गिफ्ट में मिली थी, लेकिन अब Tata Nano एक बार फिर चर्चा में हैं, वजह है- इसे बनाने की पूरी कहानी खुद रतन टाटा ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की है. टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने Nano के लॉन्च के वक्त की एक तस्वीर शेयर की है. साथ में एक सुंदर पोस्ट लिखी है.
रतन टाटा ने अपने पोस्ट में लिखा है-मैं लगातार भारतीय परिवारों को स्कूटर पर सफर करते देखा करता था, जहां अक्सर एक बच्चा माता और पिता के बीच सैंडविच की तरह बैठा होता था. कई बार चिकनी और फिसलन भरी सड़कों पर भी वो इस तरह जा रहे होते थे. यही वो मुख्य कारण था जिसने जिसने मेरे अंदर इस तरह की गाड़ी (Nano) बनाने की इच्छा पैदा की और मुझे मोटिवेट किया.
उन्होंने आगे लिखा-स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर (School of Architecture) में पढ़ने का फायदा मिला. मैं नई तरह की डिजाइनों पर काम करने की कोशिश कर सकता था. शुरुआत में आइडिया था कि 2-Wheeler को सुरक्षित बनाया जाए. इसके लिए एक डिजाइन तैयार किया गया जो एक 4-Wheeler ही था, लेकिन उसमें ना तो कोई दरवाजा था, और ना ही कोई खिड़की. लेकिन अंत में मैंने तय किया कि ये एक कार होगी. Nano कार हमेशा से हमारे सारे लोगों के लिए ही बनाई गई थी.
लखटकिया कार' या 'आम लोगों की कार' नाम से मशहूर हुई Tata Nano को कंपनी ने 10 जनवरी 2008 को लॉन्च किया था. ये उस समय के BS-3 मानक के हिसाब से डिजाइन की गई थी. इसमें 624cc का 2-सिलिंडर वाला पेट्रोल इंजन और 4-स्पीड गियर बॉक्स था. कंपनी ने इसे 3 वैरिएंट में लॉन्च किया था. कंपनी ने इसकी शुरुआती कीमत 1 लाख रुपये रखी थी.
टाटा नैनो की आखिरी यूनिट 2019 में प्रोड्यूस हुई. ये रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट थी, लेकिन ये अपने मुकाम को छू नहीं सकी. इसके बनने और बिगड़ने की यात्रा में कई पड़ाव आए, जिसमें बंगाल के सिंगूर में लगने वाली फैक्टरी के गुजरात के साणंद में शिफ्ट होने, नैनो में आग लगने की घटनाओं के बढ़ने की कहानी शामिल है. इतना ही नहीं, कई विशेषज्ञों का मानना है कि Tata Sons से साइरस मिस्त्री की विदाई में भी Nano का हाथ था.
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