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बंटवारे के समय जब पाकिस्तान चले गए पठान, बंद हो गया था Tata का ये प्लांट!

1947 में देश के बंटवारे से जुड़ी कई कहानियां आपने पढ़ी होंगी. पर क्या आप जानते हैं कि उस दौर की एक कहानी Tata Group से भी संबंधित है. बंटवारे का असर कंपनी की एक फैक्टरी को काफी दिन तक झेलना पड़ा, क्योंकि उसमें काम करने वाले पठान लोग रातोंरात पाकिस्तान चले गए थे.

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जेआरडी टाटा  और रतन टाटा (Photo : tata.com)
जेआरडी टाटा और रतन टाटा (Photo : tata.com)

बात है 1945 की, जब Tata Group ने Tata Locomotive and Engineering Company शुरू की थी. ये एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी थी जो रेलवे के इंजन और बॉयलर्स बनाया करती थी. बाद में इस कंपनी ने कई और काम किए, लेकिन अभी उस बात का जिक्र नहीं करते हैं.

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बंटवारे ने रोका कंपनी का काम

तो हुआ यूं कि 1945 में कंपनी के काम शुरू करने के कुछ ही समय बाद सेकेंड वर्ल्ड वॉर खत्म हो गया. इससे लोकोमोटिव और बॉयलर्स से ज्यादा हेवी मशीनरी की डिमांड बढ़ने लगी. Telco ने तब हेवी इंजीनियरिंग प्रोडक्ट्स बनाना शुरू कर दिया. इसमें वो रोड रोलर्स, ट्रैक्टर्स, डीजल इंजन इतयादि बनाने लगी.

इधर एक तरफ कंपनी के लिए यूरोप विशेषकर जर्मनी में डिमांड बढ़ रही थी. दूसरी तरफ भारत में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था. Telco में भारी-भरकम मशीनरी को बनाने का काम होता था, इसलिए इसकी पूरी की पूरी क्रू बलिष्ठ और अच्छी कद-काठी वाले ‘पठान’ लोगों से तैयार की गई थी.

साल 1947  में भारत को आजादी मिली, पूरे देश में हिंदू-मुसलमान के बीच दंगे फैलने शुरू हो गए. इसका असर Telco के प्रोडक्शन पर भी पड़ा. रातोंरात कंपनी में काम करने वाले पठान लोग जमशेदपुर से पाकिस्तान चले गए. कई दिनों तक Telco का काम ठप पड़ा रहा.

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6 महीने बाद तैयार हुआ नया क्रू

Tata बनाती थी ट्रेन के इंजन (Photo : tata.com)
Tata बनाती थी ट्रेन के इंजन (Photo : tata.com)

Telco की कमान सुमंत मूलगांवकर के हाथ में हुआ करती थी. उन्हें JRD Tata सीमेंट कंपनी ACC के चेयरमैन सर होमी मोडी से एक तरह से मांग कर टेल्को में लाए थे. पठानों के जाने के बाद मूलगांवकर के सामने सबसे बड़ी चुनौती नई क्रू टीम को तैयार करना था.

उस दौर में कंपनी का काम कैसे चले, इसका उपाय Sir Jehangir Ghandy ने निकाला. उन्होंने मूलगांवकर से कहा कि यदि कंपनी बॉयलर्स बनाकर प्रॉफिट नहीं कमा सकती है, तो उसे विजिटर्स को यहां पर बुलाकर शोपीस दिखाना चाहिए. ऐसा ही हुआ और 6 महीने के भीतर नई क्रू टीम तैयार कर ली गई.

भारतीय रेल के पास Tata के 10,000 इंजन

Telco के प्लांट से अगले एक दशक में कई लोकोमोटिव इंजन निकले. भारतीय रेलवे ने Tata Group से करीब 10,000 इंजन खरीदे. लेकिन Tata को जल्द ही एहसास हुआ कि उनकी एकमात्र ग्राहक भारत सरकार है. वहीं इंडियन रेलवे जब चाहे इंजन की कीमत को अपने हिसाब से तय कर सकता है. ऐसे में Telco के नए भविष्य के बारे में सोचा जाने लगा.?

Telco बनी Tata Motors

Tata Group ने टेल्को में लोकोमोटिव के साथ ट्रक बनाने भी शुरू कर दिए थे. तब ये ट्रक Daimler-Benz के साथ मिलकर तैयार किए जाते थे. बाद में यही Telco टाटा मोटर्स कंपनी बन गई. इसके हेवी इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को अलग से एक कंपनी बना दिया गया, जिसे आज हम Tata Hitachi नाम से जानते हैं. 

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