
सड़क पर दौड़ते ट्रक, पिक-अप इत्यादि के पीछे आपने एक वाक्यांश 'यूज डिपर एट नाइट' (Use Dipper at Night) लिखा जरूर देखा होगा. आपके सामने चल रहे वाहन के पीछे लिखे इस बात का आप क्या मतलब समझते हैं? बहुत मुमकिन है कि आप समझें कि, रात के समय ड्राइविंग करते वक्त डीपर का इस्तेमाल करें. लेकिन इसका अर्थ यहीं तक सीमित नहीं है. जी हां, इस छोटी सी बात का बहुत बड़ा कनेक्शन गर्भ निरोधक यानी कॉन्डोम और देश की प्रमुख वाहन निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स से भी है. आइये जाने इसके पीछे की रोचक कहानी-
हालांकि वाहनों के पीछे 'यूज डिपर एट नाइट' लिखने का चलन बहुत पुराना है. ऐसा इसलिए लिखा जाता है ताकि विपरीत दिशा से आ रहे वाहन चालकों रात के समय तेज लाइट से कोई परेशानी न हो और किसी भी दुर्घटना की स्थिति से बचा जा सके. तेज रोशनी जब आंखों पर पड़ती है तो अपोजिट डायरेक्शन से आने वाले वाहन चालक को कुछ दिखाई नहीं देता है. लेकिन साल 2016 में टाटा मोटर्स ने इस वाक्यांश को लेकर एक कैंपेन शुरू किया और इसका इस्तेमाल हेडलाइट के प्रयोग के अलावा कॉन्डोम के प्रचार प्रसार के लिए भी किया जाने लगा.
क्या है पर्दे के पीछे की कहानी:
इस वाक्यांश के पीछे की कहानी साल 2005 से शुरू होती है. जब ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (TCI) द्वारा किए गए अध्ययनों में पाया गया कि, भारत में सेक्स वर्करों से मिलने वाले तकरीबन 20 लाख ट्रक ड्राइवरों में से केवल 11 प्रतिशत ही सेफ्टी यानी कॉन्डोम (Condom) का इस्तेमाल करते हैं. इस स्टडी में यह भी पाया गया कि ड्राइवरों में एड्स के बारे में जागरूकता बहुत कम थी, उनमें से लगभग 16 प्रतिशत किसी न किसी यौन रोग से पीड़ित थे.
उस वक्त HIV रोगियों की बढ़ती संख्या को नियंत्रित करने के लिए नेशनल एड्स (AIDS) कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (NACO) ने निर्णय लिया कि यह समस्या तब तक हल नहीं होगी, जब तक कि ट्रक ड्राइवरों और सेक्स वर्करों को असुरक्षित यौन संबंधों के बारे में जागरूक नहीं किया जाता है. ऑर्गेनाइजेशन ने यहा माना कि ट्रक चालकों और सेक्स वर्करों दोनों को कॉन्डोम का इस्तेमाल करना स्वीकार करना होगा, तभी एडस को नियंत्रित किया जा सकता है.
तेजी से फैल रहा था AIDS:
ये वो समय था जब देश में एक्वायर्ड इम्यून डेफ़िशिएंसी सिंड्रोम (AIDS) तेजी से पांव फैला रहा था. इस रोग के फैलने का प्रमुख कारण ह्यूमन इम्यूनोडेफ़िशिएंसी वायरस (HIV) था जो असुरक्षित यौन संबंध, सुई या सिरिंज को शेयर करने, संक्रमित व्यक्ति के रक्त के संपर्क में आने जैसे कई कारणों के चलते फैल रहा था. लेकिन इनमें से एक प्रमुख कारण था असुरक्षित यौन संबंध जिसे काफी हद तक कॉन्डोम के इस्तेमाल से रोका जा सकता था.
शोधों में पाया गया कि, भारत में ट्रक चालक हजारों किलोमीटर तक का सफर करते हैं. ऐसे में उन्हें लंबे समय तक कभी-कभी महीनों तक अपने घर से दूर रहना पड़ता है. ऐसे में वो सेक्स वर्करों के संपर्क में आते थें जिससे उनके AIDS से संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती थी. बहुत संभव है कि आपको याद हो कि, इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए NACO मुफ्त में कॉन्डोम का वितरण भी करता था. उस वक्त इसे निरोध (Nirodh) नाम दिया गया था.
जब आया ब्रांड नेम का आइडिया:
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में NACO के तत्कालीन प्रमुख एस. वाई. कुरैशी ने बताया था कि, "उस वक्त नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन मुफ्त में निरोध वितरित कर रहा था. लेकिन हमने सोचा कि इन दो वर्गों (ट्रक चालक और सेक्स वकर्स) के लिए, हमें विशेष ब्रांड लाना चाहिए. नामों पर चर्चा करने के लिए एक बैठक के दौरान, मैंने सुझाव दिया कि ट्रक ड्राइवरों के लिए, डिपर (Dipper) नाम बहुत अच्छा हो सकता है. इसका कारण यह था कि हर कॉमर्शियल वाहनों के पीछे, आप 'यूज डिपर एट नाइट' वाक्यांश देख सकते हैं, जो मूल रूप से हल्की हेडलाइट्स का इस्तेमाल करने के लिए एक रिक्वेस्ट कोट है."
कुरैशी आगे बताते हैं कि, "हमने सोचा कि हमें 40 लाख ट्रकों पर मुफ़्त प्रचार का लाभ मिलेगा. क्योंकि इन ट्रकों पर पहले से ही ये वाक्यांश लिखे हुए थें. हमारा फोकस ट्रक चालकों को यौन रोग और कॉन्डोम के इस्तेमाल के प्रति जागरूक करना था... जैसे रात में लाइट डिपर का उपयोग सुरक्षित ड्राइविंग के लिए महत्वपूर्ण है, वैसे ही डिपर कॉन्डोम का उपयोग उन्हें और उनकी पत्नियों को इस ख़तरनाक बीमारी से सुरक्षित रखने के लिए महत्वपूर्ण है."
हॉर्न प्लीज़ और ओके टाटा:
डिपर कॉन्डोम का निर्माण हिंदुस्तान लेटेक्स लिमिटेड (HLL) लाइफकेयर द्वारा किया गया. पैकेजिंग के लिए, रेडिफ्यूजन ने उसी शैली का इस्तेमाल किया जिसका प्रयोग ट्रक चालक या मालिक अपने ट्रकों को कलरफुल तरीके से सजाने के लिए करते हैं. इस शैली को क्रिएटिव लैंग्वेज में 'ट्रक आर्ट' कहा जाता है. इस कॉन्डोम के पैकेट को भी उसी तरह से कलरफुल बनाया गया जो काफी हद तक भारतीय ट्रकों और हाइवे कल्चर से प्रेरित था.
कुरैशी बताते हैं कि, "नए कॉन्डोम के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए कुछ और कैच-लाइन भी सुझाए गए. जैसे "डे ऑर नाइट, डिपर इज़ राइट" यानी दिन हो रात, डिपर हो साथ. डिपर के अलावा एजेंसी ने "हॉर्न प्लीज" और "ओके टाटा" नाम भी सुझाए थें. यही कारण है कि ये दोनों नाम भी भारतीय सड़कों पर दिखने वाले लगभग हर ट्रक के पीछे पेंट किए गए थें."
ये एक ऐसा कैंपेन था जिसके प्रचार प्रसार के लिए किसी भी बड़े रकम का खर्च नहीं किया गया. उस वक्त न मीडिया का इतना जोर था और न ही इंटरनेट की पहुंच इतनी ज्यादा थी. वर्षों से चले आ रहे एक वाक्यांश 'यूज डिपर एट नाइट' को ही हथियार बनाकर अपने समय के एक असाध्य कहे जाने वाले रोग को साधने की तैयारी हुई थी.