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किसने बनाया देश का पहला E-Rickshaw? वेदांता के Anil Agarwal ने शेयर की कहानी

हमारे देश में टैलेंट की कमी नहीं है, ये कहना है वेदांता समूह के प्रमुख अनिल अग्रवाल का उस शख्स के बारे में जिसने देश का पहला ई-रिक्शा बनाया. क्या आप जानते हैं उनके बारे में...?

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अनिल राजवंशी और अनिल अग्रवाल
अनिल राजवंशी और अनिल अग्रवाल
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 1995 में शुरू हुआ ई-रिक्शा पर काम
  • आईआईटी कानपुर से पढ़े हैं राजवंशी
  • अमेरिका के फ्लोरिडा में भी की पढ़ाई

अभी हमारे लिए कितना आसान हो गया है कि ई-रिक्शा में बैठे और झट से कहीं भी पहुंच गए. न शोर, न प्रदूषण. खुली हवा अलग. ई-रिक्शा ने सिर्फ सवारियों की जिंदगी ही नहीं बदली, बल्कि रिक्शा चलाने वालों की जिंदगी में भी बड़ा गुणात्मक सुधार लाया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में पहला ई-रिक्शा किसने बनाया, किसके दिमाग में हाथ या पैर से खीचें जाने वाले रिक्शे में इलेक्ट्रिक मोटर, बैटरी लगाने का ख्याल आया, तो उस शख्स की कहानी शेयर की है Vedanta Group के प्रमुख Anil Agarwal ने. 

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अनिल अग्रवाल ने डॉ. अनिल राजवंशी की कहानी शेयर करते हुए लिखा, ‘‘हमारे देश में टैलेंट की कमी नहीं है, इनोवेटिव सोच और कड़ी मेहनत से सपनों को सच किया जा सकता है. अगर आप दिल से काम करें, तो नई ऊंचाइयां दूर नहीं’

1995 में शुरू हुआ ई-रिक्शा पर काम

डॉक्टर अनिल राजवंशी ने 1995 में इलेक्ट्रिक रिक्शा बनाने पर काम करना शुरू किया. उस समय ये विचार सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि दुनिया में भी नया था. उन्होंने अपने ई-रिक्शा को बनाने की शुरुआत महाराष्ट्र के फाल्टन में की. और इसका पहला प्रोटोटाइप 2000 में आया. हालांकि राजवंशी के इस विचार से प्रेरित होकर कई लोगों ने इसमें सुधार किया, तो कुछ ने कॉपी कर लिया. इस बारे में राजवंशी का कहना है कि हम एक छोटी इकाई हैं, ज्यादा पैसे हैं नहीं हमारे पास, इसलिए हमने इस लड़ाई को लड़ा नहीं.

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लखनऊ में पले-बढ़े अनिल राजवंशी आईआईटी कानपुर के छात्र रह चुके हैं और आगे की पढ़ाई उन्होंने अमेरिका के फ्लोरिडा से की है. लेकिन देश के लिए कुछ करने का जुनून उन्हें 1981 में भारत वापस ले आया. अभी वो महाराष्ट्र के फाल्टन में ही निंबकर एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (NARI) में कार्यरत हैं. जमनालाल बजाज अवार्ड पा चुके राजवंशी के नाम 7 पेटेंट हैं और हाल में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है.

पिता से मिली डांट, पत्नी ने दिया साथ
अनिल राजवंशी ने जब भारत लौटने का निर्णय किया जो उनके पिता ने इसे ‘बेवकूफी’ करार दिया. लेकिन उनकी पत्नी नंदिनी उनकी सबसे बड़ी ताकत बनी और राजवंशी भी अपनी धुन के पक्के थे. राजवंशी, महात्मा गांधी से काफी प्रभावित हैं. उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के समय महात्मा गांधी के साथ जेल गए थे. राजवंशी का कहना है कि गांधी की आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ ने उनके जीवन पर काफी असर डाला है.

भारत लौटने पर उन्होंने देश के कई इलाकों का दौरा किया, लेकिन उनके पांव टिके महाराष्ट्र के सतारा जिले के फाल्टन में, जहां उन्होंने NARI में काम करना शुरू किया. यहीं रहकर उन्होंने ई-रिक्शा के अलावा एल्कोहल से चलने वाले स्टोव और बायोमास गैसफायर जैसे आविष्कार भी किए. 

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