पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से परेशान होकर अक्सर आप भी यही सोचते होंगे कि काश पानी से गाड़ी चलती. लेकिन अब आपकी यह इच्छा जल्द पूरी होने की उम्मीद है. भारतीय मूल के एक शोधकर्ता सहित शोधकर्ताओं की टीम पानी और सूर्य की रोशनी से ईंधन बनाने के करीब पहुंच गए हैं. इसके लिए उन्होंने प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कदम को जोड़ा है.
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी रिसर्च स्कूल ऑफ बायोलॉजी के एआरसी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर ट्रांस्लेशनल फोटोसिन्थेसिस के डॉक्टर कस्तूरी हिंगोरानी ने बताया कि धरती पर पानी प्रचुर मात्रा में है और सूर्य से रोशनी भी अबाध रूप से हमें मिलती रहती है. पानी और धूप के इस्तेमाल से सस्ते व सुरक्षित तरीके से हाइड्रोजन बनाने की बात ही हम सबको रोमांचित कर जाती है.
पेट्रोलियम उत्पादों के विकल्प के रूप में हाइड्रोजन बेहद सुरक्षित और कार्बन रहित ईंधन होता है. यही नहीं इसे पहले से ही स्पेसक्राफ्ट लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल में भी लाया जा रहा है. हालांकि अब तक इस सूर्य की रोशनी में पेड़ों द्वारा पानी से हाइड्रोजन निकालने की प्रक्रिया पर बहुत काम हुआ था. इस टीम ने एक खास तरह का प्रोटीन बनाया जो रोशनी के संपर्क में आने पर एक खास इलेक्ट्रिकल हर्टबीट दिखाता है जो प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में जरूरी होता है.
हिंगोरानी का कहना है कि यह तकनीक इतनी आसान और सस्ती होगी कि विकासशील देश भी इसे अपना पाएंगे. उन्होंने कहा, सिस्टम अपने आप प्राकृतिक तौर पर आ रही प्रोटीन का इस्तेमाल कर लेगा और इसे स्टोर करने के लिए महंगी-महंगी बैटरी या स्टोरेज की जरूरत भी नहीं होगी. इस शोध में हिंगोरानी से सहयोगी प्रोफेसर रॉन पेस का कहना है कि उनकी इस रिसर्च ने हाइड्रोजन के रूप में सस्ते और साफ ईंधन के नए स्रोत का नया रास्ता खुल जाएगा.
पेस आगे कहते हैं कि उनकी इस रिसर्च से बेहद कुशल र्इंधन बनाने और वातावरण में कार्बन कम करने जैसी संभावनाओं के नए द्वार खुल गए हैं. उन्होंने कहा, बड़े पैमाने पर कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से हाइड्रोजन बनाने से इकोनॉमी पर भी गहरा असर पड़ेगा. पेस बोले, यह ईंधन बनाने के लिए हमें जो कच्चा माल चाहिए वो आसानी से उपलब्ध है और अच्छी बात ये है कि इस्तेमाल के बाद यह सब वापस पानी में ही चला जाता है.