बिहार विधानसभा के उपचुनाव में चारों सीटों पर वोटिंग हो गई है और जीत के दावे शुरू हो गए हैं. जेडीयू नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन ने 'बिहार तक' से खास बातचीत की है. इस दौरान उन्होंने जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर पर हमला बोला और कहा, उपचुनाव में प्रशांत किशोर का मुकाबला सिर्फ नोटा से है.
बताते चलें कि नोटा (None of the Above) का हिंदी में अर्थ 'इनमें से कोई नहीं' है. देश में 2013 में पहली बार नोटा का इस्तेमाल किया गया था. इससे वोटर्स को EVM में यह चुनने का ऑप्शन मिलता है कि वे किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं और वो किसी को वोट नहीं देंगे. नोटा को नेगेटिव वोट भी कहा जाता है.
'नतीजे तय करेंगे 2025 का मिजाज'
पूर्व बाहुबली नेता आनंद मोहन ने कहा, उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे कि 2025 का मिजाज कैसा होगा? जिन चार सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, उनमें एक मात्र सीट (इमामगंज) एनडीए के पास थी. बाकी तीन सीटें महागठबंधन के हिस्से की थीं. एनडीए बड़ी जीत हासिल करने जा रही है. 2025 के बारे में लोगों के बीच अच्छा संदेश जाएगा.
'त्रिकोणीय लड़ाई बनाने की कोशिश में थे प्रशांत'
उपचुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज के उम्मीदवार खड़े होने पर आनंद मोहन ने तंज कसा और कहा, उनकी लड़ाई नोटा से है. वो नोटा से कंप्टीशन में हैं. उनकी एनडीए या महागठबंधन से लड़ाई नहीं है. वो कुछ मजबूत उम्मीदवारों की तलाश में थे, ताकि उपचुनाव को त्रिकोणीय बनाया जा सके. हालांकि, मैं उन्हें सलाह दूंगा कि जनसरोकारों से जुड़िए. अगर बिहार की राजनीतिक नब्ज को पकड़ना है और बिहार की राजनीति में आगे कुछ करना है तो जनसरोकारों से जुड़ना जरूरी होगा.
'जनसरोकारों से जुड़ें प्रशांत किशोर'
उन्होंने कहा, प्रतिपक्ष का पहला काम यही होता है कि जनसरोकार से जुड़े मसलों से जुड़ाव रखा जाए. पंचायत समिति, मुखिया या जिला परिषद चुनाव जीतने या हारने वालों से संपर्क करना चाहिए. कुछ नए लोग जुड़ेंगे और जिला सम्मेलन बुलाना चाहिए. सैकड़ों की संख्या में पोर्टेबल सुलभ शौचालय बनवा देना चाहिए. हजारों की संख्या में दोपहिया और सैकड़ों की संख्या में चारपहिया वाहन दौड़ाना चाहिए.
'भाड़े पर मजदूर लेकर पदयात्रा में चले'
आनंद मोहन ने आगे कहा, अभी वो एक जिले को टारगेट करके जाते हैं. उसी में सारा संसाधन झोंक देते हैं. लोगों को भाड़े पर पकड़-पकड़कर लाया जाता है. यह एक नया ट्रेंड चला है. ये कटिहार के सिवनी से 100 मजदूरों को भाड़े पर लाए और पदयात्रा में लेकर निकले. वहीं से ये यात्रा की शुरुआत हुई. ये सभी लोग दैनिक मजदूर थे. अभी भी ये दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को लेकर चल रहे हैं. ये सोशलिस्ट्स का प्रदेश है. यहां ये सब नहीं चलेगा.
'जनसंवाद कायम करना जरूरी'
आनंद मोहन का कहना था कि अगर पैसों की दम पर राजनीति चल रही होती तो बड़े उद्योगपति खुद या अपने ढंग से चला रहे होते. राजनीति अगर आंकड़ों का खेल होता तो सीए और कम्प्यूटर के जानकार ही एमएलए बन जाते. जनसरोकार से जुड़ना और जनसरोकार के मुद्दों पर लड़ना और जनसंवाद कायम करना ये भी जरूरी पहलू है.
'गांधी जी के आचरण पर चलकर दिखाएं'
उन्होंने आगे कहा, गांधी जी ने कहा है कि राजनीति के दो बाजू हैं. एक- रचना और दूसरा- संघर्ष. लोहिया जी ने इसी को उलटकर कहा, जेल, वोट और फावड़ा. जेल संघर्ष का प्रतीक है. फावड़ा रचना का प्रतीक और वोट लोकतांत्रिक सिस्टम का प्रतीक है. ये तीनों का होना जरूरी है. सिर्फ एक पहलू के दम पर राजनीति बांझ जैसी होगी. अब लोग गांधी जी की तस्वीर लेकर निकले हैं तो गांधी जी की बातों को अपने आचरण में भी लाएं.
'तीसरे विकल्प की गुंजाइश नहीं'
आनंद मोहन का कहना था कि इस प्रदेश में तीसरा विकल्प देने के लिए उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान, पप्पू यादव, ओवैसी, नागमणि, अरुण कुमार भी मैदान में आए. अभी देश और प्रदेश का मिजाज एनडीए और महागठबंधन की तरफ है. तीसरा प्रयोग 2025 तक संभव नहीं है. इनकी लड़ाई कहीं से भी एनडीए और महागठबंधन से नहीं है.
'आनंद मोहन की पत्नी जेडीयू सांसद'
आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद शिवहर सीट से जेडीयू की सांसद हैं. आनंद के बेटे चेतन आनंद आरजेडी के टिकट पर विधायक चुने गए थे. आनंद मोहन, चर्चित आईएएस जी कृष्णैया हत्याकांड में सजा काट चुके हैं.