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बिहार में NDA के लिए ये छोटे सहयोगी दल अहम क्यों ? समझें चिराग-जीतनराम मांझी-उपेंद्र कुशवाहा की ताकत

एनडीए में शामिल क्षेत्रीय पार्टियां इस गठबंधन की ताकत को बढ़ाती हैं, जिसमें चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास), जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मंच शामिल हैं. चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा तीनों ही नेता अपनी-अपनी जातीय और क्षेत्रीय पकड़ रखते हैं.

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एनडीए में शामिल क्षेत्रीय पार्टियां इस गठबंधन की ताकत को बढ़ाती हैं
एनडीए में शामिल क्षेत्रीय पार्टियां इस गठबंधन की ताकत को बढ़ाती हैं

बिहार में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. सभी राजनीतिक दल तैयारियों में जुट गए हैं. जो बिहार की राजनीति को जानते हैं उन्हें पता होगा कि इस राज्य में जातीय और क्षेत्रीय समीकरण कितनी बड़ी भूमिका निभाता है. सत्तारूढ़ एनडीए यानी नीतीश कुमार और बीजेपी का गठबंधन 2025 विधानसभा चुनावों के लिए अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटा है. 

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एनडीए में शामिल क्षेत्रीय पार्टियां इस गठबंधन की ताकत को बढ़ाती हैं, जिसमें चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास), जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मंच शामिल हैं. चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा तीनों ही नेता अपनी-अपनी जातीय और क्षेत्रीय पकड़ रखते हैं. आइए, इन तीनों नेताओं और उनकी पार्टियों की ताकत को विस्तार से समझते हैं:

चिराग पासवान और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (LJP-R)

चिराग पासवान, पासवान (दलित) समुदाय का सबसे बड़ा चेहरा हैं. बिहार में पासवान जाति 6-7% आबादी की मजबूत उपस्थिति रखती है. उनके पिता रामविलास पासवान दलित राजनीति के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे. बिहार के कई जिलों में पासवान मतदाताओं का प्रभाव है, विशेष रूप से सहरसा, समस्तीपुर, जमुई, खगड़िया, हाजीपुर, वैशाली और मधुबनी में. हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ने के कारण LJP का प्रदर्शन बहुत खराब रहा था. रामविलास पासवान के निधन के बाद पारिवारिक कलह ने पार्टी की स्थिति को कमजोर किया है.

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जीतनराम मांझी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM)

मांझी बिहार में मुसहर (महादलित) समुदाय का सबसे बड़ा चेहरा हैं. मुसहर समुदाय बिहार की कुल जनसंख्या का 2-3% हिस्सा है, लेकिन सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा होने के कारण उनकी राजनीतिक अहमियत ज्यादा है. मांझी का प्रभाव गया, औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद और रोहतास जिलों में है. मांझी की छवि दलितों के बड़े नेता के रूप में है. हालांकि उनकी पार्टी HAM का जनाधार बेहद सीमित है और मुसहर वोटों पर ही निर्भर करता है.

उपेंद्र कुशवाहा और राष्ट्रीय लोक मंच (RLM)

उपेंद्र कुशवाहा कुशवाहा (कोइरी) जाति के बड़े नेता हैं, जो बिहार की 8-9% आबादी है. कुशवाहा समुदाय खासकर पटना, नालंदा, भोजपुर, औरंगाबाद, रोहतास और बक्सर जिलों में प्रभावी है. भाजपा और जेडीयू के बीच उनकी स्थिति 'किंगमेकर' जैसी होती है, क्योंकि कुशवाहा वोट कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

बिहार के दौरे पर जाएंगे गृहमंत्री

बता दें कि जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने पिछले मंगलवार को संसद भवन में गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. बैठक के दौरान बिहार में एनडीए की चुनावी रणनीति पर चर्चा हुई. सूत्रों के मुताबिक अमित शाह ने बैठक में कहा कि इसी महीने मार्च में वो दो दिन (27 और 28 मार्च) के दौरे पर बिहार जाएंगे. उसी दौरान वह बीजेपी नेताओं के साथ-साथ एनडीए के नेताओं से भी चुनावी तैयारियों पर चर्चा करेंगे.

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