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JDU में गुटबाजी और फूट की अटकलों के बीच एक अहम जानकारी सामने आई है. ललन सिंह के इस्तीफे को लेकर लगाए जा रहे कयासों पर आज विराम लग सकता है. नीतीश कुमार पार्टी अध्यक्ष बन सकते हैं और ललन सिंह खुद अध्यक्ष पद को छोड़ सकते है और ललन सिंह को दूसरा दायित्व मिल सकता है. ये अहम फैसला जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हो सकता है. नीतीश और ललन सिंह के बीच किसी तरह का कोई मतभेद नहीं है. सूत्रों की मानें तो दिल्ली में गुरुवार को हुई राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में भी इसी बात पर चर्चा हुई है कि अध्यक्ष पद को किस तरह से ट्रांसफर किया जाएगा. बताया जा रहा है कि इस पूरी घटना की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है. लेकिन असली फैसला ललन के इस्तीफे को लेकर होना है. जब वह इस्तीफा दे देंगे, तो नीतीश पार्टी की कमान एक बार फिर संभाल लेंगे.
वहीं, नीतीश कुमार के बीजेपी में जाने की अटकलों पर भी विराम लग गया है. सूत्रों के मुताबिक नीतीश की BJP से कोई बातचीत नहीं हुई है. नीतीश महागठबंधन नहीं छोड़ेंगे और वह इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर अगला इलेक्शन लड़ेंगे. सूत्रों ने बताया कि जेडीयू बीजेपी नेतृत्व के संपर्क में नहीं है. करीब 60 घंटे पटना से लेकर दिल्ली तक ललन सिंह के इस्तीफे, जेडीयू में बगावत का डर और नीतीश कुमार के एक बार फिर पाला बदलने की चर्चाओं के नाम रहे. इधर, दिल्ली में मौजूद ललन सिंह अपने इस्तीफे की चर्चाओं पर भी करीब 48 घंटे तक खामोश रहे.
28 दिसंबर यानी गुरुवार को सुबह करीब 10 बजे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना से पार्टी बैठक में हिस्सा लेने दिल्ली के लिए निकले तो उनसे पार्टी में फूट और एनडीए में जाने को लेकर सवाल पूछा गया. इस पर नीतीश ने पार्टी में फूट को लेकर तो कंफ्यूजन दूर कर दिया. लेकिन NDA के सवाल पक कोई जवाब नहीं दिया था. नीतीश कुमार ने कहा कि पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक है. महागठबंधन में सबकुछ ठीक है, यही बात नीतीश ने पटना से दिल्ली पहुंचने के बाद दोहराई.
JDU में विवाद को लेकर क्या बोले ललन सिंह?
नीतीश कुमार दिल्ली पहुंचे भी नहीं थे, उससे पहले ललन सिंह खुद मीडिया के सामने आए. अपने इस्तीफे और पार्टी के अंदर बगावत की अटकलबाजी पर विराम लगाया था. उन्होंने कहा था कि जेडीयू एक है और एक रहेगा. बीजेपी जितनी ताकत लगा ले,हम एक हैं. दरअसल, ललन सिंह की खामोशी की वजह से इस्तीफे की चर्चाओं ने तूल पकड़ा था, यही वजह है कि नीतीश कुमार जब दिल्ली के लिए रवान हुए तो सुनिश्चित किया कि पार्टी को लेकर चल रही अटकलबाजी पर विराम लगाना होगा. नीतीश कुमार के कहने पर ही ललन सिंह ने अपने इस्तीफे और पार्टी मे फूट पर मीडिया के सामने आकर चुप्पी तोड़ी.
नीतीश नहीं चाहते पार्टी की इमेज को चोट पहुंचे
नीतीश नहीं चाहते कि 2024 से पहले पार्टी की इमेज पर चोट पहुंचे. ललन सिंह पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी पर रहेंगे या नहीं, ये संगठन का अंदरुनी मामला है. लेकिन ललन सिंह के बहाने विरोधियों को जेडीयू के अंदरूनी मामलों में दखल देने का मौका नहीं मिलना चाहिए. जैसे बीते कई दिनों से बिहार के सियासी गलियारे में नजर आ रहा था.
क्या JDU में सबकुछ ठीक नहीं?
जेडीयू के अंदर सबकुछ ठीक नहीं है, ये बात नीतीश कुमार को भी पता है, लेकिन नीतीश अपना हर फैसला धैर्य के साथ लेते हैं. नीतीश को पता है कि विधायकों का संख्याबल कम है और उन्हें अपने सियासी अनुभव से गठबंधन की गाड़ी चलानी है. कई बार नीतीश के पाला बदलने की बातें भी सामने आई हैं. दरअसल, नीतीश कुमार का पूरा फोकस इंडिया गठबंधन और बिहार में ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों को अपने हिस्से में खींचना है. राजनीति की नब्ज पकड़ना नीतीश बखूबी जाने हैं, तभी तो लंबे अरसे से बिहार की राजनीति में उनका सिक्का सबसे खरा है. ये बात आरजेडी को भी पता है कि नीतीश कुमार के बिना चुनावी राह कितनी मुश्किल होगी. ये बात बीजेपी को भी पता है नीतीश के जाने से 2024 में नुकसान उठाना पड़ सकता है. भले ही बीजेपी की तरफ से इसे नीतीश और लालू का खेल बताया जा रहा हो, लेकिन उसे भी पता है कि बिहार में नीतीश कुमार का मतलब क्या है.
गिरिराज सिंह ने नीतीश को लेकर किया था बड़ा दावा
जेडीयू में मंथन और चिंतन का दौर जारी है. वही केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार की नीतीश सरकार को लेकर एक बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा था कि नीतीश कुमार की सरकार कभी भी गिर सकती है. बिहार में वक्त से पहले विधानसभा चुनाव संभव हैं. साथ ही कहा था कि वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे. गिरिराज सिंह दावा कर रहे हैं कि बिहार में महागठबंधन की सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं होगा. वहीं दिल्ली आए नीतीश कुमार 2024 में मोदी सरकार की वापसी के रास्ते को ब्लॉक करने वाली रणनीति तैयार करने आए हैं.
नीतीश ने खुद संभाले दो मोर्चे
नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते रहे हैं, लेकिन 2024 में उनका बड़ा और कड़ा इम्तिहान है. इम्तिहान से पहले नीतीश कुमार ने खुद मोर्चा संभाल लिया है और फुल एक्शन में नजर आ रहे हैं. नीतीश कुमार ने दो मोर्चे पर किलेबंदी शुरू कर दी है. पहला मोर्चा है विधायकों की बगावत की सुगबुगाहट को शांत कर पार्टी को एकजुट बनाए रखना और दूसरा मोर्चा है विपक्षी गठबंधन के साथ तालमेल बैठाकर एनडीए को बिहार में हर कीमत पर रोकना. अपने मिशन के लिए नीतीश पूरी तरह कमिटेड हैं, तभी तो 19 दिंसबर की दिल्ली में हुई इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद नाराजगी की बात हो या फिर पार्टी में फूट की, दोनों मोर्चे पर नीतीश ने ड्रैमेज कंट्रोल करने में देर नहीं लगाई. दरअसल नीतीश कुमार को 2 चुनौती से एक वक्त पर निपटना है. वही चुनौती जिसका समाधान राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में निकलना है. पहली चुनौती है विपक्षी गठबंधन में अपनी बात मनवाना और दूसरी चुनौती है अपनी पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के साथ-साथ-एकजुट रखना.
ललन सिंह को लेकर ये चर्चा भी चल रही
बिहार की राजनीतिक के गलियारों में चर्चा तो ये भी है कि जेडीयू के वर्तमान अध्यक्ष ललन सिंह आरजेडी के करीब हो गए हैं. चर्चे तो यहां तक हैं कि जेडीयू के 10 -12 विधायकों को तोड़कर बिहार में तेजस्वी को सरकार बनाने का अवसर दिया जाए, लेकिन वक्त रहते ये बात पता चल गई. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक दिल्ली में बुलाई है. हालांकि जेडीयू का कहना यही है कि पार्टी में ऑल इज वेल. चर्चाए हैं, चर्चाओं का क्या है.वहीं, ललन सिंह भी खुद को नीतीश का वफादार सिपाही बताते आए हैं. तभी तो जब इंडिया गठबंधन के चेहरे के तौर पर खड़गे के नाम पर आए प्रस्ताव पर सवाल पूछा गया तो वह बिफर पड़े थे.