बिहार की सियासत में जन सुराज के डेब्यू के साथ ही प्रशांत किशोर का नाम भी चर्चा में है. संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) फंडेड स्कीम में नौकरी से लेकर चुनाव रणनीतिकार तक का सफर तय करने वाले पीके जन सुराज के सूत्रधार हैं. पीके, नीतीश कुमार की पार्टी के साथ छोटी ही सही, सियासी इनिंग भी खेल चुके हैं. आइए जानते हैं यूएन की नौकरी से राजनीतिक दल बनाने तक, पीके का सफर कैसा रहा है.
कौन हैं प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर का जन्म बिहार के रोहतास जिले के कोनार गांव में हुआ था. 20 मार्च 1977 को जन्मे पीके के पिता श्रीकांत पांडेय सरकारी डॉक्टर थे. पीके के जन्म के बाद परिवार बक्सर शिफ्ट हो गया और पीके की स्कूलिंग यहीं हुई. भगवान राम की शिक्षा नगरी बक्सर से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद पीके इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए हैदराबाद चले गए. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद चिकित्सक परिवार से नाता रखने वाले पीके यूएन के एक हेल्थ प्रोग्राम से जुड़ गए. उनकी ननिहाल उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद में है.
आठ साल की यूएन की नौकरी
प्रशांत किशोर ने करीब आठ साल यूएन की नौकरी की. उनकी पहली पोस्टिंग स्वास्थ्य को लेकर एक यूएन फंडेड स्कीम के लिए संयुक्त आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुई. आंध्र के बाद उनको पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के लिए बिहार में तैनाती दी गई. तब बिहार में राबड़ी देवी की अगुवाई वाली आरजेडी की सरकार थी. अपनी प्रोफेशनल एजुकेशन भूमि आंध्र प्रदेश और जन्मभूमि बिहार के बाद पीके अमेरिका चले गए जहां उन्हें संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में तैनात किया गया लेकिन यहां उनका मन नहीं लगा. वह डिवीजन हेड की पोजिशन पर चाड भेज दिए गए जहां उन्होंने करीब चार साल तक काम किया.
चुनाव रणनीतिकार के रूप में सफर
बतौर स्वास्थ्य विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र संघ की करीब आठ साल लंबी नौकरी के बाद पीके ने साल 2011 में चुनाव रणनीतिकार के रूप में नए सफर का आगाज किया. पीके साल 2011 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम से जुड़े और सीएम मोदी के पीएम मोदी तक के सफर में उनकी रणनीति को भी क्रेडिट दिया गया. इसे ही भारतीय राजनीति में ब्रांडिंग के दौर की शुरुआत माना जाता है. पीके ने साल 2013 में इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी यानी I-PAC बनाई और साल 2014 में सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (कैग) की स्थापना की.
यह भी पढ़ें: क्या PK बिहार में केजरीवाल जैसा करिश्मा दिखा पाएंगे? 5 बड़े मुद्दों पर नीतीश-तेजस्वी से अलग राह अपनाई
2014 में बीजेपी की जीत से मिली पहचान
पीके को साल 2014 के आम चुनाव में बीजेपी की बड़ी जीत से पहचान मिली. पीके ने तब बीजेपी की ओर से पीएम फेस नरेंद्र मोदी के लिए चुनावी रणनीति तैयार की थी. नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद पीके का नाम भी खूब चर्चा में रहा था. प्रशांत किशोर ने बीजेपी के अलावा जेडीयू-आरजेडी गठबंधन से लेकर कांग्रेस तक, अलग-अलग राजनीतिक दलों के साथ भी काम किया. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में पीके ने आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस के महागठबंधन के लिए चुनाव रणनीतिकार की भूमिका निभाई और जीत तक पहुंचाया भी.
यह भी पढ़ें: आज PK की पार्टी की लॉन्चिंग... प्रमुख चेहरे, एजेंडा, चैलेंज क्या हैं? जानिए इन सवालों के जवाब
आठ दलों के साथ कर चुके रणनीतिकार का काम
पीके ने साल 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए काम किया और कांग्रेस जीत के साथ सरकार बनाने में सफल रही. 2019 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के लिए रणनीति बनाने का जिम्मा भी पीके को दिया गया और जगन मोहन रेड्डी सूबे की सत्ता के शीर्ष पर काबिज होने में सफल रहे. पीके को 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की जीत का भी शिल्पकार माना जाता है.
यह भी पढ़ें: बिहार में नीतीश का विकल्प कौन? जवाब बनने के लिए पीके और तेजस्वी यादव में खुली जंग
प्रशांत किशोर बतौर चुनाव रणनीतिकार 2020 के दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी, 2021 के तमिलनाडु चुनाव में एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके के लिए भी काम कर चुके हैं. कुल मिलाकर देखें तो पीके बीजेपी और जेडीयू के साथ ही कांग्रेस, आरजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी और आम आदमी पार्टी, पक्ष-विपक्ष के आठ दलों के साथ काम कर चुके हैं.
यह भी पढ़ें: पिता डॉक्टर, पत्नी भी डॉक्टर, UN में की नौकरी... चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की फैमिली को जानिए
जेडीयू के साथ किया था सियासी डेब्यू
पीके ने नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के साथ एक्टिव पॉलिटिक्स में डेब्यू किया था. पीके 16 सितंबर 2018 को जेडीयू में शामिल हुए थे और अक्टूबर महीने में पार्टी ने उनको राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया था. एक समय नीतीश के उत्तराधिकारी के रूप में भी उनके नाम की चर्चा थी लेकिन साल 2020 की शुरुआत में ही सीन बदल गया. 29 जनवरी 2020 को जेडीयू ने पीके को पार्टी से निष्कासित कर दिया था. पीके ने जेडीयू से निकाले जाने के बाद साल 2020 में ही लोगों की राजनीतिक जागृति के लिए जन सुराज अभियान शुरू किया था. पीके ने 2 अक्टूबर 2022 को गांधी आश्रम भितरिहवा से जन सुराज पदयात्रा की शुरुआत की थी.