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क्या महागठबंधन में सबकुछ ठीक? लालू की इफ्तार पार्टी से कांग्रेस ने क्यों बनाई दूरी, मुस्लिम वोटों की दावेदारी बढ़ा रही RJD से टसल!

क्या कांग्रेस बिहार में अपनी रणनीति बदल रही है? यह राजद पर दबाव बनाने की कोशिश है या फिर कांग्रेस खुद को अलग राह पर ले जाने की तैयारी कर रही है? पवन खेड़ा ने 23 मार्च को पटना में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं संग एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य कांग्रेस को राज्य में 1990 वाली स्थिति में लाना है.

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  राजद की इफ्तार पार्टी में बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने दूरी बनाई. (Photo: X/@RJD)
राजद की इफ्तार पार्टी में बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने दूरी बनाई. (Photo: X/@RJD)

रमजान के दौरान बिहार में राजनीतिक दलों द्वारा दावत-ए-इफ्तार आयोजित करने की परंपरा इस वर्ष भी अनवरत जारी रही. जदयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 23 मार्च को इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था, इसके एक दिन बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने इफ्तार पार्टी का आयोजित की. लालू की इफ्तार पार्टी में मुस्लिम संगठनों, वामपंथी दलों के नेताओं और कांग्रेस के कुछ विधायकों ने हिस्सा लिया. हालांकि, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) प्रमुख मुकेश सहनी ने इस आयोजन से दूरी बनाई.

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लालू प्रसाद यादव परंपरागत रूप से अपने सरकारी आवास 10 सर्कुलर रोड पर इफ्तार पार्टी का आयोजन करते रहे हैं. लेकिन इस साल यह आयोजन राजद के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद सदस्य अब्दुल बारी सिद्दीकी के 12 स्ट्रैंड रोड स्थित आवास पर हुआ. इसमें लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव, अब्दुल बारी सिद्दीकी, शिवानंद तिवारी और राजद के कई विधायक मौजूद थे. महागठबंधन में शामिल वामपंथी दलों के नेता भी मौजूद थे. कांग्रेस विधायक प्रतिमा दास तो मौजूद रहीं, लेकिन बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु समेत वरिष्ठ कांग्रेस नेता मौजूद नहीं रहे.

लालू की इफ्तार पार्टी से कांग्रेस की दूरी क्यों?

इसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पार्टी के बीच सबकुछ ठीक चल रहा है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में महागठबंधन की राजनीति लंबे समय से लालू प्रसाद यादव के इर्द-गिर्द घूमती रही है. हालांकि, कांग्रेस अब राज्य में अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जो शायद इस आयोजन से उसके नेतृत्व की अनुपस्थिति की वजह हो सकती है. बिहार कांग्रेस का प्रभार संभालने के बाद से कृष्णा अल्लावरु ने अभी तक लालू प्रसाद से मुलाकात नहीं की है. यहां तक कि कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार ने भी पदभार संभालने के बाद लालू से मिलने की जरूरत नहीं समझी, जो दोनों दलों के बीच संभावित टकराव का संकेत देता है.

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ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस अपनी रणनीति बदल रही है? क्या यह राजद पर दबाव बनाने की कोशिश है या फिर कांग्रेस खुद को अलग राह पर ले जाने की तैयारी कर रही है? कांग्रेस के मीडिया और पब्लिसिटी डिपार्टमेंट के चेयरमैन पवन खेड़ा ने 23 मार्च को पटना में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं संग एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य कांग्रेस को राज्य में 1990 वाली स्थिति में लाना है. पवन खेड़ा के इस बयान पर एक पत्रकार ने सवाल किया कि बिहार में कांग्रेस 1990 के आसपास अपने दम पर सरकार में थी, तो क्या आगामी चुनाव में वह अकेले चुनाव लड़ने पर विचार कर रही है? खेड़ा इस सवाल को टाल गए. इससे भी संकेत मिलते हैं कि बिहार में कांग्रेस और राजद के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा. 

मुस्लिम वोटों की दावेदारी बढ़ा रही टसल?

बिहार में सियासी दलों द्वारा इफ्तार पार्टियों का आयोजन लंबे समय से एक राजनीतिक रणनीति रही है. राज्य में मुसलमान राजद का मुख्य वोट बैंक हैं, यही वजह है कि लालू प्रसाद ऐसे आयोजनों का कोई मौका नहीं छोड़ते. मुसलमान और यादव वोट बैंक जिसे शॉर्ट में एमवाई समीकरण कहते हैं, इसी के बल पर राजद बिहार में एक बड़ी राजनीतिक ताकत बनी हुई है. कांग्रेस को पता है कि अगर उसे बिहार की राजनीति में खुद को फिर से स्थापित करना है, तो उसे भी एक सॉलिड वोट बैंक क्रिएट करना होगा. इसलिए कांग्रेस दलितों और मुसलमानों को अपने पाले में करना चाहती है. कांग्रेस अगर राजद की पिछलग्गू बनी रहती है, तो वह बिहार में अपना खोया जनाधार कभी वापस नहीं पा सकती. इसीलिए शायद वह अपनी रणनीति बदल रही है.

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बिहार में 17% मुस्लिम मतदाता हैं. ऐसा माना जाता है कि मुस्लिम समुदाय सामूहिक रूप से वोट देता है. इतने बड़े वोट बैंक को कांग्रेस यूं ही राजद के पाले में नहीं जाने देना चाहेगी. वैसे भी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को बड़ी मात्रा में मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं. बिहार की 32 सीटें ऐसी हैं, जिन पर 30% से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. इनमें से ज्यादातर सीटें नेपाल और बंगाल की सीमा से लगे उत्तर पूर्वी बिहार की हैं. कांग्रेस बिहार में 70 से कम सीटों पर चुनाव लड़ने पर राजी नहीं हैं. बिहार कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता कह चुके हैं कि महागठबंधन में शामिल कोई दल बड़ा और छोटा नहीं है. समान विचारधारा वाले दल इसमें शामिल हैं. कांग्रेस इस बार सीट मुस्लिम बाहुल्य सीटों में आरजेडी के बराबर हिस्सेदारी चाहती है. 

बिहार में कांग्रेस ने किया 70 सीटों पर दावा

कांग्रेस ये साफ कर चुकी है कि महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे में पार्टी इस बार जीत की अधिक संभावना वाली सीटें हासिल करने की कोशिश करेगी. हालांकि अभी तक महागठबंधन में शामिल दलों के बीच सीट बंटवारे पर कोई चर्चा नहीं हुई है, लेकिन इतना साफ है कि कांग्रेस इस बार ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर फोकस करेगी. कांग्रेस 2020 के चुनाव में 70 में सिर्फ 19 सीटों जीत दर्ज कर सकी थी. कांग्रेस को महागठबंधन की हार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था. हालांकि, वह जिन 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, उनमें से 45 पर एनडीए काफी मजबूत स्थिति में रहती है. बिहार के पिछले चार चुनावों से इन सीटों पर कांग्रेस लगातार हार रही थी. वहीं, कांग्रेस की कई परंपरागत सीटें वामदलों के हिस्से में आई थीं, जिसका उन्हें फायदा मिला और उनका प्रदर्शन बेहतर रहा था. इससे पहले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 41 सीटों उम्मीदवार उतारे थे और 27 पर जीत दर्ज की थी.

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