देश के हेल्थ सेक्टर का कोराना काल में कड़ा इम्तिहान हुआ है. पहले से ही नाजुक हालत में चल रहीं देश की स्वास्थ्य सेवाओं की हालत महामारी के दौर में और खराब हो गई है. इस बार के बजट में उम्मीद है कि देश के हेल्थकेयर सेक्टर की सेहत को सुधारने और लोगों को आसानी से सस्ता इलाज मुहैया कराने के लिए कई बड़े ऐलान किए जा सकते हैं.
इस बार के बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए कई बड़े ऐलान किए जाने की उम्मीद हैं. इस बार हेल्थकेयर और सोशल सिक्योरिटी सरकार की प्राथमिकता में भी शुमार हैं. कोरोना काल में अचानक से पैदा हुईं आपात चुनौतियों ने अब देश के स्वास्थ्य क्षेत्र के सामने भविष्य में आ सकने वाली ऐसी किसी भी महामारी से निपटने की चुनौती पेश कर दी है. इसके लिए उम्मीद है कि सरकार जिला अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था में सुधार के साथ ही सीएचसी-पीएचसी की क्षमता बढ़ाने पर जोर दे सकती है. ऐसे में स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट बढ़ने के भरपूर आसार हैं. (Photo: File)
हेल्थ सेक्टर पर फिलहाल कुल GDP का 1.4 फीसदी खर्च होता है. 2025 तक हेल्थ पर कुल GDP का 2.5 फीसदी खर्च करने का लक्ष्य है. धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर GDP के 3.5 फीसदी से 5 फीसदी तक ले जाने की योजना है. अगले 10 वर्षों में इसे GDP के 10 फीसदी के बराबर किए जाने की जरूरत है. (Photo: File)
सबसे पहले तो आसान इलाज को सबके लिए मुहैया कराने की योजना के तहत जानकारों का मानना है कि हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर टैक्स छूट समेत तमाम तरह की रियायतें देने पर सरकार को विचार करना चाहिए. (Photo: File)
इस बीच खबर आई है कि कोरोना का सबक लेकर सरकार हेल्थ सेक्टर के लिए एक खास फंड बनाने का ऐलान इस बजट में कर सकती है. इस फंड का इस्तेमाल आयुष्मान भारत जैसी किसी हेल्थ सेक्टर की स्कीम में किया जाएगा. इसका नाम PM स्वास्थ्य सुरक्षा निधि हो सकता है. इसके जरिए हेल्थ सेक्टर की फ्लैगशिप स्कीम पर खर्च होगा. (Photo: File)
इसमें आयुष्मान भारत, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर आने वाला खर्च शामिल है. प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना पर भी इसी के जरिए खर्च होगा. इसके अलावा PM स्वास्थ्य सुरक्षा योजना और नेशनल हेल्थ मिशन पर भी खर्च होगा. इसके लिए रकम का इंतजाम हेल्थ एंड एजुकेशन सेस में से किया जा सकता है. 2019-2020 में हेल्थ एंड एजुकेशन सेस से 56 हज़ार करोड़ रुपये की वसूली हुई है. (Photo: File)
हालांकि ये हेल्थकेयर सेक्टर में सुधार का केवल एक पक्ष है. दूसरा पक्ष हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने से जुड़ा है. इसके लिए देश का हेल्थ केयर सेक्टर अपनी डिमांड्स की लंबी लिस्ट लेकर तैयार है. हेल्थ का मुद्दा इस बार ऐसा बन गया है सरकार चाहकर भी इसमें कटौती नहीं कर सकती है. जानकारों का मानना है कि इसे आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही सरकार को इससे इकॉनमी को बढ़ाने के तरीके खोजने चाहिए. (Photo: File)