नोटबंदी वित्त मंत्री अरुण जेटली को दुविधा के दिलचस्प मोड़ पर ले आई है. गालिब ने लिखा था कि ईमां मुझे रोके है खींचे है मुझे कुफ्र, जेटली ठीक ऐसी ही हालत में हैं. नोटबंदी की तपस्या के बाद लोग उनसे कर रियायतों की राह पर बहक जाने की उम्मीद कर रहे हैं जबकि वित्त मंत्री के तौर पर उनका ईमान इसकी इजाजत हरिगज नहीं देता.
देश में हैं ही कितने टैक्स पेयर! केवल मुट्ठी भर. असंख्य कोशिशों और कंप्यूटरीकरण, पैन और टीडीएस नियमों में बदलाव के बाद पिछले दो सालों मे इनकम टैक्स का संग्रह बमुश्किल दहाई की ग्रोथ दर्ज कर पाया है.
कोई भी बड़ी रियायत इस मेहनत इस कदर पानी फेर देगी जिसका अंदाज हम आंकडे देखकर ही लगा सकते हैं. यह रहे कुछ तथ्य जो बताते हैं कि क्यों वित्त मंत्री नोटबंदी की कुर्बानी का दरियादिल ईनाम शायद न दे पाएं.
पिछले आर्थिक सर्वेक्षण में इनकम टैक्स को लेकर एक दिलचस्प आंकड़ा प्रकाशित हुआ था जिसके मुताबिक:-
1. भारत में 2.8 करोड़ टैक्स पेयर हैं.
2. इनमें से केवल 25 लाख लोग ऐसे हैं जिनकी इनकम दस लाख रुपये से ऊपर है. इस वर्ग में आने वालों की औसत सालाना इनकम 24.7 लाख रुपये है.
3. 54 लाख लोग पांच से दस लाख की इनकम वाले हैं. जिनकी औसत कमाई 6.5 लाख रुपये है.
4. करीब 2.07 करोड़ लोग दो से पांच लाख रुपये की इनकम वाले हैं. जिनकी औसत आय 2.9 लाख रुपये है.
5. 2.5 लाख रुपये तक की आय टैक्स फ्री है और 2.5 से पांच लाख रुपये तक की आय पर दस फीसदी टैक्स लगता है.
• यदि वित्त मंत्री टैक्स फ्री इनकम की सीमा में 50,000 रुपये की बढोत्तिरी भी कर देते हैं यानी इसे बढ़ाकर तीन लाख रुपये करते हैं तो दस फीसदी की कर सीमा में आने वाले करदाताओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा (दो करोड़ में से लगभग एक करोड़) लोग टैक्स के दायरे से बाहर निकल जाएंगे. क्योंकि इस वर्ग में आने वाले टैक्स पेयर की औसत आय 2.9 लाख रुपये है. जाहिर है कि कौन सा वित्त मंत्री इतने बडे टैक्स बेस को जुटाने की मेहनत पर पानी फेरना चाहेगा.
• कयास और उम्मीदों का आलम यह है कि नोटबंदी के त्याग के बदले लोग चार लाख रुपये और पांच लाख रुपये तक की इनकम के टैक्स फ्री होने की उम्मीद लगाये हैं. उन्हें यह जान लेना चाहिए कि अगर पांच लाख रुपये तक की आय टैक्स फ्री हो जाए तो सरकार को 37000 करोड़ रुपये का राजस्व गंवाना होगा जो कि कुल इनकम टैक्स संग्रह (2015.16) के दस फीसदी से भी ज्यादा है !!!!
बात नोटबंदी से आए एकमुश्त कालेधन और उस पर मिले टैक्स के बदले उदार होने की है नहीं. यह रियायत तो एक बारगी होगी लेकिन इसके बदले टैक्स बेस बढ़ाने की कोशिशों को जो पलीता लगेगा उसकी भरपाई लंबे वक्त में हो सकेगी. किस्सा कोताह यह कि अगर वित्त् मंत्री ने एक करोड़ से अधिक टैक्स पेयर को टैक्स दायरे से बाहर करने का मन लिया होगा तभी वह उतनी दरियादिली दिखायेंगे जिसकी उम्मीद लगाई जा रही है.
इनकम टैक्स रियायत के अलावा भारत में वित्त मंत्रियों पास कृपालु होने का कोई सीधा विकल्प नहीं है. चुनावी राजनीति की पवित्र परंपराओं के अनुसार इनकम टैक्स रियायतों की एक सियासत भी होती है. इस रवायत के आधार पर इस बजट के साथ मोदी सरकार के लिए रियायतों वाले बजटों का सिलसिला शुरु हो रहा है. नोटबंदी के कारण यह क्रम एक साल पहले शुरु होता लगा रहा है. नहीं तो दरियादिली का मौका अगले साल के बजट में आता.
अगर वित्त मंत्री बड़ा तोहफा इसी बजट में बांट देंगे तो फिर अगले दो बजटों में?
आगे आप खुद समझदार हैं ......