बजट 2021-22 को शेयर बाजार ने जबरदस्त सलामी दी है. इसे मोदी सरकार के दौर का सबसे बोल्ड बजट कहा जा रहा है. लेकिन इस बजट में ऐसे कई ऐलान हुए हैं, जिन पर सड़क से लेकर संसद तक विरोध का अखाड़ा बन सकता है.
विपक्ष का आरोप है कि सरकार निजीकरण और एसेट मॉनिटाइजेशन के द्वारा अपने पुरखों की पसीने की कमाई से बनाई हुई जायदाद को बेच रही है.
निजीकरण पर हो सकता है हंगामा
अभी कृषि कानूनों को लेकर बवाल चल ही रहा था कि सरकार ने बीमा क्षेत्र में 74 फीसदी के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, एलआईसी के आईपीओ, दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की इजाजत देकर विपक्ष को विरोध के नए मसले दे दिए हैं. इन मसलों पर संसद में जमकर हंगाम हो सकता है, क्योंकि इनके लिए कानून में बदलाव करने होंगे और संसद की मंजूरी लेनी होगी.
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इसी तरह तमाम सेक्टर में संपत्तियों को बेचने या लीज पर देने से कमाई के प्रावधान, एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी को बेचने, रणनीतिक और गैर रणनीतिक क्षेत्र में सार्वजनिक कंपनियों का विनिवेश ऐसे ऐलान हैं जिन पर इन कंपनियों के कर्मचारी और यूनियन सड़क पर उतर सकते हैं.
फ्लोर मैनेजमेंट की जरूरत
सरकार के पास संसद में संख्याबल पर्याप्त जरूर है, लेकिन कानूनों में बदलाव को पारित कराने के लिए बेहतर फ्लोर मैनेजमेंट की भी जरूरत होगी.
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सरकार 'क्रोनी कैपिटलिज्म का खुला उदाहरण पेश करते हुए अपने कॉरपोरेट दोस्तों को फायदा पहुंचा रही है.' गौरतलब है सरकार पहले ही किसानों के मामले में कॉरपोरेट का हिमायती होने के आरोप से परेशान है.
ध्यान रहे कि साल 2014 में एक बार भूमि अधग्रहण के कानून में बदलाव पर ऐसे ही आरोपों और विपक्ष के कड़े विरोध की वजह से मोदी सरकार को पीछे हटना पड़ा था.
मजदूर संघ ने भी किया है विरोध
आरएएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने भी ऐस कई प्रावधानों की आलोचना की है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार बीएमएस ने कहा, ' बीमा में एफडीआई बढ़ाने और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में विदेशी निवेश में नरमी जैसे प्रस्तावों पर पुनर्विचार करना चाहिए.'
बीएमएस ने सरकारी बैंकों और एक बीमा कंपनी के निजीकरण तथा एलआईसी केआईपीओ लाने की भी आलोचना की है. इस तरह विपक्ष को किसानों के मसले के साथ ही सरकार को संसद में घेरने के नए मसले मिल गए हैं.