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Economic Survey 2022: आर्थिक सर्वे में इकोनॉमी के लिए सामने आईं ये तीन सबसे बड़ी चिंताएं

थोक महंगाई तो 10 फीसदी से ऊपर बनी हुई है. इसी तरह रोजगार का संकट अलग चुनौती खड़ा कर रहा है. पिछले कुछ साल में बेरोजगारी काफी तेजी से बढ़ी है. खासकर कोरोना महामारी ने बेरोजगारी के संकट को विकराल बना दिया. तीसरी बड़ी चुनौती इकोनॉमी में डिमांड जेनरेशन नहीं हो पाना है.

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अर्थव्यवस्था की तीन चुनौतियां
अर्थव्यवस्था की तीन चुनौतियां
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 10 फीसदी से ज्यादा बनी हुई है थोक मंहगाई
  • मध्यम वर्ग को नहीं मिला कोई प्रोत्साहन

भारत की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) कोरोना महामारी की चुनौतियों से उबरकर मजबूत बनकर उभरी है. इकोनॉमिक ग्रोथ (Growth Rate) ने फिर से रफ्तार पकड़ ली है और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे तेजी से आगे बढ़ रहा है. आज पेश आर्थिक समीक्षा (Economic Survey) के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी 9.2 फीसदी की दर से बढ़ने वाली है. अगले वित्त वर्ष में इसमें कुछ कमी आ सकती है और इकोनॉमी 8-8.5 फीसदी की दर से बढ़ सकती है.

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हालांकि इकोनॉमी की चुनौतियां अभी कम नहीं हुई हैं. एक्सपर्ट की राय में अभी इकोनॉमी के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं. SKA Advisors Pvt Ltd के एमडी Sunil Alagh मानते हैं कि अभी महंगाई (Inflation), बेरोजगारी (Unemployment) और डिमांड जेनरेशन (Demand Generation) तीन सबसे बड़ी चुनौतियां हैं. उन्होंने आज तक चैनल पर अर्थव्यवस्था को लेकर हुई एक चर्चा में अपनी चिंताएं व्यक्त की. उनके अनुसार, महंगाई एक बार फिर से लोगों को डरा रही है. थोक महंगाई तो 10 फीसदी से ऊपर बनी हुई है. इसी तरह रोजगार का संकट अलग चुनौती खड़ा कर रहा है. पिछले कुछ साल में बेरोजगारी काफी तेजी से बढ़ी है. खासकर कोरोना महामारी ने बेरोजगारी के संकट को विकराल बना दिया. तीसरी बड़ी चुनौती इकोनॉमी में डिमांड जेनरेशन नहीं हो पाना है. ताजी आर्थिक समीक्षा में भी ये तीन बातें साफ होकर उभरी हैं.

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महंगाई (Inflation): आर्थिक समीक्षा में महंगाई को लेकर चिंता व्यक्त की गई है. खासकर अन्य देशों में कई दशकों के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी महंगाई और कच्चा तेल के दाम में तेजी को जोखिम बताया गया है. घरेलू स्तर पर खुदरा महंगाई को देखें तो इसकी दर दिसंबर 2021 में 5.6 फीसदी रही. यह भले ही रिजर्व बैंक के टारगेट के दायरे में है, लेकिन थोक महंगाई 10 फीसदी से ज्यादा बनी हुई है. हालांकि आर्थिक समीक्षा में इसके लिए साल भर पहले के लो बेस रेट को जिम्मेदार माना गया है. समीक्षा में सबसे अधिक चिंता कच्चा तेल के दाम 90 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा हो जाने को माना गया है. समीक्षा के अनुसार, महंगाई फिर से विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों में सामने आ चुकी है. तेल और नॉन-फूड कमॉडिटीज की अधिक कीमतें, ज्यादा लागत, ग्लोबल सप्लाई चेन की दिक्कतें आदि दुनिया भर में महंगाई की समस्या को विकराल बना रही हैं. इससे आने वाले समय में इकोनॉमिक ग्रोथ पर बुरा असर पड़ सकता है.

बेरोजगारी (Unemployment): भारत में रोजगार के अवसरों की कमी प्रमुख चुनौतियों में से एक है. बेरोजगारी का स्तर और लेबर फोर्स में भागीदारी की दर अभी भी कोविड महामारी के पहले से खराब है. इन मोर्चों पर सुधार तो हुआ है, लेकिन ये अभी भी चिंताजनक स्तर पर हैं. बेरोजगारी दर एक समय पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 20 फीसदी से ज्यादा हो गई थी. चौथी तिमाही में यह कम होकर 9.3 फीसदी पर तो आई, लेकिन अभी भी महामारी से पहले की दर 7.8 फीसदी से ज्यादा है. इसी तरह लेबर फोर्स में भागीदारी की दर महामारी से पहले 48.1 फीसदी थी, जो वित्त वर्ष 2020-21 की चोथी तिमाही में 47.5 फीसदी पर ही रही.

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डिमांड जेनरेशन में कमी (Demand Generation): सुनील अलघ कहते हैं कि सरकार ने पिछले तीन साल में इसे लेकर सप्लाई साइड पर बहुत अच्छा काम किया. गरीब लोगों को फ्री खाना दिया, इससे बहुत फायदा हुआ. हालांकि मिडल क्लास को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया. मिडिल क्लास के लिए कुछ नहीं किए जाने से उनके ऊपर महंगाई की मार पड़ी. इससे डिमांड पर असर हुआ है. अगर डिमांड नहीं बढ़ी तो अर्थव्यवस्था पर खराब असर होगा. इसके लिए सरकार को इनडाइरेक्ट इन्सेन्टिव मुहैया कराने की जरूरत है.

 

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