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आम बजट में बढ़ सकते हैं ये 5 टैक्स, आपकी जेब पर इसका सीधा पड़ेगा असर

देश भर में जीएसटी लागू होने से आम बजट के बाद दैनिक उपयोग की चीजों के सस्ता होने की उम्मीद भी कम ही रह गई है. जीएसटी का कलेक्शन पिछले कुछ महीनों में गिरा है. ऐसे में सरकार प्रत्यक्ष करों और इम्पोर्ट ड्यूटी को बढ़ा सकती है और यह आम आदमी की जेब पर असर डाल सकता है.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

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देश भर की उम्मीदें 1 फरवरी को पेश होने वाले आम बजट 2018 पर लगी हैं. 2019 के आम चुनावों से पहले यह एनडीए सरकार का आखिरी आम बजट हो सकता है, इसलिए लोगों की इस बजट से उम्मीदें बढ़ गई हैं. हालांकि, सरकार की ओर से संकेत मिले हैं कि यह बजट लोकलुभावन नहीं होगा और आर्थिक विश्लेषकों ने भी बजट से ज्यादा उम्मीदें नहीं जताई हैं.

देश भर में जीएसटी लागू होने से आम बजट के बाद दैनिक उपयोग की चीजों के सस्ता होने की उम्मीद भी कम ही रह गई है. जीएसटी का कलेक्शन पिछले कुछ महीनों में गिरा है. ऐसे में सरकार प्रत्यक्ष करों और इम्पोर्ट ड्यूटी को बढ़ा सकती है और यह आम आदमी की जेब पर असर डाल सकता है. आइए जानते हैं कि यह टैक्स कौन से हो सकते हैं.

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1- इक्विटी पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स

सरकार इस बजट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) पर टैक्स बढ़ाने की कई वजहें गिना सकती है. इनमें लिस्टेड और इनलिस्टेड शेयर के बीच विसंगति है. लिस्टेड इक्विटी पर LTCG टैक्स फ्री है, लेकिन अनलिस्टेड इक्विटी पर टैक्स का प्रावधान है. इसी तरह ब्रोकर या ट्रेडर के स्टॉक्स से होने वाले फायदे पर भी कुछ टैक्स लगता है. दूसरे उत्पादों से होने वाले कैपिटल गेन पर फिलहाल तीन साल में टैक्स लगाया जाता है और सरकार यही प्रावधान इक्विटी के लिए भी कर सकती है.

क्या होगा इसका असर?

इससे आम उपभोक्ता की टैक्स देनदारी बढ़ सकती है और स्टॉक मार्केट का सेंटीमेंट भी गड़बड़ा सकता है. कई देशों में कैपिटल गेन टैक्स फ्री है तो विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) खासतौर पर संस्थागत निवेशक प्रभावित हो सकते हैं.

2- सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स

अगर LTCG से विदेशी निवेशकों के प्रभावित होने का खतरा है तो सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स (STT) बढ़ाने का तरीका भी अपना सकती है. इस टैक्स का प्रावधान कैपिटल गेन टैक्स हटाने के बदले किया गया था, इसलिए सरकार अगर पहले टैक्स प्रावधान को नहीं लाती है तो यह उपाय अपना सकती है. इसका दूसरा फायदा इसके कलेक्शन में होने वाली आसानी है. इस टैक्स को BSE और NSE कलेक्ट करते हैं और सीधे सरकार को दे देते हैं.

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क्या होगा इसका असर?

फिलहाल STT की दरें काफी कम हैं, इसमें बढ़ोत्तरी से शॉर्ट टॉर्म के व्यापारियों पर असर पड़ेगा, लॉन्ग टर्म के निवेशकों पर असर न्यूनतम देखने को मिलेगा. हालांकि, ज्यादातर FPI शॉर्ट टर्म प्लेयर हैं, इसलिए उन पर ज्यादा असर पड़ सकता है.

3- इन्हेरिटेंस टैक्स की वापसी

टैक्स रेवैन्यू बढ़ाने के लिए सरकार इन्हेरिटेंस टैक्स को फिर से ला सकती है. इस टैक्स को पहले, एस्टेट ड्यूटी के नाम से जाना जाता था. बीजेपी इन्हेरिटेंस टैक्स के समर्थन में रही है, इसलिए इसकी वापसी के आसार ज्यादा हैं.

क्या होगा इसका असर?

इसको फिर से लागू करने से छोटे टैक्सपेयर्स पर इसका ज्यादा असर नहीं देखने को मिलेगा, क्योंकि इसका बैरियर ऊंचा रखे जाने की उम्मीद है. माना जा रहा है कि यह 5 करोड़ या इससे ज्यादा की संपत्ति के ट्रांसफर करने पर ही लागू होगा.

4- कस्टम ड्यूटी में इजाफा

कई अप्रत्यक्ष करों को जीएसटी में समाहित करने के बाद सरकार का कस्टम ड्यूटी पर पूरा नियंत्रण रहा है. इसलिए टैक्स रेवैन्यू के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार इसी टैक्स में इजाफा कर सकती है. कस्टम ड्यूटी बढ़ाकर 'मेक इन इंडिया' के तहत घरेलू उत्पादन को तेज करना सरकार का दूसरा मकसद हो सकता है. सेल फोन और सोलर पैनल में ड्यूटी बढ़ाकर सरकार इस दिशा में पहले ही कदम बढ़ा चुकी है.

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क्या होगा इसका असर?

इस प्रावधान का भी आम लोगों पर अप्रत्यक्ष असर देखने को मिलेगा. जिन उत्पादों पर कस्टम ड्यूटी बढ़ेगी, उनकी कीमतें बढ़ सकती हैं.

5- फिस्कल टार्गेट से पीछे रहने पर

2017-18 में प्रत्यक्ष कर वसूली आशानुसार देखने को मिली और जीएसटी के आने के बाद से अप्रत्यक्ष कर वसूली में कमी देखने को मिली थी. अभी जीएसटी दरों में बदलाव स्थायी नहीं हैं, इसलिए 2018-19 में अप्रत्यक्ष कर वसूली में अनिश्चितता देखने को मिल सकती है. इससे सरकार अपने राजकोषीय लक्ष्य से पीछे रह सकती है. इस वजह से सरकार 2017-18 के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बढ़ाकर जीडीपी के 3.4 फीसदी (पूर्व अनुमान 3.2 फीसदी) और 2018-19 के लिए 3.2 फीसदी (पूर्व अनुमान 3 फीसदी) पर रख सकती है.

क्या होगा इसका असर?

इस प्रावधान का भी अप्रत्यक्ष असर देखने को मिलेगा. यह असर करेंसी मार्केट से सामने आ सकता है यानी रुपया कमजोर हो सकता है और मुद्रा स्फीति (महंगाई) बढ़ सकती है. विश्लेषकों के मुताबिक इससे सरकार का कर्ज भी बढ़ सकता है. लंबे समय की देनदारी नकारात्मक परिणाम देगी. राजकोषीय घाटा बढ़ने से आरबीआई कर्ज दरों में कमी नहीं करेगा.

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