वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मौजूदा केंद्र सरकार का आखिरी पूर्ण बजट पेश कर दिया है. अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं और 2019 में अंतरिम बजट ही पेश किया जाएगा. इसलिए इस बजट पर आम लोगों से लेकर अर्थशास्त्रियों की निगाहें लगी हुई थीं. बजट 2018 से कई क्षेत्रों को निराशा हाथ लगी है तो कई नई घोषणाएं भी की गई हैं.
मोदी सरकार आगामी लोकसभा चुनावों में जएगी तो अपनी पांच साल की उपलब्धियों को ही गिनाएगी. आइए जानते हैं कि पिछले पांच बजटों में मोदी सरकार ने किन चीजों को प्राथमिकता दी और किन चीजों को नजरअंदाज किया गया.
वित्त वर्ष 2014 की शुरुआत में जहां सत्तारूढ़ मनमोहन सरकार ने अंतरिम बजट पेश किया वहीं जून-जुलाई में केन्द्र में स्थापित हुई नई मोदी सरकार ने अपना पहला बजट पेश किया. इस बजट को पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि देश की जनता ने तेज आर्थिक ग्रोथ के जरिए देश से गरीबी को पूरी तरह खत्म करने के लिए नई सरकार चुनी है.
जेटली के मुताबिक 2014 के चुनाव नतीजों के जरिए देश की सवा सौ करोड़ जनता ने बेरोजगारी, घटिया मूल-भूत सुविधाओं, जर्जर इंफ्रास्ट्रक्चर और भ्रष्ट प्रशासन के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. लिहाजा, मोदी सरकार ने अपने पहले बजट के जरिए देश की अर्थव्यवस्था को 7-8 फीसदी ग्रोथ की ग्रोथ ट्रैक पर डालने के साथ सब का साथ सब का विकास का मूल मंत्र दिया.
अपना दूसरा बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में दावा किया कि मोदी सरकार के 9 महीनों के कार्यकाल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की साख मजबूत हुई है. इसके साथ ही जेटली ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेज रफ्तार पकड़ने के लिए तैयार है. जेटली ने संसद में बजट पेश करते हुए कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत दुनिया की सबसे तेज रफ्तार दौड़ने वाली अर्थव्यवस्था बन चुकी है और इस वक्त जीडीपी की नई सीरीज के मुताबिक विकास दर का 7.4 फीसदी का आंकलन किया.
इस बजट में केन्द्र सरकार ने 12 करोड़ से अधिक परिवारों को आर्थिक मुख्यधारा में लाने का दावा किया और देश की आर्थिक साख को मजबूत करने के लिए पारदर्शी कोल ब्लॉक आवंटन को अंजाम दिया. इस बजट में केन्द्र सरकार ने जीएसटी और जनधन, आधार और मोबाइल के जरिए डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर को लॉन्च करने के लिए कड़े आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाया.
इस बजट से पहले वैश्विक स्तर पर चुनौतियों में इजाफा होने के बावजूद केन्द्र सरकार के सामने ग्रोथ के अच्छे आंकड़े मौजूद थे. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत को सुस्त पड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के बीच एक ब्राइट स्पॉट घोषित किया. इस बजट में केन्द्र सरकार के सामने वैश्विक सुस्ती के अलावा बड़े घरेलू खर्च बड़ी चुनौती रहे. जहां बजट में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का फायदा कर्मचारी तक पहुंचाने के लिए बड़े खर्च होने थे वहीं देश में लगातार दो बार से मानसून कमजोर रहने से एग्रीकल्चर सेक्टर बड़े संकट में था.
लिहाजा, केन्द्र सरकार के सामने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू करना भी बड़े खर्च में शामिल हुआ. हालांकि इस बजट में भी सरकार के पास खर्च करने के लिए राजस्व की कड़ी चुनौती नहीं थी क्योंकि सरकारी खजाने को वैश्विक स्तर पर कमजोर कच्चे तेल की कीमतों का फायदा पहुंच रहा था.
मोदी सरकार के कार्यकाल में चौथा बजट पेश करने से पहले देश में कालेधन पर लगाम के लिए नोटबंदी जैसा अहम फैसला लिया गया. इस फैसले के बाद वार्षिक बजट के सामने सिमटती मांग बड़ी चुनौती बनी. जहां बीते दो बजटों के दौरान देश में ग्रोथ ने रफ्तार पकड़ी थी इस बजट में केन्द्र सरकार के सामने चुनौतियां बढ़ रही थी.
इस बजट में केन्द्र सरकार को वैश्विक स्तर पर बढ़ते कच्चे तेल की कीमतें एक बार फिर परेशान करने लगी थीं. इसके अलावा जुलाई 2017 के दौरान देश में जीएसटी लागू करने से ग्रोथ को झटका लगने का संकेत मिलने लगा था. ऐसे हालात में जहां भारतीय रिजर्व बैंक लगातार ब्याज दरों में कटौती करने से बच रहा था वहीं अमेरिका में ब्याज दरों का इजाफा होने के संकेत से विदेशी निवेशकों का रुख भी बदलने का डर था.
मोदी सरकार के आखिरी पूर्ण बजट से उम्मीद की जा रही थी कि आगामी लोकसभा और आठ राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले सरकार कुछ लुभावनी घोषणाएं कर सकती है. हालांकि, इस बजट में मध्यवर्ग को कुछ खास हाथ नहीं लगा है. आयकर स्लैब में कोई परिवर्तन नहीं किया गया, हां एजुकेशन सेस को 3 फीसदी से बढ़ाकर 4 फीसदी कर दिया गया. किसानों की आय दोगुनी करने के लिए फसलों पर डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने की घोषणा की गई है. सरकार ने ग्रामीण इलाकों में एक करोड़ और शहरी इलाकों में 37 लाख घरों को बनाने में मदद की घोषणा की है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा के तहत 50 करोड़ लोगों को 5 लाख रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा के तहत लाने की बात कही गई है. 250 करोड़ रुपये टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स की दर 25 फीसदी तय की गई है. इसके अलावा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स का प्रावधान किया गया है. एक लाख रुपये तक के निवेश पर 10 फीसदी टैक्स लगेगा. राजकोषीय घाटे का जीडीपी का 3.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है.
इसके अलावा, काला धन, स्वच्छता मिशन, फसल बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, स्मार्ट सिटी, निर्भया फंड, जैसी पिछली बहुप्रचारित योजनाओं के लिए बजट भाषण में कुछ खास नहीं कहा गया. ऐसे समय में जब पाकिस्तान और चीन से तनातनी चरम पर है, रक्षा बजट के आवंटन में बड़ी कटौती देखने को मिली है. इस बार जीडीपी का 7.81 फीसदी बजट रखा गया है, जो 1962 के आम बजट के बराबर है.