भारतीय सेना के तीन पूर्व अध्यक्षों ने सेना के बजट को लेकर सुनिये वित्त मंत्री जी के मंच से वित्त मंत्री अरुण जेटली को कुछ सुझाव दिये. इंडिया टुडे ग्रुप के इस कार्यक्रम में भारतीय सेना के पूर्व अध्यक्ष जनरल वेद प्रकाश मलिक, पूर्व नौसेना अध्यक्ष एडमिरल अरुण प्रकाश और पूर्व वायुसेना अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल एस कृष्णस्वामी ने ‘बॉर्डर का बजट’ सेशन के दौरान सेना के बजट पर वित्त मंत्री को क्या करना चाहिए इस पर चर्चा की.
करगिल युद्ध के दौरान सेनाध्यक्ष रहे जनरल मलिक ने इस चर्चा की शुरुआत ही भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की जरूरत पर बल देते हुए की. उन्होंने कहा, ‘भारत अपने रक्षा उत्पादों में से 70 फीसदी की खरीद करता है. हमें निर्यात पर जोर देना चाहिए.’ गौरतलब है कि भारत सालाना 8 अरब डॉलर आयात के साथ दुनिया के सबसे बड़े रक्षा आयातकों में शामिल है.
जनरल मलिक ने कहा, ‘मोदी के पास दूर दृष्टि है. उन्होंने कहा भी है कि हमें रक्षा उत्पादों के निर्यात पर जोर देना चाहिए.’
तीनों पूर्व सेना अध्यक्षों ने बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटन को बढ़ाने पर जोर दिया. हालांकि, पिछली सरकार ने अंतरिम बजट में इसमें 10 फीसदी की बढ़ोतरी की थी. गौरलतब है कि पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम ने अंतरिम बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए 2,24,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया था.
सेना में सुधार का सुझाव देते हुए जनरल मलिक ने कहा, ‘रक्षा उत्पाद प्रणाली को रक्षा मंत्रालय से अलग करने की जरूरत है.’
पूर्व एयर चीफ मार्शल एस कृष्णस्वामी ने डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) की बार बार विफलता को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि इस संगठन को गठित हुए 56 साल हो गये हैं लेकिन आज सेना रक्षा उपकरणों की कमी से जूझ रही है इसके पीछे डीआरडीओ की कमी रही है. उन्होंने कहा, ‘डीआरडीओ लगातार नए उपकरणों को सामने लाने में नाकाम रहा है. नई सरकार को इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.’
रक्षा क्षेत्र में निजी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की जरूरत पर तीनों पूर्व सेना प्रमुख एकमत दिखे. पूर्व नौसेना अध्यक्ष एडमिरल अरुण प्रकाश ने कहा, ‘यह समय की मांग है कि सरकार रक्षा क्षेत्र को विदेशी कंपनियों के लिए खोलने पर ध्यान दे. रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की इजाजत दी जाए.’
जनरल मलिक ने कहा, ‘पड़ोसी देशों के साथ नियंत्रण रेखा (LoC) का मसला सुलझाने पर भी मोदी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है. खासकर चीन के साथ.’