भारतीय इंजीनियरों को अगर मौका दिया जाए, तो भारतीय रेलगाड़ियां 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाई जा सकती हैं. यह बात एक मशहूर विशेषज्ञ ने कही है. कोंकण रेलवे के पूर्व प्रबंध निदेशक बी. राजाराम ने कहा कि इसके लिए हालांकि भारतीय रेल को अपना घिसा-पिटा रवैया छोड़ना होगा.
अमेरिका के हर्नडन में एक इंटरव्यू में राजाराम ने कहा, ‘हमारे युवा इंजीनियर सुरक्षा और सामर्थ्य के साथ तेज रफ्तार से रेलगाड़ी चलाने में सक्षम हैं. लेकिन उसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति होनी चाहिए और उन्हें मौका दिया जाना चाहिए.’
भारत और अमेरिका दोनों जगह समय दे रहे रहे राजाराम ने कहा कि भारतीय इंजीनियर, बिना यूरोप या चीन की नकल किए ऐसा कर सकते हैं और उनपर इसके लिए मॉडल तैयार करने का भरोसा किया जाना चाहिए. राजाराम ने बिना विदेशी टेक्नोलॉजी मंगवाए भारतीय तरीके से कम खर्च पर रेलगाड़ियों की रफ्तार बढ़ाकर इतिहास रचा है.
राजाराम ने उन दिनों को याद करते हुए कहा, ‘2003 में मडगांव (गोवा) और रोहा (मुंबई के करीब) के बीच मैंने सफलता पूर्वक 150 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से 400 किलोमीटर तक लगातार एक रेलगाड़ी को चलाया था. यह एक ट्रायल था. तब तक इतनी लंबी दूरी के लिए इस गति से रेलगाड़ी नहीं चलाई गई थी.’ उन्होंने बताया कि 442 किलोमीटर की इस दूरी को एक सुपरफास्ट रेलगाड़ी करीब नौ घंटे में पूरा करती थी, जिसे उस रेलगाड़ी ने साढ़े तीन घंटे में पूरा किया था.
उस रेलगाड़ी में चालक के साथ राजाराम भी बैठे थे. उन्होंने बताया कि कुछ हिस्सों पर तो गति 179 किलोमीटर तक पहुंच गई थी, जिसे मैंने कम करने का निर्देश दिया था. उन्होंने कहा, ‘कोंकण मार्ग पर ट्रायल में मैंने देश में पहली बार कैब सिग्नलिंग का भी टेस्ट किया था.’ कैब सिग्नलिंग के कारण ही जापान, फ्रांस और जर्मनी तेज रफ्तार रेल का संचालन कर सकते हैं. इस पूरी घटना को मीडिया जगत ने पहली बुलेट ट्रेन की संज्ञा दी थी.