ऐसे में जब बेरोजगारी को लेकर नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के आंकड़े देश भर में चर्चा का विषय बने हुए हैं. विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है. तब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने आखिरी और अंतरिम बजट में इस मुद्दे का मुकाबला करने के लिए आधुनिक डिजिटल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए ग्रामीण औद्योगीकीकरण का विस्तार कर बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन करने का वादा किया है. सरकार की तरफ से कहा गया है कि यह विस्तार मेक इन इंडिया पर आधारित होगा, जिसमें जमीनी स्तर पर तंत्र विकसित कर कोने-कोने में फैले लघु एवं कुटीर उद्योग और स्टार्ट अप शामिल किए जाएंगे.
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने अपने बजट भाषण में कहा कि सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने की प्रक्रिया ने रोजगार के अवसरों का विस्तार किया है, जो कि ईपीएफओ की सदस्यता में भी दिखता है. दो सालों में लगभग 2 करोड़ नौकरियों का सृजन हुआ जिससे अर्थव्यवस्था के औपचारिक होने का संकेत मिलता है. गोयल ने कहा कि स्किल इंडिया, मुद्रा योजना, स्टार्ट अप इंडिया से स्वरोजगार के अवसर बढ़े हैं. उन्होंने कहा अब रोजगार के मायने पूरी दुनिया में बदल रहे हैं, सिर्फ सरकारी नौकरियां या कारखाने में रोजगार नहीं है. नौकरी मांगने वाले अब स्वयं नौकरी देने में सक्षम हो गए हैं.
गौरतलब है कि बेरोजगारी को लेकर नेशनल सेंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के आंकड़े इन दिनों चर्चा का केंद्र बने हुए हैं. इन आंकड़ों में दावा किया गया है कि देश में बेरोजगारी दर 2017-18 में 6.1 रही जो पिछले 45 साल में सर्वाधिक है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 1971-72 में आखिरी बार बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा थी. जबकि पूर्व की यूपीए सरकार में 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.2 फीसदी थी.
हालांकि सरकार की तरफ से नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स में जिन आकड़ों का उदाहरण दिया गया है वो अंतिम नहीं हैं, यह एक मसौदा रिपोर्ट भर है. राजीव कुमार ने बेरोजगारी के दावे को खारिज करते हुए पूछा कि बिना रोजगार पैदा किए देश की वृद्धि औसतन 7 फीसदी कैसे हो सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी दर 5.3 फीसदी और शहरी क्षेत्र में 7.8 फीसदी रही. इसमें सबसे ज्यादा बेरोजगारी नौजवानों मे 13 से 27 फीसदी रही.
बता दें कि बेरोजगारी के आकड़ों पर विवाद के चलते राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के चेयरमैन समेत 2 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था. इनका आरोप था कि आयोग की मंजूरी के बावजूद आकड़े जारी करने की इजाजत नहीं दी जा रही है. इन अधिकारियों ने सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि संस्था के महत्व को लगातार कम किया गया है.