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सुनिए सरकार... अंतरिम बजट से पहले वोटर के 'मन की बात'!

मध्य वर्ग मतलब देश की रीढ़. पूरे दिन काम करता है. ईमानदारी से टैक्स भरता है. सेस चुकाता है और सोचता है कि कभी सरकार उनकी भी सुनेगी. इस मध्य वर्ग की बहुत पुरानी मांग है कि टैक्स में छूट बढ़नी चाहिए. खुद प्रधानमंत्री इसका जिक्र कर चुके हैं. अब चुनावी बजट से उनकी उम्मीदें आसमान पर हैं.

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अंतरिम बजट में लोगों को मोदी सरकार से खासी उम्मीदें (Photo: Getty)
अंतरिम बजट में लोगों को मोदी सरकार से खासी उम्मीदें (Photo: Getty)

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मध्य वर्ग मतलब देश की रीढ़. पूरे दिन काम करता है. ईमानदारी से टैक्स भरता है. सेस चुकाता है और सोचता है कि कभी सरकार उनकी भी सुनेगी. इस मध्य वर्ग की बहुत पुरानी मांग है कि टैक्स में छूट बढ़नी चाहिए. खुद प्रधानमंत्री इसका जिक्र कर चुके हैं. अब चुनावी बजट से उनकी उम्मीदें आसमान पर हैं.

जब भी बजट आता है मध्य वर्ग की आखें चमकने लगती हैं. लगता है अब तो कुछ हो जाएगा. कुछ चीजें सस्ती हो जाएंगी. कुछ टैक्स में राहत मिल जाएगी.

टैक्स में छूट पर राजनीति को समझिए 

इस देश में केवल 2 करोड़ 10 लाख लोग रिटर्न भरते हैं.

इसमें भी 93.3 फीसद ढाई लाख से कम कमाई दिखाते हैं.

केवल 6.6 फीसद लोग ढाई लाख से ज्यादा कमाई दिखाते हैं.

केवल 13 लाख 86 हजार लोग सचमुच में टैक्स भरते हैं.

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यही वो चौदह लाख लोग हैं, जिनसे सरकार विकास योजनाएं चलाती हैं. लेकिन हर बजट में वो अपने आप को पीछे छूटा हुआ महसूस करते हैं. दरअसल मध्य वर्ग में केवल नौकरी वाले नहीं आते. छोटे कारोबारी भी आते हैं, वो भी वैसे ही जूझते हैं जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए और वैसे ही उम्मीद बांधते हैं बजट से.

इस अंतरिम बजट से नौजवानों को लगता है कि सूरत बदल जाएगी, क्योंकि चुनावी साल है. वहीं एकदम ताजातरीन रिपोर्ट है जो इस देश में डिग्री और नौजवानी के संबंधों को स्थापित करती है.

बजट से ठीक पहले बेरोजगारी का हाल देखिए

2017-18 में बेरोजगारी 45 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है.

नोटबंदी के बाद 6.1 फीसद की दर पर बेरोजगारी है.

सरकार ने इसी रिपोर्ट को जारी करने से रोका है.

सांख्यिकी आयोग के दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है.

बेरोजगारों की फौज और बजट से उम्मीद

हर साल 30 लाख नए ग्रेजुएट बेरोजगारों में जुड़ रहे हैं.

हर साल 8 लाख इंजीनियर बेरोजगारों में जुड़ रहे हैं.

हर साल 5 लाख से एमबीए बेरोजगारों में जुड़ रहे हैं.

जबकि नौकरी इनमें से आधे लोगों को भी नहीं मिलती है.

बजट से नौजवानों की 5 सबसे बड़ी मांग

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पहली मांग- सस्ते में सबके लिए उच्च शिक्षा के अवसर मौजूद हों.

दूसरी मांग- ग्रेजुएशन पूरी होने के सालभर के भीतर नौकरी मिले.

तीसरी मांग- नौकरी न मिलने तक बेरोजागारी भत्ता दिया जाए.

चौथी मांग- गरीब छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए ब्याजमुक्त ऋण मिले.

पांचवीं मांग- सबको उसकी योग्यता के हिसाब से रोजगार मिले.

चुनावी साल में उम्मीदें आसमानी हो जाती हैं, किसानों की भी हैं. लेकिन क्या सरकार उनकी उम्मीदों को जमीन दे पाएगी. इस सवाल और जवाब के फासले में फर्क अब भले एक दिन का बचा हो लेकिन असल में ये इंतजार आजादी के पहले दिन से जारी है.

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