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26 फरवरी को आखि‍री बार पेश होगा रेल बजट!

केंद्र में मोदी सरकार को बने अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ है और इस बार सरकार अपना दूसरा रेल बजट पेश करेगी. इस बार मोदी सरकार का यह पहला फुल-फ्लेज रेल बजट होगा. लेकिन सूत्रों की मानें तो हो सकता है यह मोदी सरकार का आख‍िरी रेल बजट भी हो.

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केंद्र में मोदी सरकार को बने अभी एक साल पूरा नहीं हुआ है और सरकार अपना दूसरा रेल बजट पेश करने वाली है. इस बार मोदी सरकार का यह पहला संपूर्ण रेल बजट होगा. लेकिन सूत्रों की मानें तो हो सकता है यह सरकार द्वारा पेश किया जाने वाला आख‍िरी रेल बजट भी हो. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार तो पूरे पांच साल चलेगी, पूर्ण बहुमत है उनके पास. लेकिन हो सकता है अगली बार से संसद में रेल बजट पेश ही ना हो.

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हिन्दी अखबार दैनिक भास्कर ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि अगले साल से केंद्र सरकार रेल मंत्रालय के बजट को आम बजट के तहत ही पेश करेगी. रेल मंत्रालय से ज्यादा बजट वाले भी कई दूसरे मंत्रालय हैं, ऐसे में सरकार का मानना है कि सिर्फ रेल मंत्रालय का ही बजट अलग क्यों बने. सरकार ने रेल मंत्रालय के सबसे ताकतवर संगठन छह-सदस्यीय रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन के लिए नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय की अध्यक्षता में एक समिति भी बना दी है. रेल मंत्रालय की गिनती केंद्र सरकार के उन गिने-चुने मंत्रालयों में है जो फायदा कमा रही हैं.

गुरुवार 26 फरवरी को पेश होने जा रहे रेल बजट में केंद्र सरकार का सबसे ज्यादा जोर पैसे जुटाने पर रहेगा. हालांकि रेल मंत्रालय ने किराया नहीं बढ़ाने का आश्वासन दिया है, इसके बावजूद सभी श्रेणी के यात्री किरायों में इस बार मामूली वृद्धि की घोषणा की जा सकती है. रेलवे माल-भाड़े के साथ ही जमीन, इमारतों और दूसरे संसाधनों के भी बेहतर इस्तेमाल से ज्यादा धन जुटाने पर ध्यान देगा.

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रेल मंत्रालय को अभी सिर्फ यात्री किराये से ही 45 हजार करोड़ रुपये की आमदनी होती हैं. इसका 95 फीसदी हिस्सा जनरल कैटेगरी या थ्री टीयर स्लीपर से आता है. एसी थ्री टीयर को छोड़कर रेलवे को सभी श्रेणियों के किराये में नुकसान उठाना पड़ रहा है. एसी थ्री टीयर की सीटें ट्रेन बुकिंग खुलने के पांच-छह घंटों में ही भर जाती हैं. इनमें 24 से 28 डिब्बे तक लगाने की घोषणा भी हो सकती है. इनमें से ज्यादातर डिब्बे एसी थ्री टीयर ही होंगे.

एसी चेयरकार में प्रीमियम सीटों के लिए ज्यादा किराये की घोषणा भी संभावित है. रेलवे को माल-भाड़े से 90 हजार करोड़ रुपये की आमदनी हो रही हैं. रेल से माल ढुलाई ट्रक के मुकाबले अब भी तीन गुना सस्ती है. इसके बावजूद उसे इस मद में सिर्फ 45 हजार करोड़ का लाभ है. यानी अब उन पर और ट्रेन चलाए जाने की गुंजाइश नहीं है.

नई ट्रेन लाइनें बिछाने में बड़ा रोड़ा भूमि अधिग्रहण का है, जो राज्य सरकारों की मदद के बिना बिल्कुल भी संभव नहीं है. रेल मंत्रालय नए ट्रैक बिछाने के लिए राज्य सरकारों के साथ स्पेशल पर्पस वेहिकल (एसपीवी) बनाएगी, जिसमें दोनों की हिस्सेदारी रहेगी. इसके लिए उत्तर प्रदेश को छोड़कर सभी राज्य सहमत हैं.

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