देश के पूर्व चीफ स्टैटिसटिशियन प्रणब सेन का मानना है कि मौजूदा समय में देश के सार्वजनिक लोक उपक्रमों (Public Sector Enterprises-PSE's) का निजीकरण करना एक Horrible Idea है. आखिर इसके पीछे क्या वजह है जानें यहां...
ये मंदी का साल
पूर्व चीफ स्टैटिसटिशियन प्रणब सेन का कहना है कि ये मंदी का साल है. इस दौर में सरकारी उपक्रमों का प्राइवेटाइजेशन एक Horrible Idea है.असल मुद्दा यह है कि इसके लिए यह गलत समय है क्योंकि वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए वित्त क्षेत्र की वैध जरूरत आगे और कम होती जाएगी. उद्योग मंडल PHDCCI के एक कार्यक्रम में सेन ने कहा कि मार्च के अंत तक चालू वित्त वर्ष में देश का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.5% से बढ़कर 9.5% होने का अनुमान है, लेकिन अगर सरकार के मौजूदा साल के खर्च को देखें तो देश में लगभग ‘यथास्थिति’ है.
तेजी के समय लाभ
प्रणब सेन ने कहा कि सरकारी कंपनियों के निजीकरण का फायदा तब होता है जब अर्थव्यवस्था में बूम होता है. अभी ऐसा करना एक भयानक विचार है. जानने वाली बात है कि सरकार ने बजट 2021-22 में सरकारी कंपनियों के निजीकरण से 1.75 लाख रुपये जुटाने का लक्ष्य तय किया है. इसमें दो सरकारी बैंक और एक साधारण बीमा कंपनी का निजीकरण भी शामिल है.
बजट में ‘रोजगार’ पर नहीं बात
सेन ने कहा कि इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट में ‘रोजगार’ के मसले पर कुछ भी नहीं कहा. जबकि पिछले सब बजट में इसे लेकर बातें की गई हैं. उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री ने MSME सेक्टर के लिए बस एक पासिंग रिमार्क बजट में दिया लेकिन उनके लिए कुछ नहीं कहा.
सप्लाई साइड का बजट
प्रणब सेन ने सरकार के बजट को सप्लाई साइड का बजट बताया. उन्होंने कहा कि महामारी के दौर में जो राजकोषीय प्रोत्साहन दिया गया है वह अर्थव्यवस्था के मुकाबले बहुत छोटा है. इसमें भी अधिकतर उपाय सप्लाई साइड के लिए हैं. किसी बड़ी परियोजना के लिए कोई आवंटन बजट में नहीं किया गया है.
सेन से पहले देश के पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी संसद में बजट पर चर्चा के दौरान इसे सप्लाई साइड का बजट कहा था.
बही-खाते दुरुस्त करने से बढ़ा भरोसा
सेन ने सरकार के बही खातों को दुरुस्त करने के लिए उसकी तारीफ भी की. उन्होंने कहा कि सरकार अपनी 1.7 लाख करोड़ रुपये से लेकर 3 लाख करोड़ रुपये तक की देनदारियों को निपटाने में सफल रही है. इससे सरकार को लेकर भरोसा बढ़ा है जो पहले कम था.
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