बुधवार को यूपीए सरकार अंतरिम रेल बजट पेश करने जा रही है और उसकी कोशिश है कि इसके माध्यम से वह मतदाताओं को रिझाए. इसके लिए वह रेल टिकटों की दरें तो नहीं घटाएगी लेकिन कई नई ट्रेनों के शुरू करने की घोषणा करेगी.
बताया जाता है कि यूपीए सरकार के ज्यादातर मंत्रियों और सांसदों ने रेल मंत्री से गुजारिश की है कि उनके इलाके में नई ट्रेन दी जाए या वहां महत्वपूर्ण ट्रेनों के ठहराव घोषित किए जाएं. चुनाव सिर पर देखकर ये नेता रेल मंत्रालय पर काफी दवाब बना रहे हैं. वैसे भी भारत में नई रेलगाड़ियों को शुरू करने के लिए वहां के नेताओं का बड़ा योगदान होता है. इस साल भी रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे पर काफी दवाब है और वह रास्ता ढूंढ रहे हैं ताकि अधिक से अधिक मंत्रियों-सांसदों को खुश कर सकें. खड़गे उम्र के लिहाज से सबसे वरिष्ठ हैं और इस समय वह एक संतुलन बनाने में लगे हुए हैं.
रेल मंत्री की सबसे बड़ी समस्या यह है कि रेलों के परिचालन में खर्च बढ़ता जा रहा है और उसकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि रेल किराये में कमी की जा सके. आंकड़े बता रहे हैं कि रेलवे की परिचालन लागत अप्रैल-दिसंबर अवधि में बजट से 5,000 करोड़ रुपये ज्यादा हो चुका है. यानी उसका घाटा बढ़ता जा रहा है. इसके अलावा उसकी कमाई 3,000 करोड़ रुपए घट गई है. रेलवे माल ढुलाई में भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पा रही है. इसलिए रेल किराये घटाने का सवाल ही नहीं पैदा होता है.
लेकिन जनता को खुश करने के लिए वह कई नई रेलगाड़ियों की घोषणा करेंगे. इसके अलावा रेलवे की सूचना व्यवस्था को सुधारने के लिए कई बड़े कदम उठाएंगे. इसके तहत स्टेशनों पर आने-जाने वाली ट्रेनों के बारे में सटीक सूचना देने की व्यवस्था की जाएगी. इसके अलावा कई स्टेशनों पर ऑटोमेटिक टिकट वेंडिग मशीनें भी लगाई जाएंगी. स्टेशनों में यात्रियों को और सुविधाएं देने के लिए कई कदमों की घोषणा हो सकती है.
रेल मंत्री कई ट्रेनों के विस्तार और ठहराव की भी घोषणा कर सकते हैं. उन्होंने सांसदों तथा अन्य नेताओं की कुछ मांगें मान भी ली हैं और उसके तहत नई लाइनों के सर्वे किए जा सकते हैं. इनसे भी उन इलाकों में लोग खुश होंगे. इसके अलावा कई भीड़भाड़ वाले इलाकों में रेल पुल बनाने की भी वह घोषणा कर सकते हैं. शहरों के अंधाधुंध विकास के कारण वहां रेल फाटकों पर भारी भीड़ होने लगी है जिससे कई शहरों में तो ट्रैफिक जाम की भी समस्या हो गई है. वहां के सांसद ऐसी कई मांगें रेल मंत्री के सामने रख चुके हैं. इनमें से कइयों को अनुमति मिल जाएगी.
रेल मंत्रियों की पॉपुलिस्ट नीतियों का ही नतीजा है कि देश में रेल लाइनों का निर्माण बहुत कम हो रहा है. भारत में आजादी के 63 वर्षों में जितनी लंबी रेल लाइनें बनीं, चीन में सिर्फ पांच वर्षों में (2006-11) बन गईं. रेल किराये समय पर न बढ़ाने से रेलों के परिचालन में घाटा होने लगा है और रेलवे की तमाम योजनाओं पर प्रश्न चिन्ह लग गया है.