सरकार ने आम बजट को किसानों और मजदूरों के कल्याण वाला बताकर अपनी पीठ भले थपथपा ली हो लेकिन खुद आरएसएस से जुड़े मजदूर संगठन भी इससे निराश हैं. भारतीय मजदूर संगठन ने इसे बड़े-बड़े वादों वाला चुनावी बजट बताया है.
भारतीय मजदूर संघ के महासचिव बृजेश उपाध्याय ने आजतक से खास बातचीत में बताया कि आयकर में कोई छूट नहीं मिली है. साथ ही ग्रामीण बैंकों के लिए बाजार से रकम जुटाने के प्रस्तावों का सीधा मतलब है कि सरकार इन बैंकों को मिलने वाली मदद बंद करने के मूड में है.
मजदूर और किसानों के लिए तो इस बजट में कुछ खास नहीं है. किसानों पर फोकस की बात सरकार जरूर कर रही है लेकिन इस बजट से मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग का कल्याण होता फिलहाल नहीं दिख रहा. घरेलू उद्योग-धंधों के लिए ज्यादा प्रोत्साहन नहीं होने से रोजगार पर भी असर पड़ेगा.
भारतीय मजदूर संघ का मानना है कि इस बाबत सरकार को अपनी ओर से रिप्रजेंटेशन दिया जाएगा ताकि बजट प्रस्तावों में सुधार कर इसे मजदूरों और कर्मचारियों के लिए कारगर बनाया जा सके. इसके अलावा सांसदों से भी बात कर इन मुद्दों को बजट पर बहस के दौरान उठाया जाएगा.
ऑल इंडिया किसान सभा ने भी बजट को किसानों की आड़ में एग्रीकल्चर कारपोरेट की मदद करने वाला बताया है. क्योंकि बजट प्रावधान किसानों के हित साधने और उनकी उम्मीदें व अरमान पर पूरी तरह फेल होंगे.
सभा के महासचिव हन्ना मुल्ला के मुताबिक सरकार ने वादा किया था कि किसानों की फसल की लागत से 50 फीसदी ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होगा. गेहूं जैसी फसल में लागत मूल्य जहां 1256 रुपए आता है, ऐसे में 50 फीसदी जोड़ कर ये 1884 रुपए होना चाहिए. लेकिन सरकार 1735 रुपए की दर से खरीदती है.
इसी तरह अन्य फसलों का भी यही हाल है. सरकार ने राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशों को भी मूल रूप में लागू नहीं किया है. किसानों की आय बढ़ाने का वादा और ये बजट, एक-दूसरे के बिल्कुल उलट हैं. मनरेगा में भी पिछले साल के बजट प्रावधानों के बावजूद लोगों को काम नहीं मिला. जिन्होंने काम किया भी तो उनकी मजदूरी का 56 फीसदी अब तक बकाया है.
इन संगठनों ने अपना विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान कर दिया है. यानी आने वाले दिनों में संसद मार्ग पर कभी लाल तो कभी केसरिया झंडे हाथों में लिए किसान मजदूर संगठन अपनी आवाज बुलंद करते दिखेंगे.