साल 2008 में वैश्विक मंदी आई थी. मंदी के कई कारण थे. लेकिन इस मंदी का ठीकरा लेहमैन ब्रदर्स (Lehman Brothers) बैंक के ऊपर फोड़ा जाता है. क्योंकि इस बैंक के दिवालिया होते ही मंदी पर मुहर लग गई थी. बीते कुछ महीनों से फिर मंदी की चर्चा जोरों पर है. जिस तरह से अमेरिका और यूरोप में बैंकिंग संकट पैदा हो गया है, खासकर क्रेडिट सुइस (Credit Suisse) के संकट में फंसने से ग्लोबल मंदी की आशंकाओं को बल मिल रहा है. इसी कड़ी में भारत ने बैंकिंग संकट से निपटने के लिए D-SIB बनाया है. आइए जानते हैं कि बैंकिंग सिस्टम के फेल होने से क्या समस्याएं आ सकती हैं?
2008 की मंदी के बाद साल 2015 में RBI ने डोमेस्टिक सिस्टमेटिकली इम्पॉर्टेंट बैंक यानी (D-SIB) की लिस्ट जारी की. फिलहाल इसमें देश के तीन बैंक शामिल हैं. RBI ने SBI, ICICI बैंक और HDFC बैंक को D-SIB में स्थान दिया है.
D-SIB में शामिल बैंकों के डूबने से देश की अर्थव्यवस्था हिल जाएगी, और इनका डूबना सरकार भी सहन नहीं कर सकती. RBI देश के सभी बैंकों को उनकी परफॉर्मेंस, उनके कस्टमर बेस के आधार पर सिस्टमैटिक इम्पॉर्टेंस स्कोर देता है. किसी भी बैंक के D-SIB के तौर पर लिस्ट होने के लिए जरूरी है कि उसकी संपत्ति राष्ट्रीय GDP के 2 फीसदी से ज्यादा हो. मुख्यतौर पर घरेलू अर्थव्यवस्था में महत्व के आधार पर RBI इन बैंकों का चयन करता है.
साल 2008 की मंदी के दौरान भारतीय शेयर बाजार तहस-नहस हो गए थे. मंदी को भारतीय बैंक भी नहीं झेल पाए थे. जिससे देश का नुकसान वित्तीय तौर पर बढ़ गया था. तभी सरकार ने तय किया कि ऐसी स्थिति में कुछ चुनिंदा बैंकों को बचाने की जरूरत है, ताकि इकॉनमिक क्राइसिस ना पैदा हो.
D-SIB में बैंकों को भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है. ये सारा पैसा लोन देने में या बाकी चीजों के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते. इन्हें अपने रिस्क वेटेड एसेट्स का एडिशनल कॉमन इक्विटी टीयर 1 मेनटेन करना होता है. क्योंकि फिलहाल SBI बकेट 3 में हैं, तो उसे 0.60% और ICICI और HDFC बैंक को 0.20% मेनटेन करना होता है, जो बकेट 1 में हैं. बैंक की इम्पॉर्टेंस के आधार पर D-SIB को 5 अलग-अलग बकेट्स में रखा जाता है. बकेट फाइव का मतलब सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बैंक, वहीं बकेट वन का मतलब है कम महत्व वाले बैंक.
भारत में SBI, ICICI और HDFC बैंक इस लिस्ट में हैं. इनके डूबने से देश की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा सकती है. जिसकी वजह से आर्थिक संकट और पैनिक की स्थिति बन सकती है. इन बैंकों की गतिविधियों पर RBI की पैनी नजर होती है, इसलिए इनके डूबने की जोखिम बेहद कम होते हैं. D-SIB से डील करने के लिए RBI ने अलग नियम बना रखे हैं. आर्थिक संकट की स्थिति में इन बैंकों को उबारने के प्लान होते हैं, और सरकार भी हरसंभव मदद करती है.
सभी बैंक केंद्रीय बैंक यानी RBI के अधीन होते हैं. साल 2020 में Yes Bank की आर्थिक सेहत बिगड़ गई थी. जिसके बाद तुरंत आरबीआई ने बैंक के बोर्ड को भंग कर अपने कब्जे में ले लिया था, और फिर उसे उबारने के लिए पूंजी डाली गई. जिसमें सहयोग के लिए SBI समेत देश के कई बड़े बैंक सामने आए. कुछ इसी तरह का मामला फिलहाल अमेरिकी फर्स्ट रिपब्लिक बैंक को बचाने के लिए सामने आया है. देश के दूसरे बैंकों ने 30 अरब डॉलर की मदद देकर बचाया है. साल 2015 से RBI हर साल D-SIB की लिस्ट निकालता है. 2015 और 2016 में केवल SBI और ICICI बैंक D-SIB थे. 2017 से HDFC को भी इस लिस्ट में शामिल किया गया.
D-SIB में शामिल बैंकों को सरकार हर हाल में डूबने नहीं देगी. बाकी बैंकों का बहुत ज्यादा प्रभाव दुनिया में नहीं है. हालांकि बाकी बैंकों के भी डूबने के चांस बहुत कम है. क्योंकि सभी पर RBI की नजर होती है. खाताधारकों की स्थिति में अब देश के सभी बैंकों के लिए एक ही नियम है. डूबने या आर्थिक संकट की स्थिति में बैंक डिपॉजिट पर सरकार 5 लाख रुपये तक का इंश्योरेंस कवर देती है.
कई अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के बाद भी अलग से भारतीयों बैंकों के लिए नियम बनाए गए हैं. इस कारण अमेरिका, ब्रिटेन या अन्य कई पश्चिमी देशों के बैंकिंग सेक्टर की तरह भारत में संकट देखने को नहीं मिलता है.
लेहमैन ब्रदर्स के दिवालिया घोषित होने से पूरी दुनिया के वित्तीय बाजार हिल गए थे. दुनियाभर के शेयर बाजारों में भूचाल आ गया था, खासकर बैंकिंग शेयरों में सुनामी देखने को मिली थी. उस समय खबर भी सामने आई थी कि अमेरिकी सरकार लेहमैन ब्रदर्स को बचा सकती थी और बचाना चाहती थी, लेकिन ईमानदारी से कोशिश नहीं की गई. क्योंकि कई देशों ने केंद्रीय बैंकों के साथ मिलकर एआईजी, सिटीग्रुप, फैनी मे, फ्रेड्डी मैक, आरबीएस जैसे बैंकों को बचाया. लेकिन लेहमैन ब्रदर्स की किस्मत खराब थी. यह अमेरिका का उस समय चौथा सबसे बड़ा बैंक था. ऐसे में पूरी दुनिया में इस बैंक का कारोबार फैला था.
यह अमेरिकी बैंक 2008 में दिवालिया हुआ, लेकिन खतरे की घंटी एक साल पहले ही बज चुकी थी. कारण था- नकदी संकट. दिवालिया होने से पहले लेहमैन ब्रदर्स का वित्तीय लेवरेज करीब 44:01 रेशियो में था. इसका मतलब यह हुआ कि बैंक ने अपना हर एक रुपया जो कारोबार में लगाया था, उस पर 44 रुपये उधार ले रखा था. वित्तीय तौर पर जब अच्छा समय था, तब मोटा लाभ हुआ. लेकिन जब बुरा समय आया तो बैंक संभल नहीं पाया.
2008 में दिवालिया होने से पहले लेहमैन ब्रदर्स दुनिया भर में लगभग 25,000 कर्मचारियों के साथ अमेरिका में चौथा सबसे बड़ा निवेश बैंक था. इस बैंक का सबसे ज्यादा एक्सपोजर रियल एस्टेट में था. रियल एस्टेट और होम लोन के दलदल में फंसने लेहमैन ब्रदर्स बैंक कंगाल हुआ. क्योंकि रियल एस्टेट में संकट आने से बैंक को पैसे वापस नहीं मिल पाए, जो बैंक के डूबने का सबसे बड़ा कारण बना. लेहमैन बैंक 1850 में अपनी स्थापना से 2008 तक करीब 158 वर्षों तक कार्यरत रहा.
सबसे पहले आपको बता देते हैं कि G-SIBs क्या है? ये Global Systemically Important Banks का शॉर्ट फार्म है. इस लिस्ट में शामिल बैंकों को सबसे मजबूत माना जाता है. 2022 में जारी लिस्ट में सबसे ऊपर JP Morgan (US) बैंक है. दूसरे पायदान पर HSBC (GB), तीसरे पर CITI Group (US), चौथे पर BNP Paribas (FR) और पांचवें पर Bank of America (US) है. इस लिस्ट की टॉप-30 में कोई भी भारतीय बैंक नहीं है.
हालिया आर्थिक संकट से जूझ रहा क्रेडिट सुइस बैंक G-SIB लिस्ट में 23वें पायदान है. ग्लोबली यानी G-SIB लिस्ट में स्विट्जरलैंड के दो बैंक शामिल हैं. इसमें पहला Credit Suisse और दूसरा UBS है, जिसने अब क्रेडिट सुइस को खरीदने का फैसला किया है. यानी ये दोनों बैंक ग्लोबली स्विट्जरलैंड के लिए बेहद प्रमुख हैं, और इनके डूबने से दुनिया भर में असर देखने को मिल सकता है. इसके अलावा स्विट्जरलैंड में Systemically Important Banks के तौर पर PostFinance, Raiffeisen और Zurcher Kantonalbank (ZKB) हैं.
अमेरिका से सबसे ज्यादा बैंकिंग संकट की खबरें आ रही हैं. यहां सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक डूब चुके हैं. तीसरे बैंक यानी फर्स्ट रिपब्लिक बैंक को दूसरे बड़े बैंकों ने 30 अरब डॉलर की मदद देकर बचाया है. वैसे तो अमेरिकी बैंकों के डूबने का भारत के बैंकिंग सिस्टम पर कोई असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि इन अमेरिकी बैंकों की गिनती अमेरिका में ही बड़े बैंक के तौर पर नहीं होती. हालांकि, लगातार बैंक डूबने की खबर आने से सेटींमेंट पर असर जरूर पड़ता है. खासकर शेयर बाजार में इसका दबाव देखने को मिलता है.
2008 और अब के हालात में बहुत अंतर है, बैंकिंग सिस्टम को पिछले करीब 15 वर्षों में दुरुस्त करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. जानकारों के मुताबिक, केवल इन बैंकों के डूबने की खबर से मंदी आ जाएगी, यह बात हजम नहीं होती है, और आज की तारीख में कोई भी बैंक आसानी से डूबता नहीं है. खासकर अगर भारत की बात करें, तो यहां फिलहाल D-SIB के अलावा भी प्राइवेट हो या सरकारी बैंक, किसी की भी आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं है कि आने वाले दिनों में वो डूब जाएंगे.