
एक तमिल फिल्म है 'सोरारई पोटरू'. इस फिल्म में मुख्य किरदार की भूमिका सूर्या ने निभाई है. फिल्म की कहानी गांव के एक ऐसे शख्स के ऊपर बेस्ड है, जो कम लागत वाली एयरलाइन सर्विस (Airline Service) शुरू करने के अपने सपने को पूरा करने के लिए तमाम तरह की मुश्किलों से जूझता है. राजनेताओं और व्यापारियों तक से लोहा लेता है. फिल्म एक्शन और ड्रामा से भरपूर है. 'सोरारई पोटरू' फिल्म को कई कैटगरी में नेशनल अवार्ड भी मिला और इसके साथ ही एक बार फिर से चर्चा में आया वो शख्स जिसकी वास्तविक जिंदगी और उसके संघर्षों को इस फिल्म में फिल्माया गया. उस शख्स का नाम है कैप्टन जीआर गोपीनाथ (Captian G.R Gopinath).
कई कारोबार में आजमाए हाथ
'मैंने दूध बेचने के लिए जानवर पाले, मुर्गी फार्मिंग की, सिल्कवॉर्म फर्मिंग की, बाइक का डीलर बना, स्टॉक ब्रोकर बना, सिंचाई से जुड़े सामान बेचे, कृषि सलाहकार बना और अंत में एक एविएशन एंटरप्रेन्योर बना. स्ट्रगलिंग, फॉलिंग, राइजिंग, फॉलिंग, राइजिंग अगेन एंड टेकिंग ऑफ'. सिंपली फ्लाइंग नाम से लिखी किताब में कैप्टन गोपीनाथ अपने जीवन के संघर्षों और सफलताओं को ऐसे ही कुछ शब्दों में बयां कर जाते हैं. लेकिन हर एक शब्द के पीछे छिपी होती हैं उम्मीदें, भावनाएं और अथाह संघर्ष. अपनी आंखों के ख्वाब को सफलताओं के आकाश में सितारों के साथ टांकने के लिए गोपीनाथ ने कई कामों में हाथ आजमाए. सैनिक स्कूल से शुरू हुआ सफर राजनेता बनने तक पहुंच चुका है.
शुरुआती जीवन
13 नवंबर 1951 को जन्मे गोरूर रामास्वामी अयंगर गोपीनाथ का पालन-पोषण कर्नाटक के गोरूर नाम के एक छोटे से गांव में हुआ. कुल आठ भाई-बहनों के परिवार गोपी का बचपन गुजरा. अपने माता-पिता के आठ बच्चों से में से वो दूसरे थे. उनके पिता एक स्कूल शिक्षक और कन्नड़ उपन्यासकार थे. गोपी के पिता का मानना था कि स्कूल अनुशासन का एक सिस्टम है. इसलिए शुरुआती दिनों में उन्होंने अपने बेटे को घर पर ही पढ़ाने का फैसला किया. कुछ साल की होमस्कूलिंग के बाद गोपीनाथ का दाखिला कन्नड़ मीडियम के एक स्कूल में पांचवीं क्लास में हुआ.
सेना से दे दिया इस्तीफा
1962 में उनका दाखिला सैनिक स्कूल बीजापुर में हो गया और फिर यहां से गोपीनाथ सेना में भर्ती होने की कोशिशों में जुट गए. स्कूलिंग के बाद गोपीनाथ का चयन नेशनल डिफेंस एकेडमी में हुआ. फिर गोपीनाथ ने भारतीय सेना में आठ साल नौकरी की. 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में लड़े भी. लेकिन बताया जाता है कि सेना में अपनी नौकरी के दौरान गोपीनाथ बंधे हुए नजर आते थे. हमेशा कुछ अपना करने की सोचते रहते. इसलिए महज 28 साल की उम्र में गोपीनाथ ने सेना की नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
सेना की नौकरी छोड़ने के बाद गोपीनाथ ने कई कारोबार में हाथ आजमाए. गोपीनाथ ने दूध बेचने के लिए मवेशी पाले. मुर्गी पालन भी किया. इकोलॉजिकल सस्टेनेबल सेरीकल्चर फार्म चलाया. होटल के कारोबार में भी हाथ आजमाए. बाइक डीलर भी बने. पर जो वो करना चाहते थे, उसकी नींव साल 1997 में पड़ी, जब गोपीनाथ ने डेक्कन एविएशन नाम की एक कंपनी बनाई.
चार्टर्ड हेलीकाप्टर सर्विस की शुरुआत
सबसे पहले उन्होंने डेक्कन एविएशन नाम से एक चार्टर्ड हेलीकाप्टर सेवा शुरू की. कंपनी वीआईपी लोगों के लिए चार्टर्ड हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराती थी. गोपीनाथ इस कंपनी के को-फाउंडर थे, लेकिन अभी और ऊंची उड़ान की कोशिशों में जुटे थे. एविएशन सेक्टर में पहली सफलता मिलने के बाद वो हवाई यात्रा के किराए को उस स्तर पर लाने के प्रयास में जुट गए, जिससे मिडिल क्लास लोग भी हवाई जहाज में सफर कर सकें. क्योंकि तब एयर फेयर बहुत अधिक था. लो कॉस्ट एयर फेयर को ध्यान में रखते हुए कैप्टन गोपीनाथ ने साल 2003 में एयर डेक्कन एयरलाइन बनाई.
इस एयरलाइन को लॉन्च करने के लिए गोपीनाथ ने अपनी जीवन की सारी जमा-पूंजी लगा दी थी. लेकिन वो इस एयरलाइन को चला नहीं पाए. शुरुआत के चार साल के बाद 2007 में एयर डेक्कन का मर्जर विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइन्स में हो गया. रिपोर्ट के अनुसार, डेक्कन एयरलाइन के पास तब 43 विमानों का बेड़ा था, जो 60 से अधिक डेस्टिनेशन के लिए प्रतिदिन 350 फ्लाइट ऑपरेट करती थी.
सियासी रनवे से नहीं भर सके उड़ान
डेक्कन एयरलाइन के मर्जर के बावजूद गोपीनाथ ने हार नहीं मानी और साल 2013 में डेक्कन 360 नाम से एक एयर-कार्गो सर्विस की शुरुआत की. लेकिन ये बिजनेस भी सफल नहीं रहा. जुलाई 2013 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने इसे बंद करने का आदेश दे दिया. क्योंकि डेक्कन 360 ने दो कंपनियों का बकाया नहीं चुकाया था. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में गोपीनाथ ने बेंगलुरु साउथ सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन वो हार गए. फिर 2014 में भी उन्होंने इस सीट से अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन सफलता फिर भी हाथ नहीं लगी.