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Vedanta Listing Story: 100 km तक चलाते रहे साइकिल, इस उद्योगपति ने बताया कैसे मिली कामयाबी!

अनिल अग्रवाल की गिनती पहली पीढ़ी के उन सफल उद्योगपतियों में होती है, जिन्होंने खुद के दम पर अपनी राह तैयार की. बिहार से लंदन स्टॉक तक का सफर तय करने वाले वेदांता चेयरमैन आज मेटल और माइनिंग सेक्टर के दिग्गजों में गिने जाते हैं. पढ़िए वेदांता के लिस्ट होने की कहानी, खुद अनिल अग्रवाल की जुबानी...

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वेदांता के लिस्ट होने की कहानी
वेदांता के लिस्ट होने की कहानी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 2003 में लंदन स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट हुई वेदांता
  • एलएसई में लिस्ट होने वाली पहली भारतीय कंपनी

मेटल और माइनिंग सेक्टर की दिग्गज कंपनी वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल (Vedanta Chairman Anil Agarwal) की गिनती उन उद्योगपतियों में की जाती है, जिन्होंने जमीन से आसमान तक का सफर खुद के दम पर तय किया. पहली पीढ़ी के उद्योगपति अनिल अग्रवाल पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर लोगों के साथ अपनी यात्रा की कहानियां शेयर कर रहे हैं. ताजी कड़ी में उन्होंने बताया है कि किस तरह से लंदन स्टॉक एक्सचेंज (London Stock Exchange) पर वेदांता को लिस्ट (Vedanta LSE Listing) कराने का अपना सपना उन्होंने पूरा किया था. इसके लिए अनिल अग्रवाल को एक बार तो 100 किलोमीटर तक साइकिल चलाने की जरूरत पड़ गई थी.

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अनिल अग्रवाल को नौसिखिया मानते थे इन्वेस्टर्स

वेदांता चेयरमैन लिखते हैं, 'पिछली बार जब आपसे रूबरू हुआ, तब मैंने लंदन पहुंचने के साथ जुड़ी बातें शेयर कीं. अब आगे की कुछ बातें... पहली भारतीय कंपनी को लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराने के लिए, मैं कई कंपनियों, वकीलों और बैंकर्स से मिलने लगा. इच्छा बस इतनी थी कि वो लोग देखें कि ये कंपनी या ऐसा कहूं कि ये देश, दुनिया को क्या खास ऑफर कर रहा है. ज़्यादातर मौकों पर, लगभग हर बार मेरी बातों को रिजेक्ट कर दिया गया. मुझे बताया जाता था कि हालांकि मेरी सोच अच्छी है, लेकिन ये उनके लिए एक बड़ा जोखिम था क्योंकि उनकी नजर में मैं नौसिखिया था. मुझे पता था कि उनका भरोसा जीतने के लिए मुझे और अधिक मेहनत करनी होगी.'

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साइकिल से सफर ने खोले एलएसई के रास्ते

अनिल अग्रवाल ने इसी कड़ी में साइकिल चलाने के कड़वे अनुभव का भी जिक्र किया. वह बताते हैं, 'एक नेटवर्किंग कार्यक्रम में मैं जेपी मॉर्गन, बीएचपी और लिंकलेटर्स के टॉप इन्वेस्टर्स से मिला, जो साइकिल यात्रा पर जा रहे थे. मैं बहुत स्पोर्टी नहीं हूं, लेकिन इयन हेन्नम ने मुझे अपने साथ साइकिल से ऑक्सफोर्ड चलने की चुनौती दी, जो लगभग 100 किलोमीटर दूर था. मैंने भी तुरंत हां कर दी. मुझे नहीं याद कि उस यात्रा में जितना दर्द मुझे महसूस हुआ, उतना मैंने उससे पहले किया हो. लेकिन हमारी कंपनी वहां लिस्टेड नहीं होगी तो मुझे और ज्यादा दुख होगा, इसी सोच ने मुझे तेज गति से पैडल दबाने की हिम्मत दी. मैं वो सफर पूरा करने में कामयाब रहा. पहली बार इतनी साइक्लिंग से पैर में लगी चोट के बावजूद मेरे चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट थी! मैंने बिजनेस के कुछ टॉप लीडर्स के साथ अभी-अभी नए संबंध बनाए थे. मैं इससे ज्यादा तो चाहता भी क्या! मानो मन की मुराद पूरी हुई...'

भारतीय व्यंजनों से भी मिली अनिल अग्रवाल को मदद

इस साइकिल यात्रा में बने संबंध ने अनिल अग्रवाल को लंदन स्टॉक एक्सचेंज के रास्ते पर चलने में मदद की. उन्होंने लिखा, 'इसके बाद जैसे-जैसे और दरवाजे खुलने लगे, तो मैंने तय किया कि लोगों को भारत का स्वाद चखाने का समय आ गया है. कहावत भी हे कि किसी व्यक्ति के दिल का रास्ता पेट से होकर गुज़रता है. वहां सात समंदर पार लंदन में, दिल जीतने के लिए हमारे देसी भारतीय भोजन से बेहतर तरीका क्या हो सकता था! मैंने अपनी पत्नी किरण के साथ उन लोगों के लिए भारतीय लंच होस्ट करने शुरू किए, जो लिस्टिंग में हमारी मदद कर रहे थे. उन्हें भारतीय खाना खिलाने से लेकर साइकिलिंग ट्रिप पर जाने तक, मैंने ये सब इसलिए किया कि इन निवेशकों को भारतीय कंपनी और भारत की क्षमता का पता चले. मैंने ना जाने कितने ही दिन और रात उस लक्ष्य का पीछा करते हुए बिताए, जिसे लोग अबूझ पहेली कह रहे थे. किरण अक्सर मेरे घर लौटने का इंतजार करती. देर रात, हम साथ में खाना खाते. कुछ रातें हम हंसते और अपने बीते दिन के बारे में बात करते. लेकिन कुछ रात, मैं इतना थक जाता कि मैं खाने की मेज पर ही सो जाता.'

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नई पीढ़ी को वेदांता चेयरमैन की सलाह

अनिल अग्रवाल तमाम प्रयासों के बाद साल 2003 में वेदांता को लंदन स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट कराने में कामयाब रहे. इस बारे में वह कहते हैं, 'और एक दिन... मेहनत रंग लाई. घाटे में चल रहे बिजनेस प्रोजेक्ट्स को लाभदायक व्यवसायों में बदलने के मेरे ट्रैक रिकॉर्ड ने उन्हें प्रभावित किया और मेरे सपने सच हो गए. सन 2003 में, वेदांता लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई! मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. ये सब दुनिया के अखबारों में खबर बन चुका था. भारत में मेरे मित्रों और परिवार को ज्यादा डिटेल्स मालूम भी नहीं थीं, लेकिन वो ये जानते थे कि उनका लाडला देश का नाम रोशन करके आया है. आज भी इसके बारे में सोचकर ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है. तो, मेरी बात को पढ़ने वाले और बड़े सपने देखने वाले सभी साथियों के लिए एक संदेश: टिकाऊ और फलदायक रिलेशन बनाने के लिए अपने बोर्डरूम की चारदीवारी से निकलें. साइकिल पर सवार हो जाएं, चाहे आपने पहले उतनी लंबी ना चलाई हो. अपने सपनों पर भरोसा करें, भले ही लोग आपको हताश कर रहे हों, मगर पूरे जोश से उस सफर का आनंद लें जिस पर आप जा रहे हैं...'

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