लोन मोरेटोरियम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 28 सितंबर तक टाल दी है. लेकिन कोर्ट ने कहा है कि उसका पिछले हफ्ते दिया गया अंतरिम आदेश लागू रहेगा. गौरतलब है कि पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगस्त के बाद अगले दो महीने तक लोन अगर कोई नहीं चुका पाता है तो उसे बैंक नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए की श्रेणी में नहीं रखेंगे.
सरकार ने की थी टालने की मांग
लोन मोरेटोरियम के दौरान ब्याज पर ब्याज लेने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में यह मामला चल रहा है. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि बैंकों के साथ दो-तीन दौर की बातचीत हुई है और इस बारे में अभी निर्णय लिया जाना है. इसलिए कृपया इस मामले को दो हफ्ते तक टाल दें.
रियल एस्टेट कंपनियों की संस्था CREDAI की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि लोन की रीस्ट्रक्चरिंग की जो मौजूदा सुविधा दी गई है उससे 95 फीसदी कर्जधारकों को कोई राहत नहीं मिलने वाली.
बैंकों की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि कोर्ट को याचिका के आधार पर ही विचार करना चाहिए, मीडिया में छपी खबरों के आधार पर नहीं.
एसबीआई की तरफ से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि सभी खाते ईमानदारी वाले नहीं हैं, बहुत से लोग जालसाजी के आरोपी हैं, लेकिन कोर्ट का एनपीए के लिए जो आदेश आया है, वह ऐसे सभी लोगों पर भी लागू हो जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने दी थी राहत
पिछले हफ्ते एक अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर अगस्त तक कोई बैंक लोन अकाउंट एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट घोषित नहीं है तो उसे अगले दो महीने तक एनपीए न घोषित किया जाए.
याचिकाकर्ताओंं के वकील राजीव दत्ता ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का हलफनामा बांचते हुए कहा था कि ये तो साफ कह रहे हैं कि मोरेटरियम की अवधि निकलने के बाद वो अतिरिक्त EMI वसूलेंगे. उन्होंने कहा कि बैंक जब कॉमर्शियल संस्था हैं तो रिजर्व बैंक कोरोना के बीच उन्हें बचाने की कोशिश क्यों कर रहा है.
लोन मोरेटोरियम पर सरकार ने 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दिया है. सरकार ने यह संकेत दिया है कि मोरेटोरियम को दो साल तक बढ़ाया जा सकता है. लेकिन यह कुछ ही सेक्टर को मिलेगा. केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि ब्याज पर ब्याज के मामले पर रिजर्व बैंक निर्णय लेगा.
सरकार ने सूची सौंपी है कि किन सेक्टर को आगे राहत दी जा सकती है. सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल ने कहा, 'हम ऐसे सेक्टर की पहचान कर रहे हैं जिनको राहत दी जा सकती है, यह देखते हुए कि उनको कितना नुकसान हुआ है.' इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अब और देर नहीं की जा सकती.
क्या है पूरा मामला?
कोविड-19 महामारी के मद्देनजर, आरबीआई ने 27 मार्च को एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें बैंकों को तीन महीने की अवधि के लिए किश्तों के भुगतान के लिए मोहलत दी गई थी. 22 मई को, RBI ने 31 अगस्त तक के लिए तीन महीने की मोहलत की अवधि बढ़ाने की घोषणा की, नतीजतन लोन EMI पर छह महीने के लिए ये मोहलत बन गई.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया कि बैंक EMI पर मोहलत देने के साथ- साथ ब्याज लगा रहे हैं जो कि गैरकानूनी है. ईएमआई का ज्यादातर हिस्सा ब्याज का ही होता है और इस पर भी बैंक ब्याज लगा रहे हैं. यानी ब्याज पर भी ब्याज लिया जा रहा है. इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने RBI और केंद्र से जवाब मांगा था.